केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिख कर लैंड बिल पर राजनीति न करने को कहा है। गडकरी ने आरोप लगाया कि यूपीए का लैंड बिल किसान और विकास विरोधी था जिसमें सुझाव के लिए कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने ही कहा था। गडकरी ने ये चिट्ठी सोनिया गांधी की उन्हें लिखी चिट्ठी के जवाब में लिखी है।
गडकरी ने लिखा, 'लैंड बिल पर राजनीति नहीं बल्कि देश हित की बात होनी चाहिए। यूपीए के क़ानून लागू करने के बाद से एक एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण भी नहीं हुआ। महाराष्ट्र के कांग्रेस मुख्यमंत्री ने ही यूपीए के क़ानून को जटिल और केंद्रीयकृत बताया था। आपकी सरकार ने कोयला खदानों को कौड़ी के भाव निजी कंपनियों को दिया जिससे एक लाख 76 हज़ार करोड़ का नुक़सान हुआ।
उन्होंने आगे लिखा, 'यूपीए की दस साल की नीतियों से युवाओं में बेरोज़गार बढ़ा क्योंकि सरकार ने सिंचाई, सड़क जैसी परियोजनाओं पर ख़र्च होने वाला पैसा वोट लुभाने के लिए ख़र्च किया। लोकतंत्र का तक़ाज़ा है कि बहस होनी चाहिए। मेरी अपील है कि आप खुली बहस करें।'
क्या लिखा था सोनिया ने अपनी चिट्ठी में
गौरतलब है कि 27 मार्च को मोदी सरकार के विवादास्पद भूमि अधिग्रहण विधेयक पर बातचीत की पेशकश को ठुकराते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा था कि किसान विरोधी कानून थोप देने के बाद बहस की बातें करना सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सर्वानुमति बनाने की परंपरा का उपहास करने जैसा है। उन्होंने इस विधेयक को देश की रीढ़ तोड़ने वाला बताते हुए कहा था कि वह कभी इसका समर्थन नहीं कर सकतीं।
सोनिया गांधी ने भूमि अधिग्रहण विधेयक के मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के पत्र का कड़े शब्दों में जवाब देते हुए कहा था, ‘संशोधन आप बिना किसी भी बहस और चर्चा से गुजरे ले आए हैं। सरकार द्वारा मनमाने ढंग से किसान विरोधी कानून थोप देने के बाद बहस की बातें करना राष्ट्रीय महत्व की नीतियां लागू करने के पहले सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सर्वानुमति बनाने की परंपरा का उपहास करने के बाराबर है।’
भूमि विधेयक का विरोध करने वालों को राष्ट्र विरोधी के रूप में पेश करने के लिए सरकार की आलोचना करते हुए सोनिया ने अपने जवाब में कहा था, ‘किसान हमारे देश की रीढ़ हैं और हर हाल में उनके हितों की रक्षा होनी ही चाहिए और इस पर कांग्रेस कोई समझौता नहीं कर सकती। हम इस देश की रीढ़ तोड़ने वाले किसी कानून का कभी समर्थन नहीं कर सकते। इसलिए मैं आपसे आग्रह करती हूं कि संकीर्ण पक्षपातपूर्ण राजनीति से ऊपर पर उठें और 2013 के उस कानून को समग्रता में वापस लाएं जो कि हमारे किसान भाइयों एवं बहनों की भावनाओं और आकांक्षाओं के अनुकूल था।’
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