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This Article is From Aug 05, 2022

नेशनल हेराल्ड बिल्डिंग का भोपाल में हुआ 'दुरुपयोग', हरकत में MP सरकार, कराएगी जांच

मध्य प्रदेश सरकार में नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने आज भोपाल में कहा कि रिपोर्ट आने के बाद इस ज़मीन पर चल रहे कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स को सील कराने की कार्रवाई की जायेगी.

नेशनल हेराल्ड बिल्डिंग का भोपाल में हुआ 'दुरुपयोग', हरकत में MP सरकार, कराएगी जांच
मध्य प्रदेश सरकार इस मामले की जांच कराने वाली है.
भोपाल:

National Herald case: नेशनल हेराल्ड को लेकर दिल्ली में जो बवाल मचा है, उसी नेशनल हेराल्ड अखबार को चलाने वाले एसोसियेटेड प्रेस जर्नल्स को भोपाल में भी एमपी नगर के प्रेस कॉम्प्लेक्स में करोड़ों की ज़मीन कौंड़ियों के दाम मिली है. अब मध्य प्रदेश सरकार इसकी जाँच कराने की बात कह रही है.

मध्य प्रदेश सरकार में नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने आज भोपाल में कहा कि रिपोर्ट आने के बाद इस ज़मीन पर चल रहे कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स को सील कराने की कार्रवाई की जायेगी. करीब दस साल पहले लीज़ खत्म होने के बाद भोपाल विकास प्राधिकरण (BDA) ने जब ये ज़मीन वापिस लेनी चाही तो पता चला वो तो पहले ही दूसरी पार्टियों को बेची जा चुकी है. 

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नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह, ने कहा, "निश्चित रूप जाँच करायेंगे और जाँच कराकर रिपोर्ट आने के बाद इसका अगर कॉमर्शियल उपयोग हो रहा है तो इसको भी सील करने की कार्रवाई होगी". उन्होंने कहा कि जो लोग भी कॉमर्शियल उपयोग कर रहे हैं या जिन्होंने भी किया है, उनके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होगी. 

सिंह ने कहा कि इन लोगों ने हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर जगह ली और फिर कांग्रेस के लोगों ने वो संपत्ति अपने नाम पर करा ली. उन्होंने कहा कि जैसे दिल्ली का नेशनल हैराल्ड का मामला है, वो 5000 करोड़ की संपत्ति है और जैसे काँग्रेस ने राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी के नाम पर करा ली, जबकि वो 3000 स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर वो जगह दी गई थी.

एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) को 1982 में भोपाल में प्रेस कॉम्प्लेक्स में ये जमीन 1 लाख रुपये में ये दी गई थी. उस समय एजेएल अंग्रेजी दैनिक नेशनल हेराल्ड, हिंदी दैनिक नवजीवन और उर्दू दैनिक कौमी आवाज प्रकाशित करता था.

जब 2011 में लीज की अवधि समाप्त हो गई, तो बीडीए के अधिकारी साइट पर गए. वहां उन्होंने पाया कि इसका इस्तेमाल कथित तौर पर समाचार पत्रों के प्रकाशन के बजाय व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा था. 1992 में समाचार पत्रों का प्रकाशन बंद हो चुका था और उसके बाद व्यावसायिक प्रतिष्ठानों ने इसका स्थान लेना शुरू कर दिया था.

बीडीएल ने आरोप लगाया कि एजेएल ने आवंटित भूमि के कुछ हिस्सों को अलग-अलग खरीदारों को बेच दिया. इसके चलते बीडीए ने लीज नवीनीकरण से इनकार कर दिया.

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