यमन के हूथी विद्रोहियों ने शनिवार सुबह सऊदी अरब की कच्चे तेल की रिफ़ाइनरी पर ड्रोन हमले किए थे. इससे दुनियाभर में कच्चे तेल की सप्लाई पर असर पड़ेगा और इसके असर से भारत की अछूता नहीं रहेगा. सऊदी तेल कंपनी अरामको ने कहा कि वह अगले करीब दो दिनों तक उत्पादन को कम रखेगी ताकि क्षतिग्रस्त हुए तेल के कुओं की मरम्मत की जा सके. इस हमले के बाद ईरान और अमेरिका एक-दूसरे पर उंगली उठा रहे हैं. वहीं सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री ने शुरुआती अनुमान के आधार पर बताया कि हमले से प्रतिदिन 57 लाख बैरल तेल उत्पादन घट गया है. ईथेन और नेचुरल गैस की सप्लाई भी आधी प्रभावित हुई है. इन हमलों का निशाना सिर्फ़ सऊदी अरब ही नहीं बल्कि दुनिया की तेल सप्लाई और सुरक्षा पर भी था.
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अब सवाल ये है कि सऊदी अरब में तेल उत्पादन पर असर भारत को कितना प्रभावित कर सकता है. आपको बता दें कि भारत दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है. भारत अपनी ज़रूरत का 80% कच्चा तेल आयात करता है. सऊदी अरब कच्चे तेल, रसोई गैस का भारत का दूसरा सबसे बड़ा सप्लायर है. अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की बढ़त का असर भारत के आयात बिल पर अगर एक डॉलर प्रति बैरल बढ़ा तो भारत का बिल सालाना 10,700 करोड़ रुपये बढ़ जाएगा.
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अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पेओ ने एक ट्वीट कर हमले के पीछे ईरान का हाथ बताया. उन्होंने कहा कि सऊदी अरब पर क़रीब सौ हमलों के पीछे ईरान का हाथ है. ईरान ने अब दुनिया की तेल सप्लाई पर हमला किया है. इस बात के सबूत नहीं है कि हमला यमन की ओर से हुआ है. इस बीच ईरान ने अमेरिका के इन आरोपों का सिरे से खंडन कर दिया है. उसने इन आरोपों बेबुनियाद और अर्थहीन बताया है. इस बीच सभी की निगाहें तेल की क़ीमतों पर लगी हैं. कुछ जानकार तो कह रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमतें 10 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ सकती हैं. अगर ऐसा हुआ तो भारत के तेल आयात पर ये एक बड़ा बोझ साबित होगा.
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