कांवड़ विवाद (Kanwar Controversy) को लेकर इन दिनों सियासत गरम है. आरोप-प्रत्यारोप के बीच हरिद्वार के कई ऐसे मुस्लिम परिवार हैं, जिन्होंने भाईचारे की मिसाल कायम की है. दरअसल हरिद्वार (Haridwar) के ज्वालापुर में रहने वाले कई मुस्लिम परिवार हैं, जिन्होंने पिछले कई सालों से अपने हाथों से कांवड़ तैयार कर ना सिर्फ हिंदू-मुस्लिम एकता (Hindu-Muslim unity) की मिसाल पेश की है बल्कि अपने लिए रोजगार भी जुटाया है.
कांवड़ बनाने वाले कुछ कारीगर ऐसे हैं जो कई पीढ़ियों से हर साल इसे तैयार करते हैं. कई तरह के कांवड़ बनाने में माहिर कारीगर मोहम्मद सिकंदर का कहना है कि वे पिछले 35 सालों से कांवड़ बनाते आ रहे हैं. उनसे पहले भी पिछली पीढ़ियां भी यह काम करती थी. रमजान के महीने से कांवड़ बनाने की शुरुआत कर दी जाती है. कांवड़ बनाते वक्त उसमें साफ सफाई और शुद्धता का ख्याल रखा जाता है. कांवड़ मेला आने पर बाजार में जाकर बेचा जाता है.
रमजान के महीने में शुरू करते हैं कांवड़ बनाना
वहीं एक और कांवड़ कारीगर का कहना है कि मैं अपने परिवार के साथ लगभग 30 सालों से इस काम में जुटा हुआ हूं. इस काम को करने से दिल को एक सुकून मिलता है. हमने हिंदू मुस्लिम एकता को कायम रखा है. रमजान में हम लोग कांवड़ बनाना शुरू करते हैं. पूरी शुद्धता के साथ हम इस काम को करते हैं. भगवान शंकर के प्रति हमारे मन में भी आस्था है.
कांवड़ बनाने से मन को सुकून मिलता है : मुस्लिम कारीगर
हरिद्वार के अलावा दूसरे कई शहरों में भी मुस्लिम कारीगर ही कांवड़ बनाते हैं. हरिद्वार के ज्वालापुर क्षेत्र में लालपुल रेलवे लाइन के पास बसी मुस्लिम बस्ती के दर्जनों परिवार पिछले कई दशकों से रंग बिरंगे कांवड़ बना रहे हैं. उनका कहना है कि कांवड़ बनाने से उनके मन को सुकून भी मिलता है और ये उनका रोजगार भी है.
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