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This Article is From Apr 12, 2023

"राजनीति ने अपनी शालीन भाषा खो दी है, आज जिस भाषा का इस्तेमाल..." : शरद पवार

शरद पवार ने कहा, "राजनीति ने आज अपनी शालीन भाषा खो दी है. अब जिस अतिवादी भाषा का इस्तेमाल किया जाता है, वह अतीत में कभी भी राजनीतिक विमर्श का हिस्सा नहीं थी."

"राजनीति ने अपनी शालीन भाषा खो दी है, आज जिस भाषा का इस्तेमाल..." : शरद पवार
पवार ने कहा कि उन दिनों की राजनीति अधिक शालीन थी. (फाइल)
मुंबई:

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार ने मंगलवार को कहा कि आज की राजनीति ने अपनी शालीन भाषा खो दी है और आज जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया जाता है वैसा पहले कभी सुनने को नहीं मिलता था. वह जब्बार पटेल द्वारा निर्देशित 1979 की मराठी फिल्म ‘सिंहासन' से संबंधित एक चर्चा में बोल रहे थे. यह फिल्म 1970 के दशक की महाराष्ट्र की राजनीति के इर्द-गिर्द घूमती है. उन्होंने कहा, "राजनीति ने आज अपनी शालीन भाषा खो दी है. अब जिस अतिवादी भाषा का इस्तेमाल किया जाता है, वह अतीत में कभी भी राजनीतिक विमर्श का हिस्सा नहीं थी."

यह पूछे जाने पर कि वह उन दिनों की किस चीज को याद करते हैं, पवार ने कहा, ‘‘उन दिनों की राजनीति अधिक शालीन थी.''

जब फिल्म बनी थी तब पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने पटेल को मंत्रालय के साथ-साथ तत्कालीन मंत्रियों और विधायकों के कार्यालयों और बंगलों के अंदर शूटिंग करने की अनुमति दी थी. 

फिल्म पत्रकार-लेखक स्वर्गीय अरुण साधु द्वारा लिखे गए दो उपन्यासों - मुंबई दिनांक और सिम्हासन पर आधारित है, जबकि पटकथा स्वर्गीय विजय तेंदुलकर द्वारा लिखी गई थी. 

यह पूछे जाने पर कि फिल्म में वह किस किरदार के साथ सबसे अधिक सहानुभूति रखते हैं, पवार ने कहा कि यह स्वर्गीय नीलू फुले द्वारा निभाई पत्रकार की भूमिका थी. 

पवार ने कहा, ‘सरकार को कवर करने वाले पत्रकार कभी-कभी महसूस करते हैं कि वे सब कुछ जानते हैं और उनमें से कुछ तो मंत्रियों और विधायकों के सलाहकार भी बन जाते हैं.'

पाटेकर और अगाशे ने कहा कि राजनीति कभी निर्दाेष नहीं होती. अगाशे ने कहा,' लेकिन यह कभी प्रतिशोध की भावना नहीं थी. कुछ ऐसे सिद्धांत थे जिनका पालन किया गया था, जिन्हें हम आज देखने में विफल हैं.‘ 

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(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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