- मध्य प्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र 5 दिसंबर तक चला और अंतिम दिन सवाल पूछने वाले विधायक अनुपस्थित रहे.
- जिन विधायकों ने सवाल पूछे थे वो सदन से चले गए, वजह शादी का मौसम. विधायकों के घरों में शादी थी इसलिए वो चले गए.
- संसदीय कार्य मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने सत्र की तारीख तय करते समय शादी के मुहूर्त का ध्यान रखने का सुझाव दिया.
मध्य प्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र, 5 दिसंबर तक चला लेकिन एक अजीब मोड़ पर खत्म हुआ. क्योंकि जिन विधायकों ने सवाल पूछे थे वो सदन से गायब हो गए, वजह? शादी का मौसम. दरअसल विधानसभा सत्र के अंतिम दिन सरकार के मंत्री जवाबों के साथ तैयार थे, विभागों के अधिकारी मोटी फाइलें लेकर गैलरी में बैठे थे. मंत्री प्रश्नों का सामना करने को तत्पर थे लेकिन जिन विधायकों ने प्रश्न लगाए थे, वे खुद मौजूद नहीं थे.

कुल 14 विधायक, जिनमें बीजेपी, कांग्रेस और भारत आदिवासी पार्टी के एकमात्र विधायक भी शामिल थे. अपने-अपने सवालों के समय नदारद थे. सवाल पूछने वाला कोई नहीं, जवाब देने वाले सब थे. ये सदन के इतिहास में शायद पहली बार हुआ कि सदन अनिश्चतिकाल के लिए स्थगित हो गया. क्योंकि पूछने वाला कोई था ही नहीं.
"परिवार में शादी हैं"
स्पीकर नरेंद्र सिंह तोमर ने विपक्षी बेंचों की ओर देखा... तो वो खाली दिखी. फिर उन्होंने सदन में अनुपस्थित विधायकों के नाम पढ़कर सुनाए, उम्मीद में कि शायद कोई अंतिम मिनट में दौड़ता हुआ आ जाए. लेकिन कोई नहीं आया. तभी सदन में वह जुमला गूंजा, जिसने दिन को परिभाषित कर दिया. संसदीय कार्य मंत्री कैलाश विजयवर्गीय खड़े हुए और मुस्कराते हुए बोले ... “ माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा आपसे एक निवेदन है कि अगली बार जब भी विधानसभा के सत्र की तारीख हम निर्धारित करें तो उसमें विवाह-शादी के मुहूर्त को भी देखना चाहिए. आज हमारे बहुत सारे विधायक यह कहकर गए हैं कि उनके परिवार में शादी है. इसलिए अगली बार हम इस बात का भी ध्यान रखेंगे कि कम से कम उस समय ज़्यादा शादियां न हों, क्योंकि जनप्रतिनिधि होने के नाते सभी को वहां जाना पड़ता है.”
विपक्ष के जिन विधायकों के प्रश्न क्रमांक 14 से 18 और 20 से 25 तक लगे थे, वे सभी गैरहाजिर थे. प्रश्न 2, 7 और 11 के विधायक भी नहीं पहुंचे. हर मंत्री मौजूद था, हर अफसर मौजूद, बस सवाल पूछने वाले ही गायब थे.
स्पीकर ने नाम दोबारा पढ़े कमेलेश्वर डोडियार, कुंवर सिंह टेकाम, राजेंद्र भारती, नारायण सिंह कुशवाह, अतीफ अकील, भूपेंद्र सिंह… सूची लंबी थी. लेकिन कोई असर नहीं हुआ.
विधायक ‘जनप्रतिनिधि' नहीं, ‘बाराती' बनकर निकले
सदन में एक अनोखी एकजुटता भी दिखी, सभी दलों के विधायक ‘जनप्रतिनिधि' नहीं, ‘बाराती' बनकर निकले थे. सदन के बाहर इस घटना ने बड़ी बहस छेड़ दी है. चुने हुए प्रतिनिधियों की प्राथमिकताएं आखिर क्या हैं? आलोचक कह रहे हैं कि प्रश्नकाल लोकतंत्र की जवाबदेही का सबसे महत्वपूर्ण मंच है, जिसे शादी के निमंत्रणों के आगे कुर्बान कर दिया गया. वहीं समर्थक तर्क दे रहे हैं कि शादी का मौसम चरम पर है और जनप्रतिनिधियों से अपेक्षा की जाती है, बल्कि दबाव होता है कि वे अपने क्षेत्रों में होने वाले विवाह समारोहों में शामिल हों. इस तरह शीतकालीन सत्र का अंत बहस से नहीं, बरात से हुआ…
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