एक लाचार और मजबूर पिता रोज अपने कंधे पर एक हाथ से अपने मासूम बेटे को संभालता है और दूसरे हाथ से साइकिल रिक्शे का हैंडल थामता है. राजेश नाम का यह मजबूर पिता रोजाना घर से काम पर निकलते समय अपने छोटे से बेटे को भी साथ लेकर जाता है. शहर भर में साइकिल रिक्शे में घूमकर सवारियों की खोज में लग जाता है. वहीं सवारी मिलने पर एक हाथ से ही रिक्शा चलाकर उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचाने के जतन में जुट जाता है.
दो वक्त की रोटी के लिए राजेश रोज इसी तरह से मेहनत करता है. पेट और परिवार पालने की मजबूरी इंसान से क्या-क्या नहीं कराती, मजबूर राजेश इस बात का जीता जागता उदाहरण है. वहीं इस दौरान उसके मासूम से बच्चे को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है और पूरे दिन पिता के साथ तेज धूप में घूमना पड़ता है. अपने मासूम बेटे को कंधे पर लेकर और एक हाथ से साइकिल रिक्शा चलाते राजेश पर जिसकी भी नजर पड़ती है, उसकी आंखे नम हो जाती हैं.
दुखी की बात ये है कि राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक की तमाम योजनाएं ऐसे लाचार लोगों के पास आकर दम तोड़ देती हैं. सरकारी योजनाओं का फायदा कई लोगों तक पहुंच रहा है. मगर अभी भी कई जरूरतमंदों तक ये योजनाएं नहीं पहुंच पा रही हैं. कुछ दिनों पहले ही देश ने आजादी का अमृत महोत्सव मनाया है. उसके बावजूद भी गरीबी लाचारी और मजबूरी की ऐसी तस्वीरें सामने आ रही है. देश भले की विकास कर रहा है, लेकिन आज भी ऐसे लोग हैं जिन्हें दो वक्त की रोटी नसीब नहीं हो रही है.
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