देशभर में जातीय जनगणना को लेकर बहस जारी है. इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने इस विषय पर अपना रुख स्पष्ट किया है.संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने जातीय जनगणना को लेकर बयान दिया है.उन्होंने जातिगत जनगणना को देश की एकता-अखंडता के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बताया है.उन्होंने कहा है कि इसे बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है.उनका कहना है कि जातिगत आंकड़ों का इस्तेमाल अलग-अलग जातियों और समुदायों की भलाई के लिए करना चाहिए, राजनीति के लिए नहीं.उन्होंने जातीय जनगणना को राष्ट्रीय एकीकरण के लिए महत्वपूर्ण बताया. वो सोमवार को आरएसएस की अखिल भारतीय समन्वय बैठक से इतर पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे. इस बैठक में 'आरएसएस से जुड़े 32 संगठनों के राष्ट्रीय स्तर के नेता भाग ले रहे हैं. इसमें बीजेपी के नेता भी शामिल हैं.
जातिगत जनगणना पर आरएसएस का रुख
संघ के मुख्य प्रवक्ता सुनील आंबेकर से सोमवार को केरल के पलक्कड़ में जातिगत जनगणना को लेकर सवाल किया गया था. उन्होंने कहा,''हमारे समाज में जाति संवेदनशील मुद्दा है. यह देश की एकता से भी जुड़ा हुआ सवाल है. इसलिए इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है न कि चुनाव और राजनीति को ध्यान में रखकर.''उन्होंने कहा कि देश और समाज के विकास के लिए सरकार को डेटा की जरूरत पड़ती है. समाज की कुछ जाति के लोगों के प्रति विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. इन उद्देश्यों के लिए इसे (जाति जनगणना) करवाना चाहिए. इसका इस्तेमाल लोक कल्याण के लिए होना चाहिए. इसे पॉलिटिकल टूल बनने से रोकना होगा.
यह पहला मौका है जब संघ ने जातिगत गणना का समर्थन किया है. इससे पहले संघ के नेता इसे समाज को बांटने वाला बताते रहे हैं. पिछले साल 19 दिसंबर को नागपुर में संघ प्रचारक और विदर्भ प्रांत के प्रमुख श्रीधर गाडगे ने जातिगत जनगणना को लेकर बयान दिया था.उन्होंने कहा था, ''हमें इसमें कोई फायदा नहीं बल्कि नुकसान दिखता है. यह असमानता की जड़ है और इसे बढ़ावा देना ठीक नहीं है.'' वो महाराष्ट्र विधानसभा और विधान परिषद के बीजेपी और शिव सेना (शिंदे गुट) के विधायकों के एक दल को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने यह भी कहा था कि यदि जातिगत जनगणना के लाभों को पर्याप्त रूप से समझाया जाए तो सरकार के साथ जुड़ने के लिए आरएसएस तैयार है. जब वो यह बात कर रहे थे तो नागपुर में संघ प्रमुख मौजूद नहीं थे.
जातिगत जनगणना पर संघ के बयान का समय
संघ ने ऐसे समय जातिगत जगणना का समर्थन किया है, जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार विपक्ष की इस मांग को लगातार नकार रही है.ऐसे में संघ के रुख में आए परिवर्तन को बीजेपी के लिए झटका माना जा रहा है. सामाजिक न्याय की रहनुमाई करने वाले क्षेत्रीय दल बहुत पहले से जातिगत जनगणना की मांग करते रहे हैं. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-2 की सरकार में मुलायम सिंह यादव, शरद यादव और लालू प्रसाद यादव समेत बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे ने जातिगत जनगणना को लेकर काफी दबाव बनाया था. इसके बाद मनमोहन सिंह की सरकार जातिगत जनगणना को लेकर सैद्धांतिक रूप से सहमत हो गई थी. लेकिन 2011 में हुई जनगणना में जाति को नहीं जोड़ा गया. इसकी जगह पर सरकार ने सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी) कराया था.लेकिन इसके आंकड़े आज तक नहीं जारी किए गए.
संघ और जाति
इस विषय पर हमने वरिष्ठ पत्रकार और आरएसएस की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले विजय त्रिवेदी से बात की. उन्होंने कहा कि संघ ने यह बयान सरकार की जरूरतों को पूरा करने के लिए दिया है.सरकारी योजनाओं को ठीक से लागू करने के लिए इस तरह के आंकड़ों की जरूरत होती है.शायद इसलिए संघ ने जातिगत जनगणना का समर्थन किया हो.हालांकि संघ हमेशा से ही जाति विहीन समाज का समर्थक रहा है. संघ के कार्यक्रमों और कार्यों में भी कहीं जाति नजर नहीं आती है.
उन्होंने कहा कि इस समय देश में माहौल बन रहा है जातिगत जनगणना के लिए, ऐसे में संघ पर उसका या आरक्षण विरोधी होने का ठप्पा न लग जाए, इससे बचने के लिए संघ ने यह बयान दिया हो.संघ पर आरक्षण विरोधी होने के आरोप पहले लगते रहे हैं. हो सकता है कि इन आरोपों से बचने के लिए संघ ने यह बयान दिया हो.उन्होंने कहा कि आंबेकर जी ने यह भी कहा है कि जातिगत जनगणना का इस्तेमाल राजनीतिक उद्देश्य के लिए नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना पर संघ का यह बयान सरकार के लिए असहज करने वाली स्थिति है, क्योंकि वह हमेशा से जातिगत जनगणना से इनकार करती रही है.
देश में जोर पकड़ती जाति जनगणना की मांग
पिछले एक दशक से देश में जातिगत जनगणना की मांग जोर पकड़ रही है. लगातार हार से परेशान कांग्रेस को अब अपनी मुक्ति का मार्ग जातिगत जनगणना, संविधान की रक्षा और आरक्षण में नजर आ रहा है. इसलिए अब कांग्रेस नेता जोर-शोर से जातिगत जनगणना की वकालत कर रहे है.राहुल गांधी तो इस मुद्दे को रोज ही उठाते रहते हैं. उन्होंने लोकसभा में कहा था कि वो जातिगत जनगणना करवा कर रहेंगे. कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी इसके समर्थन में आ जाने से जातिगत जनगणना की मांग को बल मिला है.
इस साल हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के गठबंधन 'इंडिया' ने जातिगत जनगणना, संविधान और आरक्षण पर खतरे को मुद्दा बनाया था. इसका असर चुनाव परिणामों पर देखा गया.बीजेपी अपने दम पर बहुमत लाने से चूक गई.केंद्र में अब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार है एनडीए में शामिल छोटे दल रह-रहकर सरकार को आंख दिखा रहे हैं. वहीं मजबूत विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार को घेरने का कोई भी मौका नहीं खोना चाहता है. जातिगत जनगणना पर देश भर में बन रहे माहौल से सत्ताधारी बीजेपी में भी बेचैनी है. लेकिन वो न तो खुलकर इसके समर्थन में आ रहे हैं और न ही खुलकर विरोध में, क्योंकि जातिगत जनगणना का फायदा जिस जाति समुदाय को मिलने की उम्मीद है, उस ओबीसी की जनसंख्या देश में सबसे अधिक बताई जाती है. वोट की राजनीति में जागिगत जनगणना का विरोध एक दोधारी तलवार की तरह है.
जातिगत जनगणना और बीजेपी
जातिगत जनगणना पर संघ का बयान ऐसे समय आया है, जब देश में चार विधानसभाओं के चुनाव होने वाले हैं. विपक्ष इन राज्यों में भी जातिगत जनगणना को मुद्दा बना रहा है. ऐसे में संघ ने यह बयान देकर विपक्ष के इस मुद्दे की धार को कुंद करने की कोशिश की है. क्योंकि आरक्षण पर संघ प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान की वजह से 2015 में बिहार विधानसभा का चुनाव परिणाम बदल गया था.ऐसे संघ विपक्ष के हाथ में कोई हथियार नहीं देना चाहता है, जिससे बीजेपी कमजोर हो.
बीजेपी ने भी कभी जातिगत जनगणना का खुल कर विरोध नहीं किया और न खुद को इसका विरोधी बताया. लेकिन अलग-अलग कारणों से वह इसे कराने से बचती रही है. अब संघ के बयान से बीजेपी के रुख में बदलाव आ सकता है. अगर जातिगत जनगणना पर बीजेपी का रुख बदलता है तो उसके आलोक में सरकार अगली जनगणना में इस पर कोई बड़ा कदम उठा सकती है.यह भी संभव है कि अगली जनगणना से पहले जातिगत जनगणना पर सरकार के रुख में कोई बदलाव आ जाए.
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