कानूनी समाचार वेबसाइट बार एंड बेंच के अनुसार, भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को "कानून और नैतिकता" पर एक भाषण में कहा कि भारत में सैकड़ों युवाओं की हत्या सिर्फ ऑनर किलिंग के लिए होती है. इनकी हत्या का कारण सिर्फ यह होता है कि वे किसी से प्यार करते हैं या अपनी जाति के बाहर शादी करते हैं या अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध शादी करते हैं. नैतिकता से जुड़े कई मामलों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 'ब्रेस्ट टैक्स', समलैंगिकता को आपराधिक बनाने वाली धारा 377, मुंबई में बार डांस पर प्रतिबंध जैसे मापदंड मजबूत समूह तय करते हैं और कमजोर समूहों पर हावी होते हैं.
CJI ने कहा, "कमजोर और हाशिए पर रहने वाले सदस्यों के पास अपनाअस्तित्व बचाने के लिए अपनी संस्कृति खोने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. समाज के कमजोर वर्ग उत्पीड़क समूहों के हाथों अपमान और अलगाव के कारण एक अलग संस्कृति उत्पन्न करने में असमर्थ हैं. कमजोर समूह अगर अलग संस्कृति बनाते भी हैं तो सरकारी समूहों द्वारा उन्हें और अलग-थलग करने के लिए प्रबल प्रयास किया जाता है." CJI ने कहा, "कमजोर समूहों को सामाजिक संरचना के निचले पायदान पर रखा गया है, और उनकी सहमति को दरकिनार किया गया है. क्या यह आवश्यक है कि जो मेरे लिए नैतिक है, वह आपके लिए नैतिक हो?" सीजेआई ने एक खबर का हवाला दिया, जिसमें बताया गया था कि कैसे 1991 में उत्तर प्रदेश में एक 15 वर्षीय लड़की को उसके माता-पिता ने मार डाला था. खबर में बताया गया था कि ग्रामीणों ने अपराध स्वीकार कर लिया है.
CJI ने कहा, "उनके कार्य (उनके लिए) स्वीकार्य और न्यायसंगत थे, क्योंकि उन्होंने उस समाज के आचार संहिता का अनुपालन किया, जिसमें वे रहते थे. हालांकि, क्या यह आचार संहिता है? जिसे तर्कसंगत लोगों द्वारा आगे रखा गया होगा." CJI मुंबई में बॉम्बे बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित अशोक देसाई मेमोरियल लेक्चर दे रहे थे. अशोक देसाई भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल थे. अपने भाषण के दौरान, CJI ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर भी प्रकाश डाला, जिसने भारत में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था. उन्होंने कहा, "हमने अन्याय को सुधारा. भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 बीते युग की नैतिकता पर आधारित थी. संवैधानिक नैतिकता व्यक्तियों के अधिकारों पर केंद्रित है और इसे समाज की लोकप्रिय नैतिकता धारणाओं से बचाती है."
व्यभिचार को दंडित करने वाली आईपीसी की धारा 497 को सर्वसम्मति से रद्द करने वाले संविधान पीठ के फैसले पर उन्होंने कहा, "एक प्रगतिशील संविधान के मूल्य हमारे लिए एक मार्गदर्शक शक्ति के रूप में काम करते हैं. वे बताते हैं कि हमारे व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन से संविधान अलग नहीं है. भारतीय संविधान को लोगों के लिए नहीं बनाया गया था, जैसा कि वे थे, बल्कि उन्हें कैसा होना चाहिए, इसके लिए बनाया गया था." उन्होंने कहा, "यह हमारे मौलिक अधिकारों का ध्वजवाहक है. यह हमारे दैनिक जीवन में हमारा मार्गदर्शन करता है."
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