
तमिलनाडु की सत्तारूढ़ डीएमके सरकार ने मुफ्त 'रेवड़ी' के मामले में उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की है. याचिका में कहा गया है कि मुफ्त 'रेवड़ी' का दायरा बहुत व्यापक है और "ऐसे कई पहलू हैं जिन पर विचार करने की आवश्यकता है." बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट पहले से ही भाजपा के अश्विनी उपाध्याय की एक याचिका पर सुनवाई कर रही है. जिसमें चुनाव के समय मुफ्त उपहार के वादे को चुनौती दी गई है. उस याचिका में कहा गया है कि यह प्रथा किसी राज्य पर वित्तीय बर्बादी ला सकती है. इससे पहले अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, जो अपने शासन वाले राज्यों में मुफ्त बिजली और पानी उपलब्ध कराने के लिए जानी जाती है, ने याचिका के रुख को चुनौती दी थी.
गौरतलब है कि तमिलनाडु उन राज्यों में से एक है जहां चुनाव के समय मुफ्त उपहारों का उपयोग पारंपरिक रहा है. पार्टी लाइनों से परे. चुनाव से पहले भी, कभी-कभी आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करते हुए लोगों के बीच कपड़े, भोजन और घरेलू सामान वितरित किए जाते हैं. ज्ञात हो कि चुनावों के बाद, सरकारों ने लगातार भोजन और अन्य वस्तुओं पर भारी सब्सिडी प्रदान की है. विपक्षी अन्नाद्रमुक की दिवंगत मुख्यमंत्री जे जयललिता को उनकी "अम्मा कैंटीन" के लिए जाना जाता था, जहां चंद रुपये में भरपेट भोजन किया जा सकता था.
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की डीएमके ने आज अपनी याचिका में तर्क दिया कि केवल राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजना को फ्री बी के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है. याचिका में कहा गया है, "केंद्र में सत्तारूढ़ सरकार विदेशी कंपनियों को टैक्स में छूट दे रही है, प्रभावशाली उद्योगपतियों के कर्ज की माफी की जा रही है."
याचिका में यह भी कहा गया है कि एक कल्याणकारी योजना में, "आय, स्थिति, सुविधाओं और अवसरों में असमानताओं को कम करने के लिए" संविधान के अनुच्छेद 38 के तहत एक सामाजिक व्यवस्था और आर्थिक न्याय को सुरक्षित करने के इरादे से मुफ्त सेवा शुरू की गई है. याचिका में कहा गया है कि किसी भी हालत में इन सुविधाओं को 'फ्रीबी' नहीं कहा जा सकता है.
गौरतलब है कि पहले की एक सुनवाई में, CJI की अगुवाई वाली पीठ ने कहा था कि मुफ्त का प्रावधान एक गंभीर आर्थिक मुद्दा है और चुनाव के समय "फ्रीबी बजट" नियमित बजट से भी ऊपर चला जाता है.
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