भारतीय राजनीति के दिग्गज और मौजूदा दौर में विपक्ष की प्रखर आवाजों में से एक शरद पवार ने NDTV के एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया से खास बातचीत की. NCP प्रमुख शरद पवार अदाणी समूह के समर्थन में भी दृढ़ता से सामने आए और इस ग्रुप के खिलाफ हिंडनबर्ग की रिपोर्ट की आलोचना भी की. साथ ही उन्होंने हिंडनबर्ग रिपोर्ट को लेकर जेपीसी जांच की कांग्रेस की एकतरफा मांग पर, स्पष्ट रूप से कहा कि वह अपने महाराष्ट्र के सहयोगी के विचारों के साथ नहीं है. शरद पवार ने संसद के सुचारू रूप से ना चलने से लेकर विभिन्न मुद्दों को लेकर अपनी बात रखी.
NCP प्रमुख ने विपक्ष की एकता को और मजबूत करने के लिए क्या किया जाए, इसपर भी जोर दिया. शरद पवार ने मौजूदा राजनीति में विपक्षी पार्टियों की भूमिका पर भी बात की . उन्होंने इंटरव्यू के दौरान 2024 में होने वाले आम चुनाव में BJP के खिलाफ विपक्ष की किस तरह की योजना होनी चाहिए पर भी अपनी राय रखी. साथ ही उन्होंने कांग्रेस पार्टी के भविष्य को लेकर भी टिप्पणी की . आईए इस खास इंटरव्यू में शरद पवार ने जिन मुद्दों पर बात की उन्हें विस्तार से पढ़ते हैं...
एनडीटीवी : ये मुलाक़ात बेहद ख़ास है, दो SP के बीच है एक बहुत बड़े शरद पवार, अजातशत्रु हैं राजनीति के, दूसरा छोटा सा पत्रकार संजय पुगलिया.सर आपने वक़्त निकाला बहुत-बहुत शुक्रिया, सर पिछले दिनों जो कुछ घटनाएं हुई हैं उससे 2-4 बड़े सवाल खड़े होते हैं, वो ये हैं कि संसदीय प्रणाली का ऐसा गतिरोध आप अपने 56 साल के संसदीय करियर के बाद कैसे देखते हैं? विपक्षी एकजुटता का क्या हाल है? यदि कांग्रेस पार्टी उसकी ऐक्सिस है तो सिंगल प्वांइट एजेंडा लेकर वो चलने वाली है, वो विपक्ष की दूसरी पार्टियों का क्या आकलन है उनका.मेरा पहला सवाल है कि संसद में ऐसा गतिरोध पैदा करके ये सोचना कि आपने कोई प्वाइंट स्कोर कर लिया, बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है.
शरद पवार : आपने जो सवाल पूछा उसका मैं जवाब दूंगा, मगर आपने शुरुआत जो की है वो मेरे ध्यान में कभी आई नहीं, आपने शुरुआत ऐसी की कि दो SP का इंटरव्यू है, मैं सोच रहा था कि एक SP मैं हूं तो आज मुझे पता लगा कि संजय पुगालिया भी, यानी दो SP आज तक कभी मिले नहीं थे, मिले होंगे कई बार, मगर दो SP मिले ऐसी बात कभी सामने आई नहीं थी, ठीक है. जहां तक आपने सवाल पूछा कि संसद के गतिरोध का. मुझे लगता है जो कुछ हो रहा है ठीक नहीं है. मगर ये भी हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं कि इससे पहले भी ऐसा हुआ था जब डॉ. मनमोहन सिंह देश के पीएम थे. मैं ख़ुद उनकी सरकार में था तब 24 मुद्दों पर कई दिन पूरा सेशन धुला था और जो सत्र धुल गया था तो बड़े ज़िम्मेदार लोग संसद में थे. मगर ये होने के बाद हम लोग बाद में बैठे थे और ये बात हमने की कि बाक़ी कुछ भी हो मतविभिन्नता हो सकती है, आरोप हो सकते हैं मगर ये जो फ़ोरम है. वो लोगों की समस्याएं रखने के लिए, बहुत ज़रूरी फ़ोरम है और जब फ़ोरम ही काम नहीं करेगा. ऐसी स्थिति में हम जो लोगों के प्रतिनिधि हैं, सांसद हमारे सामने होगा ये ठीक नहीं है, तब हमने बात की थी. दुर्भाग्य से बाद में कुछ हुआ नहीं मगर अभी तीसरे महीने में हम लोगों ने संसद के दोनों सदनों में देखा तो सदन का कामकाज चलने नहीं देना है. इस लाइन पर हंगामा हुआ, बात हो सकती है, अलग-अलग आलोचना हो सकती है, सरकार की नीति में सख़्ती से बोलने का अधिकार है मगर चर्चा होनी चाहिए. चर्चा और संवाद लोकतंत्र में ज़रूरी हैं. यदि आप चर्चा और संवाद को नज़रअंदाज़ करेंगे तो सिस्टम संकट में जाएगा, ख़तरे में जाएगी.
एनडीटीवी : बिल्कुल जो मुद्दा सामने आया है जिसपर इतना बड़ा गतिरोध हुआ, उसको आप कैसे देखते हैं, क्योंकि अलग- अलग पार्टियों की राय अलग रही. फ़ोकस चला गया कांग्रेस पार्टी के एक्स्ट्रीम स्टैंड पर और आप लोगों ने आख़िरकार साथ दिया, मना किया कि इतना हंगामा नहीं चलेगा ये लेज़ी राजनीति है?
शरद पवार : इसको स्वीकार मुझे करना पड़ेगा कि अकेले कांग्रेस पार्टी इसमें नहीं थी, बाक़ी सब एक थे, SP बाद में आई थी, TDP बाद में आ गई, तमिलनाडु की पार्टियां इसमें थीं, कई राजनीतिक पार्टियां इसमें थीं. मुझे इसमें एक कमी दिखाई देती है कि जब कोई इश्यू है सदन में संघर्ष होता है तो जैसे मैंने पहले कहा कि चर्चा होने की आवश्यकता है. मुझे संसद और विधानसभा में आए हुए 56 साल हो गए हैं लगातार मैंने कई जगह पर ऐसी समस्या देखी हैं. हंगामे देखे हैं. मगर ऐसा होने के बाद शाम को या अगली सुबह चर्चा शुरू होती थी. संसदीय कार्य मंत्री की ज़िम्मेदारी है कि सदन में गतिरोध आता है तो ठीक है उस दिन हाउस नहीं चलेगा मगर दूसरे दिन हाउस चलने के लिए चाहे शाम को ही बैठो, दूसरे दिन बैठो, कुछ न कुछ रास्ता निकालने कि कोशिश की जानी चाहिए. ये जो चर्चा का प्रोसेस है ये आजकल नहीं है. मुझे याद है ग़ुलाम नबी आज़ाद संसदीय कार्य मंत्री थे, विपक्ष बहुत तगड़ा था. कई मुद्दों पर विपक्ष सदन की कार्यवाही चलने नहीं देता था, मगर ग़ुलाम नबी आज़ाद विपक्ष के नेता के साथ बैठ कर कुछ न कुछ रास्ता निकालने की कोशिश ज़रूर करते थे और सदन चलता था. आजकल जैसे एक्स्ट्रीम संघर्ष करना ठीक नहीं है वैसे चर्चा की प्रोसेस बंद करना ये भी ठीक नहीं है ये दोनों चीज़ें हो गई इसलिए पूरा सेशन धुल गया.
एनडीटीवी : मैं आप से ये समझना चाहता हूं कि हर इंसान इस देश में राजनीति को समझने के लिए आप उसको Decode करते हैं, उसे आपसे समझते हैं लोग. किसी Extreme पर चले जाना, राजनीति का Individualisation करना, निजी अटैक करेंगे आप और मुद्दा उसमें गायब हो जाएगा, क्या आपको लगता है कि रूलिंग पार्टी ने क्या किया कि तुम नॉन issue raise कर रहे हो तो मैं respond क्या करूं तुमसे Dialogue क्या करूं, क्योंकि बहुत ज़्यादा personlise कर दिया नॉन issue को. और जब आप policitise करेंगे तो खेलेगा तो मोदी ही.
शरद पवार : ऐसा है कि issue personalize भी हो गए और अच्छे important issue नज़रअंदाज़ भी किए गए. सदन में किस issue के लिए ज़्यादा संघर्ष करने की आवश्यकता होती है, इस बारे में जब हम ज़्यादा सोचते थे, तब आज देशवासियो के सामने क्या समस्या है. बेरोज़गारी, महंगाई , कानून व्यवस्था की समस्या कई राज्यों में और ऐसी कई समस्याएं हैं. ठीक है एक दो दिन Political issue आते हैं.मगर ये मेजर issue जो आम जनता को तकलीफ़ दे रहे हैं, उनको नज़रअंदाज़ करना ठीक नहीं है. पूरी तरह से नज़रअंदाज़ करने का काम जब होता है तब हम गलत रास्ते पर जा रहे होते हैं. ऐसी सोच हम लोगों में आने की आवश्यकता है.
एनडीटीवी : तो क्या ये कहना सही होगा जो दूसरे बड़े ज्वलन्त मुद्दे नहीं उठाने का दोष कांग्रेस पार्टी का है?
शरद पवार : बात ऐसी है कि मैं किसी एक पार्टी को दोष नहीं दूंगा, क्योंकि अकेले कांग्रेस इसमें नहीं थी left थी बाकि पार्टी थी. सब लोगों ने मिलकर जो major issue है वो थोड़ा दूर करके दूसरे political issues उन्होंने वहां ज़्यादा raise किए, इससे आम जनता की जो समस्याएं हैं वो आज मुख्य मुद्दों से थोड़े दूर हो गए हैं.
एनडीटीवी : ये जो दूसरा issue है उसपे बात करते हैं, एक विदेशी Short seller बज़ार में पैसा कमाने के लिए एक रिपोर्ट लेकर आता है और Indian businessman के ऊपर सवाल खड़ा करता है, इसे हम देश का सबसे बड़ा मुद्दा मान लेते हैं बिना ये देखे कि हमारे Financial system पर, Economy पर business पर investor confidence पर इसका क्या असर पड़ता है. एक मांग रखी थी, मांग ये थी कि SC की जांच या JPC की जांच, SC की जांच हो रही है तो JPC का क्या तुक है?
शरद पवार : आपने जो कहा उसपर एक individual ने कोई बयान दिया, इस बयान पर देश में हंगामा हो गया.ऐसे बयान एक दिन पहले भी किसी ने दिए थे, कुछ दिन सदन में हंगामा भी हुआ था. मगर इस समय और ये issue जो रखी गई वो रखने वाले कौन हैं ये भी सोचने की आवश्यकता थी. हमने कभी इसका नाम भी नहीं सुना था. जिसने ये बयान दिया उसका background क्या है, जब कोई व्यक्ति कोई Issue raise करता है, उसपर देश में हंगामा होता है, इसकी कीमत देश की overall situation, economy, को कितना झेलना पड़ता है. इसको हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं, यहां target किया है ऐसा लगता है, Individual industrial group, इसपर हमला किया गया ऐसा लगता है. ठीक है उन्होंने कुछ गलत किया होगा Enquiry करो जैसी मांग सदन में हो गई, JPC Appoint करो. मेरा कहना अलग था. कई इश्यू पर जेपीसी अप्वाइंट हुई हैं. मुझे याद है एक बार कोका कोला के इश्यू पर जेपीसी हुई थी, जिसका चेयरमैन मैं था. JPC इससे पहले कभी नहीं हुई ऐसा नहीं है, जेपीसी की मांग गलत नहीं होती है. मगर JPC की मांग क्यों की? इसलिए की कि कोई इंडस्ट्रियल हाउस या कोई ऑर्गेनाइज़ेशन इसके बारे में जांच होने की ज़रूरत है. जांच करने के लिए जब ये डिमांड हो गई तब SC ने ख़ुद इनिसिएटिव ले लिया. उन्होंने कमेटी अप्वाइंट की, जिसमें रिटायर्ड SC जज, जानकार, एडमिनिस्ट्रेट, इकोनॉमिस्ट ऐसे लोगों की टीम थी. उनको गाइडलाइन दे दी, समय दे दिया और कहा गया कि आप इसकी जांच करो, हमारे सामने रिपोर्ट रखो. दूसरी तरफ विपक्ष की मांग थी कि पार्लियामेंट की कमेटी अप्वाइंट करो. पार्लियामेंट की कमेटी अप्वाइंट की तो समझो. आज पार्लियामेंट में बहुमत किसका है. रूलिंग पार्टी का, डिमांड किसके खिलाफ़ थी? रूलिंग पार्टी के खिलाफ़ थी. रूलिंग पार्टी के खिलाफ़ जो डिमांड है, जांच करने के लिए जो कमेटी अप्वाइंट करेंगे, इसमें रूलिंग पार्टी की मेजोरिटी रहेगी, तो सच्चाई कहां से कैसे सामने आएगी? इस बारे में आशंका पैदा हो सकती है. इससे सुप्रीम कोर्ट, जिसका इसमें कोई इंट्रेस्ट नहीं है, जिसमें किसी का इंट्रेस्ट नहीं है वो जांच करते तो शायद ज़्यादा सच्चाई देश के सामने आती. और इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने जांच करने की घोषणा के बाद जेपीसी का महत्व नहीं रहा, इसकी आवश्यकता नहीं रही.
एनडीटीवी : आपने सर बहुत गहराई से समझाया कि जेपीसी किस तरह के विषयों के लिए उपयुक्त है, किसके लिए नहीं, तो फिर कांग्रेस पार्टी जानती है राजनीति थोड़ी बहुत, तो फिर जेपीसी के जो पीछे पड़ी है, उसके पीछे इरादा क्या है?
शरद पवार : इरादा क्या है मालूम नहीं लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जज द्वारा अपॉइंट की गई कमेटी की ही इम्पोर्टेंस है ये मालूम है. इसमें जेपीसी ठीक है, चाहें डिस्कशन करना होगा, जेपीसी की एक बात होती है, कि हर दिन जेपीसी में क्या हुआ ये मीडिया में आता है. ये इश्यू और कोई दो चार महीने चलाने की बात किसी के मन में होगी तो वो कर सकते थे. मगर इसमें सच्चाई बाहर आने के लिए फ़ायदा नहीं होता था.
एनडीटीवी : क्या होता है सर चुनाव के पहले विपक्ष को ये लगना स्वाभाविक है, कि सनसनीखेज मुद्दा उठा लें, और रूलिंग पार्टी पर अग्रैसिव हो जाएं, इसका चुनाव में हमें फ़ायदा हो जाए. एक राय ये है और बहुत लोगों से बातचीत के आधार पर ये सवाल मैं आपसे पूछना चाहता हूं, ये मुद्दा चुनावी निरर्थकता का मुद्दा है. आप महाराष्ट्र को बनाने वाले लोगों में से हैं. मॉडर्नाइज़ेशन और बिज़नेस और योजक उनका काम है देश के विकास को आगे बढ़ाना. ऐसे में कांग्रेस जैसी पार्टी, जिसने रिफ़ॉर्म को लीड किया जब वो इतना ऐंटी बिज़नेस, ऐंटी entrepreneur माहौल खड़ा करती है, ये सब घोर आपत्तिजनक है या नहीं?
शरद पवार : मैं ऐंटी बिज़नेस, ऐसी बात हुई है ये मैं स्वीकार नहीं करूंगा. ये इस देश में कई सालों से हो रहा है, मुझे याद है, मुझे याद है कि कई सालों पहले हम लोग जब राजनीति में आए थे. तब सरकार के खिलाफ़ बात करनी हो तो हम लोगों की सब स्पीचेज़ टाटा-बिड़ला के खिलाफ़ थीं, टारगेट कौन था? टाटा-बिड़ला, जब समझदारी आ गई हम लोगों को कि टाटा का योगदान क्या है ये देखने के बाद, क्यों हम टाटा-बिड़ला करते थे ? ये हम समझे नहीं, मगर किसी को तो टारगेट करना था. टाटा-बिड़ला का नाम लेते थे. आज टाटा-बिड़ला का नाम सामने नहीं है. लोगों के सामने दूसरे टाटा-बिड़ला आ गए हैं. इसलिए आजकल सरकार के खिलाफ़ कुछ हमला करना हो तो अदाणी-अंबानी का नाम सामने आता है. सवाल ये है कि जिनके ऊपर आप अटैक करते हैं. उन्होंने अधिकार गलत इस्तेमाल किया, गलत काम किया, ये लोकतंत्र में इनके खिलाफ़ बोलने का अधिकार 100% है. मगर विडाउट डूइंग एनीथिंग हमला करना मैं समझ नहीं सकता. आज पेट्रोकैमिलक सेक्टर में अंबानी का कंट्रिब्यूशन है, ऐसा हम देखते हैं. आज देश को उसकी ज़रूरत है या नहीं, बिजली के क्षेत्र में अदाणी का कंट्रिब्यूशन है. आज बिजली की ज़रूरत देश को है या नही. तो इस तरह की एक ज़िम्मेदारी कुछ काम करके देश की अर्थव्यवस्था, जिसमें लाभ होगा. फ़ायदा होगा, यदि उन्होंने गलत काम किए तो हमला करें, मगर उन्होंने ये सब खड़ा किया इसलिए किसी की आलोचना करना मुझे ठीक नहीं लगता.
एनडीटीवी : इंफ़्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में पहल करने वालों में हिंदुस्तान में महाराष्ट्र सबसे आगे है, ये थोड़ा सा इलज़ाम मैं पॉलिटिकल क्लास पर लगाना चाहता हूं, कि इंफ़्रास्ट्रक्चर जैसे सेक्टर में काम करना कितना मुश्किल है. उसके बाद ये न समझना, लोगों को शिक्षित न करना, ये कितना गंभीर और ज़रूरी काम है? इसमें पूरे पॉलिटिकल क्लास का फ़ेल्योर भी है?
शरद पवार : इसमे मेरा सोचना थोड़ा अलग है, किसी देश को अगर आगे जाना है, तो इंफ़्रास्ट्रक्चर को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते. आज मुंबई एयरपोर्ट है, मुंबई देश का इंटरनेशनल एयरपोर्ट है. आज इसका साइज़ बढ़ाना, इसमें एक हवाई जहाज़ जो लैंड हो सकता है या टेक-ऑफ़ हो सकता है, उसमें बढ़ोतरी करना ज़्यादा फ़ैसिलिटी देना, उसकी ज़रूरत है. मुंबई एक मेजर इंटरनेशनल शहर है. मुंबई देश का एक इकॉनोमिक सेंटर भी है और इनॉनोमिक सेंटर में इफ़ेक्टिव मीन्स ऑफ़ कम्युनिकेशन की आवश्कता है. और इसके लिए कुछ कदम उठाए गए तो इसके रास्ते में रुकावट आना ठीक नहीं होगा. कुछ गलती हो गई, वहां रोकना चाहिए. मगर इंफ़्रास्ट्रक्चर चाहिए, वैसे ही देखिए अभी महाराष्ट्र में एक दो जगह पर पोर्ट बनाने की बात है. सागरी किनारा है, तो सागरी किनारे में इफ़ेक्टिव मीन्स ऑफ़ कम्युनिकेशन के लिए पोर्ट की आवश्यकता है. तो देश में कुछ पोर्ट हो जाएंगे, हवाई जहाज़ हो जाएंगे, हाईवे हो जाएंगे, इसका लाभ देशवासियों को है. इकोनॉमी को है, इसलिए चाहें हाईवे हो, चाहें पोर्ट हों, चाहें एयरपोर्ट हों, चाहें, सिंचाई के प्रोजेक्ट हों, जेनेरेशन ऑफ़ पावर की सेंटर हो, इसकी आज देश में ज़रूरत है. और उसके रास्ते में रुकावट लाना ठीक नहीं है.
एनडीटीवी : सर मैंने जब करियर शुरू किया तो धारावी रिपोर्टर था, और हमेशा आप लोगों के बयान पढ़ता था, धारावी का रिडेवलेपमेंट होगा,कितना ज़रूरी है? सिर्फ़ 40 साल गुज़रे हैं, अब बात हो रही है कि इसका रिडेवलेपमेंट किया जाएगा. इस पर आपकी क्या राय है?
शरद पवार : धारावी हो, मोतीलाल नगर हो, वहां रिडेवलेपमेंट करके एक तो वहां रहने वाले लोगों को अच्छा मकान मिलेगा, मुंबई का जो चेहरा अलग दिखाई देता है, उसमें सुधार होगा. और वहां धारावी में छोटे-मोटे उद्योग बहुत हैं, लोग वहां पर अलग-अलग तरह के बिज़नेस करते हैं. इंडस्ट्री चलाते हैं, कारोबार करते हैं, उन लोगों को एक अच्छा इंफ़्रास्ट्रक्चर मिलेगा, सुविधा मिलेगी, उनकी प्रोडक्टिविटी बढ़ेगी, तो शहर के लिए इस क्षेत्र के लिए फ़ायदे की बात है. आज जो धारावी के बारे में, हमारे मन में हमेशा एक बात आती है कि दूसरे देश के लोग जब हिंदुस्तान आते हैं. मुंबई में आते हैं, तो प्लेन लैंड होते समय उनको धारावी का स्लम दिखाई देता है. ये गलतफ़हमी पैदा होती है, ये दूर करने के लिए वहां रिडेवलेपमेंट कई सालों से चालू है, तो मुझे लगता है ये अच्छी बात है.
एनडीटीवी : अगर कोई विपक्ष यूनिटी नाम की चिड़िया सही में उड़ेगी, तो उसके चीफ़ आर्किटेक्ट आप ही होंगे. अब यूनिटी हो गई पार्लियामेंट वगैरह की, विपक्षी एकता एक सपना ही है, उसकी बात करते रहते हैं?
शरद पवार : विपक्षी एकता की ज़रूरत है. मगर इश्यूज़ के बारे में क्लियरिटी होनी चाहिए. आज क्या हो रहा है, देश का जो विपक्ष है, उसमें अलग एलग इश्यूज़ हैं. हमारे जैसे लोग जो विपक्षी एकता चाहते हैं, मगर हमारा ज़ोर विकास पर है. विपक्षा एकता में हमारे दूसरे भी साथी हैं, और भी चाहते हैं कि विपक्ष एकता हो. मगर उनके मन में एक लेफ़्टिस्ट थिंकिंग कई सालों से रहा है. इससे वो दूर जाने के लिए तैयार नहीं हैं. विपक्षी एकता विद स्पेसिफ़िक प्रोग्राम, स्पेसिफ़िक डायरेक्शन, ये होगी तो कामयाब होगी. यदि स्पेसिफिक प्रोग्राम और डायरेक्शन नहीं होगा तो विपक्षी एकता देश के लिए लाभदायक नहीं होगी.
एनडीटीवी : मसला चुनाव के मैदान में वन ऑन वन कॉन्टेस्ट नहीं होता है और दूसरी बात बीजेपी की चुनौती क्षेत्रीय दल है. आप लोग हैं, कांग्रेस नहीं है, अभी के हल्ले-गुल्ले से सभी को भ्रम हो जाएगा कि वो डोमिनेंट पार्टी है, और वही सबसे रोड़ा बनेगी, इस यूनिटी को डिसरप्ट करने में?
शरद पवार : नहीं ये बात सच है कि पुरानी कांग्रेस पार्टी और आज की कांग्रेस पार्टी में फ़र्क है. मगर साथ साथ कांग्रेस को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते. देश के कई राज्यों में आज भी कांग्रेस है, चाहे, 4 हो 5 हो 6 हो कुछ न कुछ राज्यों में. मगर ये सभी पार्टी नॉन कांग्रेसी, नॉन बीजेपी इनमें से नॉन कांग्रेस लोगों को खाली एक करना चाहिए. ऐसी बात हमारे कुछ साथी करते हैं. मुझे लगता है, इससे ज़्यादा ज़रूरी है कि विपक्षी एकता क्यों है, क्या प्रोग्राम लेंगे, किस रास्ते से जाना है, इसमें क्लैरिटी हो, तो रास्ता निकल सकता है. देश के फ़ायदे की बात हो सकती है मगर अभी तक हम वहां नहीं पहुंचे. ये बात हमें स्वीकार करनी चाहिए.
एनडीटीवी : विधानसभा के चुनाव होने हैं, कर्नाटक और फिर दूसरे राज्यों में भी इसके बारे में आपका अनुमान चाहते हैं?
शरद पवार : मेरा असेसमेंट ये है कि दो किस्म के इलेक्शन हैं. एक नेशनल चुनाव सेंट्रल गर्वमेंट के लिए और एक राज्यों के लिए. मेरा पर्सनल असेसमेंट अलग है. आप शायद स्वीकार नहीं करेंगे. मेरा पर्सनल असेसमेंट है कि राज्य का इलेक्शन अलग है. आप देखेंगे देश और हर राज्य, आप देखेंगे केरल, नॉन बीजेपी. तमिलनाडु नॉन बीजेपी. आंध्र नॉन बीजेपी. तेलंगाना नॉन बीजेपी . कर्नाटक में चुनाव है. मेरा पक्का असेसमेंट है कि वहां कांग्रेस आएगी, नॉन बीजेपी. गुजरात बीजेपी, यूपी बीजेपी, मध्य प्रदेश में सरकार थी कांग्रेस की, कमलनाथ सीएम थे. MLA तोड़कर वहां सरकार बनाई बीजेपी ने. तो वहां चुनाव आएगा तो स्थिति बदल सकती है. राजस्थान नॉन बीजेपी, पंजाब नॉन बीजेपी, दिल्ली नॉन बीजेपी, वहां ममता के यहां नॉन बीजेपी, कई राज्य आप देखेंगे कि राज्यों के चुनाव में नॉन बीजेपी सपोर्ट आ सकती है. ये जैसे मैं कहता हूं आपको वैसे ही, पूरे देश में जब नेशनल चुनाव आएंगे तो हम सब लोग मिलकर कुछ करेंगे, तो बात अलग है. नहीं तो बीजेपी को नज़रअंदाज़ करना इतना आसान नहीं होगा, जब तक हम मिलकर कुछ नहीं करेंगे.
एनडीटीवी : एक सवाल एनसीपी के लिए, एक जगह आप विपक्ष हैं, अभी आप कर्नाटक के बारे में पॉज़िटिव बात कर रहे हैं, और नागालैंड में आप एनडीए के साथ हैं?
शरद पवार : ऐसी बात है, नागालैंड में हमारे 6-7 लोग चुनकर आ गए. नागालैंड मैंने एज़ ए डिफ़ेंस मिनिस्टर एज़ एन सेंट्रल मिनिस्टर वहां की स्थितियां हैंडल की थीं. सेंसेटिव है. वहां कुछ फ़ोर्सेज़ ऐंटी इंडियन है, एक ज़माने में लालडेंगा और कुछ लोग भारत के ख़िलाफ़ कुछ करते थे, जब कुछ ऐसी शक्तियां होती हैं. ऐसे छोटे राज्य में पॉलिटिकल इंटरेस्ट दूर रखकर नेशनल इंटरेस्ट को सामने रखकर कुछ कदम उठाने की ज़रूरत होती है. ये मणिपुर रहता था, मेघालय रहता था, या और कोई राज्य रहते थे, यहां कई फ़ोर्सेज़ ने एक अलगाववाद की भूमिका लेकर एक अलग रास्ता देश के सामने रखने की कोशिश की है और आज भी करते हैं. ऐसे समय मिलकर वहां मज़बूती की हुकूमत वहां देने की आवश्यकता है. कोई छोटे राज्य में इतना कोई देश के ऊपर असर होगा नहीं पॉलिटिकल, मगर ठीक तरह से यदि यहां ध्यान नहीं देंगे तो इसकी क़ीमत देश को और ख़ास तौर से नॉर्थ ईस्ट को चुकानी पड़ेगी.
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