
Operation Sindoor Trademark: भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ एक हमला करने के एक दिन बाद "ऑपरेशन सिंदूर" शब्द के लिए चार ट्रेडमार्क आवेदन दायर किए गए. पहला आवेदन रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड की तरफ से आया, जिसने क्लास 41 के तहत दायर किया, जिसमें मनोरंजन, शिक्षा, भाषा प्रशिक्षण, और प्रकाशन से संबंधित सेवाओं को कवर किया गया. रिलायंस के बाद तीन व्यक्तियों ने भी "ऑपरेशन सिंदूर" शब्द के लिए एक ही क्लास 41 के तहत ट्रेडमार्क आवेदन दिए. इस श्रेणी में मनोरंजन सेवाएं, फिल्म और वेब श्रृंखला उत्पादन, सांस्कृतिक गतिविधियां और भाषा प्रशिक्षण शामिल हैं. 4 में से तीन आवेदन "ऑपरेशन सिंदूर" शब्द चिह्न के लिए हैं.
हालांकि एक आवेदन जिसे मुकेश अग्रवाल ने दायर किया, में ऑपरेशन सिंदूर के लोगों के लिए भी एक दावा शामिल है, जिसे भारत सरकार द्वारा जारी किया गया था. परिणामस्वरूप इस आवेदन को "वियना वर्गीकरण" के साथ टैग किया गया है. यह एक वर्गीकरण है जिसका उपयोग तब किया जाता है जब एक ट्रेडमार्क में दृश्य तत्व जैसे लोगों या डिज़ाइन शामिल होते हैं, जो वियना समझौते के साथ संरेखित होता है.
कोई ऑपरेशन्स के नाम का ट्रेडमार्क ले सकता है?
ऑपरेशन सिंदूर के बाद अनेक ट्रेडमार्क आवेदन प्राप्त हुए हैं, जो नाइस वर्गीकरण के क्लास-41 के तहत आते हैं. इसमें शिक्षा, मनोरजंन, मीडिया और सांस्कृतिक सेवायें आती हैं. ट्रेडमार्क अधिनियम-1999 की धारा-9 (2) (डी) के अनुसार चिन्ह और नाम (अनुचित उपयोग के रोकथाम) अधिनियम 1950 का उल्लंघन करने वाले नामों के ट्रेडमार्क की अर्जी को निरस्त किया जा सकता है.
सरकारी और सैनिक अभियानों के नाम का ट्रेडमार्क नहीं होता. लेकिन ऐसे नाम आमतौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा और देशहित में इस्तेमाल किये जाते हैं. इसलिए ट्रेडमार्क कानून के अनुसार जनता को भ्रमित या गुमराह करने वाले या फिर सरकारी पहचान वाले नामों को ट्रेडमार्क के रुप में पंजीकृत नहीं किया जा सकता.
सरकारी या सैनिक ऑपरेशन्स के ट्रेडमार्क के बारे में क्या हैं नियम
भारत में सैन्य अभियानों का नामाकरण खुफिया, रक्षा या गृह मंत्रालय द्वारा आंतरिक रुप से चुना जाता है. ऐसे नाम प्रतीकात्मक और तटस्थ होते हैं जो सैन्य मिशन की प्रकृति को दर्शाते हैं. लेकिन सैन्य अभियानों के नामकरण में सरकार उन नामों से बचती है जो विवादास्पद हों या फिर जिनका गलत अर्थ में इस्तेमाल होता है. अमेरिका में सैन्य अभियानों के नामाकरण के लिए आंतरिक कोडिंग सिस्टम होता है, लेकिन भारत में इस बारे में स्पष्ट कानूनी व्यवस्था नहीं है.
इस बारे में वियना संधि में क्या प्रावधान है?
वियना वर्गीकरण को वियना समझौते 1973 के अंतर्गत स्थापित किया गया था. इसका इस्तेमाल भारत सहित दुनिया की कई ट्रेडमार्क रजिस्ट्ररियों द्वारा किया जाता है. ट्रेडमार्क के चित्रात्मक घटक जैसे लोगों और प्रतीक चिन्ह के आधार पर ट्रेडमार्क के खोजने और वर्गीकरण में मदद मिलती है. इसकी वजह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डुप्लीकेट ट्रेडमार्क के रजिस्ट्रेशन को रोकने में मदद मिलती है.
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