प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली:
राम जन्मभूमि विवाद मामले की सुनवाई आज सुप्रीम कोर्ट में हुई. कोर्ट में जमात उलेमा-ए-हिंद के वकील ने जहां मामले को संविधान पीठ में भेजने के लिए कहा वहीं हिंदू पक्ष और रामलाल विराजमान की ओर से पेश वकीलों ने इसे मात्र संपत्ति विवाद बताते हुए इसे जल्द निपटाने की मांग की. मामले की अगली सुनवाई 15 मई को होगी.
जमात उलेमा-ए- हिंद की तरफ से पेश वकील राजू रामचंद्रन ने कहा ये मसला बहुत ही महत्वपूर्ण है इसलिए इसे संवैधानिक पीठ के पास भेज जाना चाहिए. रामचंद्रन ने कहा कि हाई कोर्ट ने इस केस को असाधारण महत्व वाले केस के तौर पर लिया था कानून के सवाल पर नहीं. इस केस के संवेदनशीलता के कारण न सिर्फ अयोध्या बल्कि देश के दूसरे हिस्सों में भी कानून व्यस्था प्रभावित हुई. हाई कोर्ट के आदेश से कोई भी पक्ष खुश नहीं है इसलिए सभी ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है. राष्ट्र के लिए ये महत्वपूर्ण है. सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आएगा इसका प्रभाव सोशल फैब्रिक यानी सामाजिक संरचना पर पड़ेगा. क्योंकि इस केस से देश के दो धार्मिक समुदायों की धार्मिक भावनाएं जुड़ी हुई हैं.
यह भी पढ़ें : अयोध्या मामला : सुप्रीम कोर्ट में दोनों पक्षों के बीच हुई तीखी बहस
हिंदू पक्ष की तरफ से हरीश साल्वे ने कहा कि देश 1992 से आगे बढ़ चुका है, अब ये सिर्फ संपत्ति विवाद रह गया है. हरीश साल्वे ने कहा कि धर्म और राजनीति से जुड़े मुद्दे की चर्चा अदालत के दरवाजों से बाहर की जानी चाहिए. अदालत इस मामले की गंभीरता को समझती है तभी इस मामले की सुनवाई कर रही है. अब ये दो धर्मों का मामला नहीं है. ये केवल सम्पति विवाद का मामला है. उसे उसी तरफ से लेना चाहिए.
रामलाल विराजमान की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील के परासरण ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इस मामले की सुनवाई संवैधानिक पीठ में करना न कानूनी रूप से सही है न ही व्यहारिक. ये अब किसी समुदाय का मामला नहीं रहा. ये केवल एक जमीनी विवाद है. इसके लिए कभी 5 जज, कभी 7 और कभी 9 जज इसका कोई अंत नहीं है. इसमें कोई संवैधानिक पेंच नहीं है तो बड़ी बेंच या उससे बड़ी बेंच के सामने सुनवाई करके समय खराब करने का कोई मतलब नहीं है. इस मामले को जल्द निपटाया जाए. कोर्ट का भी यही मकसद होता है कि जनता के पैसे से फ़िजूल खर्च न हो.
VIDEO : सलमान नदवी का नया बोर्ड
15 मई को भी मामले की सुनवाई जारी रहेगी.
जमात उलेमा-ए- हिंद की तरफ से पेश वकील राजू रामचंद्रन ने कहा ये मसला बहुत ही महत्वपूर्ण है इसलिए इसे संवैधानिक पीठ के पास भेज जाना चाहिए. रामचंद्रन ने कहा कि हाई कोर्ट ने इस केस को असाधारण महत्व वाले केस के तौर पर लिया था कानून के सवाल पर नहीं. इस केस के संवेदनशीलता के कारण न सिर्फ अयोध्या बल्कि देश के दूसरे हिस्सों में भी कानून व्यस्था प्रभावित हुई. हाई कोर्ट के आदेश से कोई भी पक्ष खुश नहीं है इसलिए सभी ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है. राष्ट्र के लिए ये महत्वपूर्ण है. सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आएगा इसका प्रभाव सोशल फैब्रिक यानी सामाजिक संरचना पर पड़ेगा. क्योंकि इस केस से देश के दो धार्मिक समुदायों की धार्मिक भावनाएं जुड़ी हुई हैं.
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हिंदू पक्ष की तरफ से हरीश साल्वे ने कहा कि देश 1992 से आगे बढ़ चुका है, अब ये सिर्फ संपत्ति विवाद रह गया है. हरीश साल्वे ने कहा कि धर्म और राजनीति से जुड़े मुद्दे की चर्चा अदालत के दरवाजों से बाहर की जानी चाहिए. अदालत इस मामले की गंभीरता को समझती है तभी इस मामले की सुनवाई कर रही है. अब ये दो धर्मों का मामला नहीं है. ये केवल सम्पति विवाद का मामला है. उसे उसी तरफ से लेना चाहिए.
रामलाल विराजमान की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील के परासरण ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इस मामले की सुनवाई संवैधानिक पीठ में करना न कानूनी रूप से सही है न ही व्यहारिक. ये अब किसी समुदाय का मामला नहीं रहा. ये केवल एक जमीनी विवाद है. इसके लिए कभी 5 जज, कभी 7 और कभी 9 जज इसका कोई अंत नहीं है. इसमें कोई संवैधानिक पेंच नहीं है तो बड़ी बेंच या उससे बड़ी बेंच के सामने सुनवाई करके समय खराब करने का कोई मतलब नहीं है. इस मामले को जल्द निपटाया जाए. कोर्ट का भी यही मकसद होता है कि जनता के पैसे से फ़िजूल खर्च न हो.
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15 मई को भी मामले की सुनवाई जारी रहेगी.
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