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फट गई धरती, कुएं सूखे..., महाराष्ट्र के 70 फीसदी हिस्से में सूखा, पानी के लिए मच रहा हाहाकार

महाराष्ट्र की हकीकत ये है कि यहां का 70 फीसदी से ज्यादा हिस्सा सूखे की चपेट में है और इस सूखे ने राज्य के लगभग सभी इलाकों को प्रभावित किया है. लेकिन चुनावी शोर में भी इसका कहीं जिक्र नहीं हो रहा है.

फट गई धरती, कुएं सूखे..., महाराष्ट्र के 70 फीसदी हिस्से में सूखा, पानी के लिए मच रहा हाहाकार
सूखे की मार झेल रहा है महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में एक तरफ आसमान से आग बरस रही है तो दूसरी ओर जमीन पर लोग पानी के लिए तरस रहे हैं. राज्य का तीन चौथाई हिस्सा सूखे की मार झेल रहा है. कई जिलों में लोगों की जिंदगी टैंकर्स पर निर्भर है. सूखे ने लोगों की जेब पर भी चोट की है. कहीं घरों के बाहर टंकियों की कतार है, तो कहीं पानी के टैंकर का इंतजार है. कहीं बाल्टी भर पानी के लिए चीख पुकार है तो कहीं झीलों को बारिश की दरकार है. कुछ ऐसी हालत है कि महाराष्ट्र के नासिक जिले की. महाराष्ट्र में चुनावी शोर के दौरान राज्य की एक कड़वी हकीकत को आवाज नही मिल सकी.

महाराष्ट्र का 70 फीसदी से ज्यादा हिस्सा सूखे की चपेट में

दरअसल यहां कि हकीकत ये है कि महाराष्ट्र का 70 फीसदी से ज्यादा हिस्सा सूखे की चपेट में है और इस सूखे ने राज्य के लगभग सभी इलाकों को प्रभावित किया है. लेकिन चुनावी शोर भी इसका कहीं जिक्र नहीं हो रहा है. तीसगांव बांध में जलस्तर शून्य पर पहुंच चुका है. बंजर जमीन सी शक्ल ले चुका ये बांध जिले के उन चौबीस बांधों में से एक है जो उत्तरी महाराष्ट्र के इस जिले को पानी पहुंचाते हैं. बांधों की ऐसी हालत ने जिले के गांवों में हाहाकार मचा दिया है.

गावों के कुएं सूखे, बिजली की कटौती ने बढ़ाई और परेशानी

कुछ ऐसी ही तस्वीर पेठ तहसील के आदिवासी इलाके की है. गांव का कुआं सूख गया तो किसी तरह से ग्राम पंचायत ने पास की दमनगंगा नदी से पानी पंप करके इस कुएं में डाला. चूंकि इस इलाके में बिजली की किल्लत रहती है और ये नही पता होता कि बिजली कब आयेगी और पंप कब चलेगा, गांव वालों की भीड़ ड्रमों, बाल्टियों, मटकों और छोटे मोटे बर्तनों के साथ उमड़ पड़ी.

ढाई सौ गांव पानी के लिए पूरी तरह से टैंकर पर निर्भर

इसी नासिक जिले की दूसरी तस्वीर सिन्नर की है. इस तहसील के ढाई सौ गांव पानी के लिए पूरी तरह से टैंकर पर निर्भर हैं. पानी की किल्लत इतनी है कि लोग अपने घरों में मेहमानों को नहीं ठहराना चाहते. सिन्नर निवासी सुवर्णा धुमाले ने कहा कि हम मेहमानों को एक दिन के बाद विदा कर देते हैं. वहीं सुनीता धुमाल का कहना है कि ये ठीक नहीं लगता, लेकिन मेहमानों को पानी की वजह से रख नहीं सकते.

पानी की किल्लत से परेशान लोग

टैंकरों की हलचल इन दिनों जिले के मनमाड शहर में भी बढ़ी हुई है, यहां हालत इतने खराब हैं कि नगरपालिका की ओर से बीस से पच्चीस दिन के बाद लोगों तक पानी पहुंचता है. इसलिए लोगों को निजी टैंकर मंगवाने पड़ते हैं. यहां रहने वाली रुखशाना सैयद के घर के बाहर मौजूद ये तमाम टंकियां खाली पड़ीं हैं. इन्हे इंतजार है निजी टैंकर का, क्योंकि तीन हफ्ते बाद मिलने वाले नगरपालिका का पानी रुखशाना के आठ लोगों के परिवार के लिए नाकाफी होता है. रुखशाना की तरह इस बस्ती के हर परिवार की यही कहानी है.

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मनमाड में घर छोड़ने की सोच रहे हैं लोग

मनमाड की आंबेडकरनगर बस्ती में महाराष्ट्र के सूखे की एक तस्वीर देखने मिलती है. इस पूरी बस्ती में हर घर के बाहर टंकियों की कतार लगी हुई है. मनमाड में रहने वाली अलका साबले ने अपने घर के हर बर्तन में पानी सहेज रखा है जिसे इन्हे अगले कई दिनों तक चलाना है. अलका का परिवार अब शहर छोड़ कहीं और बसने की सोच रहा है और इसकी वजह है पानी. सूखाग्रस्त इलाकों में लोगों पर दोहरी मार पड़ रही है. यहां टैंकर्स के जरिए लोगों को कामचलाऊ मात्रा में पानी तो मिल जाता है लेकिन ये पानी मुफ्त में नहीं आता, इससे लोगो की जेब में सुराख हो जाता है.

पानी खरीदने में खर्च हो रही है लोगों की गाढ़ी कमाई

गृहिणी अलका साबले ने कहा कि पीने के पानी के लिये जार खरीदने पडता है क्योंकि पानी में मिट्टी आती है. चिराग तले अंधेरा वाली कहावत नासिक में त्रयंबक के पास सच होती नजर आती है. यहां उन लोगों को भी पानी नहीं मिल रहा जो कि वैतरणा तालाब के करीब रहते हैं. तालाब का जलस्तर घटने की वजह से पानी सप्लाई में कटौती हुई है. पास के बेगलवाडी गांव में रहने वाली सीमा आचारे को आज खाली बर्तन लेकर वापस घर लौटना पड रहा है.

मुंबई को पानी सप्लाई करने वाले ज्यादातर तालाब नासिक जिले में

कई दिनों के बाद प्रशासन की ओर से सडक किनारे इस टंकी में पानी छोडा गया था, लेकिन जब तक सीमा की बारी आती, पानी खत्म हो गया. मुंबई को पानी सप्लाई करने वाले ज्यादातर तालाब नासिक जिले में है. ये वैतरणा तालाब उन्ही में से एक है, तालाब का जलस्तर इतना घट गया है कि अगर वक्त पर बारिश न हुई तो यहां मैदान नजर आएगा. आमतौर पर सूखे की ज्यादा मार मराठवाडा, विदर्भ और पश्चिमी महाराष्ट्र पर ज्यादा पडती है लेकिन इस बार इस बार उत्तर महाराष्ट्र का नासिक भी इससे अछूता नहीं रहा.

महाराष्ट्र के प्रमुख बांधों में 23 फीसदी पानी ही बचा

इसका कारण है कि पिछले साल यहां होने वाली औसत बारिश की सिर्फ 56 फीसदी बारिश ही हुई. 42 डिग्री तक पहुंचे तापमान ने भी बांधों में मौजूद पानी को भाप में बदलने का काम रफ्तार से किया. अब महाराष्ट्र के प्रमुख बांधों में 23 फीसदी पानी ही बचा है. राज्य के सूखा प्रभावित 25 जिलों में रोजाना साढे तीन हजार टैंकर पानी सप्लाई कर रहे हैं. पिछली बार इतने बिकट हालात 2013 में हुए थे.

गर्मी ने और बढ़ाई मुसीबत

नासिक शहर गोदावरी नदी के किनारे बसा है और इसी नदी पर बनाया गया है ये गंगापुर बांध. इस बांध में इसकी क्षमता का सिर्फ 25 फीसदी पानी ही बचा है जो कि सिर्फ 12 जुलाई तक ही चल पायेगा. महाराष्ट्र में हालात को बद से बदतर किया है ग्रीष्म लहर ने. कई इलाकों में तापमान 40 डिग्री पार कर चुका है. ऐसे में अगर मानसून राज्य में वक्त पर दस्तक नहीं देता है तो लोगों की परेशानी और बढ जायेगी. तीन-चार महीने में ही महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी और उस दौरान अगर ऐसी स्थिति बरकरार रही तो सूखा एक बडे चुनावी मुद्दे के तौर पर भी नजर आयेगा.

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