हार्ट अटैक से होने वाली आधे से अधिक मौतें इसलिए होती हैं, क्योंकि लोगों को उन संकेतों और लक्षणों के बारे में पता नहीं होता है, जिन पर गोल्डन आवर के दौरान ध्यान देने की आवश्यकता होती है. एम्स दिल्ली के डॉक्टरों द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि कार्डियक और स्ट्रोक आपात स्थिति वाले रोगियों का एक छोटा हिस्सा ही स्वास्थ्य सुविधाओं तक जल्दी पहुंचता है. एम्स कम्युनिटी मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. आनंद कृष्णन ने NDTV को स्टडी के बारे में विस्तार से बताया. इस स्टडी को एम्स के तीन विभागों कार्डियोलॉजी, न्यूरोलॉजी और कम्युनिटी मेडिसिन ने किया है.
डॉ. आनंद कृष्णन ने बताया कि ये स्टडी हमने बल्लभगढ़ ब्लॉक फरीदाबाद में की थी. ब्रेन अटैक या हार्ट अटैक से जो मरे उनका हमने सोशल ऑडिट किया. इस स्टडी का उद्देश्य ये पता लगाना था कि क्या समय से मरीज अस्पताल पहुंचे? इलाज में क्या दिक्कतें आईं या देरी की वजह क्या रही? हमने देखा कि करीब 10 फीसद लोग ही एक घंटे से पहले अस्पताल पहुंचे. एक घंटा बहुत महत्वपूर्ण होता है, चाहे वह हार्ट अटैक हो या स्ट्रोक. मरीज को जितनी जल्दी इलाज मिलेगा, परिणाम उतना बेहतर होगा.
उन्होंने बताया कि पहले एक घंटे में मुश्किल से 10 प्रतिशत लोग अस्पताल पहुंचे. वहीं, 30-40 फीसद लोगों ने तो अपनी वजह से देरी नहीं की. 55 प्रतिशत ने अपनी तरफ से देरी की, ये समझने में कि उनको क्या बीमारी है. दिल का दौरा है या स्ट्रोक या मामूली दर्द है. उन्होंने अस्पताल जाएं, न जाएं ये असमंजस में देरी कर दी. ये चिंताजनक बात है कि लोग समझ नहीं पाए. कुछ लोगों ने तकलीफ होने पर अस्पताल जाने के बारे में सोचा भी तो गाड़ी, पैसे की परेशानी आई, तो इसकी वजह से 20-30 % लोग नहीं जा पाए. जाना चाहते थे पर साधन या अस्पताल जाना मुमकिन नहीं हो पाया. लोगों को अस्पताल पहुंचने में वित्तीय परेशानी, ज्योग्राफिकल या फिजिकल एक्सेस का इश्यू भी रहा. मुश्किल से 10 प्रतिशत ऐसे थे, जिनको अस्पताल पहुंचने के बाद देरी हुई. वो हेल्थ सिस्टम के रिस्पांस की देरी है.
ऐसे की गई स्टडी...
उन्होंने बताया कि एक साल में फरीदाबाद में जो मौतें हुईं, उसको लेकर स्टडी की गई. ये स्टडी कोरोना महामारी से पहले शुरू की गई थी और डेटा जमा करते-करते कोविड-19 तक पहुंच गए थे. ये साल 2020-2021 का डेटा है. स्टडी शुरू करीब 4 हजार डेथ्स से की गई. इसमें करीब 400 डेथ्स का हमने सोशल ऑडिट किया. 435 मौतों की स्टडी की गई. इसमें मृतक के परिवार से विस्तार में बातचीत की गई. ये पूरी स्टडी आईसीएमआर द्वारा फंडेड थी. हमारी स्टडी में जो आकंड़े सामने आए हैं, उनका प्रतिशत देश के तमाम हिस्सों में कुछ ऐसा ही मिलेगा. थोड़ा आगे पीछे हो सकता है. पहले स्टडी हॉस्पिटल पर आधारित थीं, ये पहला सर्वे है जो कम्युनिटी में जाकर किया गया.
डॉ. आनंद कृष्णन ने कहा कि आंकड़े कहते हैं, हमें संदेह के मामलों को गंभीरता से लेना होगा. कई बार ये घातक साबित होते हैं. हमें छाती में दर्द में किसी से संपर्क करना चाहिए, खासकर बाईं तरफ का दर्द खतरनाक साबित हो सकता है. वैसे न सारे हार्ट अटैक में चेस्ट पैन होता है और न हर छाती में दर्द हार्ट अटैक होता है। कोई पहचाने का फूल प्रूफ तरीका नहीं है, तो हमें इन्हें बेहद गंभीरता से लेना होगा. पहले से आपको रक्तचाप की परेशानी है, तो आपको ज्यादा अलर्ट रहना चाहिए और डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. अस्पताल भी उसमें जाना चाहिए, जहां पता हो कि तुरंत रिस्पॉन्स हो सके. कहीं ईसीजी नहीं होता, तो कहीं हार्ट अटैक के मामलों को नहीं देखते हैं, तो उस स्थिति में मरीज को रेफर करने में देरी होती है. सही अस्पताल में भी पहुंचना भी उतना ही जरूरी है, जितना ये समझना की हार्ट अटैक है.
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