शोपियां जिले के चौधरीगुंड गांव की आखिरी कश्मीरी पंडित डॉली कुमारी थीं. कल शाम, वह भी घाटी छोड़कर चलीं गईं. कश्मीर में टार्गेट किलिंग के बाद सात परिवार गांव से चुपचाप जम्मू चले गए. गांव छोड़ने पर डॉली ने कहा, मैं और क्या कर सकती थी. वहां डर का माहौल है.
डॉली ने कहा कि वह बहादुर बनने की कोशिश कर रही थीं. अन्य परिवारों के गांव छोड़ने के बाद भी मैंने रुकने का फैसला किया. यह सोचकर कि कुछ दिनों में हालात सामान्य हो जाएंगे. हालात सामान्य होने पर मैं जरूर आऊंगी. कौन अपना घर छोड़ना चाहता है. सभी को अपना घर पसंद है. एनडीटीवी से बात करते हुए डॉली ने कहा, अपना घर छोड़ते हुए मुझे बहुत दुख है.
15 अक्टूबर को चौधरीगुंड में कश्मीरी पंडित पूरन कृष्ण भट्ट की हत्या कर दी गई थी. उससे दो महीने पहले, शोपियां के छोटीगम गांव के सेब के बाग में एक कश्मीरी पंडित की हत्या कर दी गई थी. डॉली ने कहा, मुझे बताओ, जब ऐसी घटनाएं होती हैं तो क्या आप नहीं कापेंगे और डरेंगे. पंडितों के घर अब बंद हैं. वे अपनी सेब की उपज तक को बेचने के लिए नहीं रुके. उन्होंने गांव में सेब के हजारों बक्सों को पड़ोसियों के हवाले कर मंडी में बेचने को कहा है.
चौधरीगुंड और छोटीपोरा गांवों में 11 पंडित परिवार थे. अब सभी जम्मू चले गए हैं. एक ग्रामीण गुलाम हसन ने डॉली को उसके भाई गांव से बाहर जाने को कहा था. गुलाम ने ही डॉली के परिसर की बाड़ लगाने में मदद की थी. गुलाम ने कहा, पूरन कृष्ण इस गांव में सबसे अच्छे इंसान थे.यह बहुत दुखद है कि उनकी हत्या कर दी गई. हाल में हुई हत्याओं के बाद पंडित असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. इनमें से कोई भी परिवार आतंकवाद और अशांति के चरम के दौरान भी पलायन नहीं किया था.
जिला प्रशासन ने हालांकि, इस बात से इंकार किया कि पंडित परिवार डर की वजह से गांव छोड़कर जा रहे हैं. जिला प्रशासन ने कहा कि रिपोर्ट निराधार है. प्रशासन ने उचित और मजबूत सुरक्षा इंतजाम किए हैं. जिले में कटाई के बाद और सर्दियों में कई लोग जम्मू चले जाते हैं.
गांव के एक पूर्व सैनिक गुलाम हसन वागे ने कहा कि हाल में हुई टार्गेट किलिंग के बाद पंडितों ने डर की वजह से घर छोड़ दिया है. टार्गेट किलिंग के डर से लगभग 6,000 कश्मीरी पंडित कर्मचारी अपने कार्यालय नहीं जा रहे. इन्हें केंद्र की विशेष रोजगार योजना के तहत घाटी में नौकरी मिली थी. यह सभी जम्मू में ट्रांसफर मांग रहे हैं.
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