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This Article is From May 03, 2023

5 फैक्टर, जिनके जरिए कर्नाटक चुनाव के अनुमानों को गलत साबित कर सकती है बीजेपी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर्नाटक में 'बहुमत से कम नहीं' हासिल करने के मिशन पर हैं. चुनावी अभियान के आखिरी दिनों में पीएम राज्य में ताबड़तोड़ रैलियां और रोड शो कर रहे हैं. यहां हम आपको ऐसे 5 फैक्टर बता रहे हैं, जो कर्नाटक के चुनाव नतीजों को बदल सकते हैं:-

5 फैक्टर, जिनके जरिए कर्नाटक चुनाव के अनुमानों को गलत साबित कर सकती है बीजेपी
कर्नाटक चुनाव के लिए पीएम मोदी ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं.
नई दिल्ली:

दक्षिण का एकमात्र राज्य कर्नाटक (Karnataka Assembly Elections 2023) हमेशा से ही बीजेपी की प्रयोगशाला रही है. कर्नाटक के इतिहास को देखने से पता चलता है कि 38 वर्षों में किसी भी सत्तारूढ़ दल ने यहां सत्ता बरकरार नहीं रखी है. ऐसे में शायद बीजेपी के लिए इस बार सबसे बड़ी चुनौती कर्नाटक में सत्ता बरकरार रखने की ही है. 

कर्नाटक में चुनाव अभियान खत्म होने में पांच दिन बाकी हैं. चुनाव से पहले कई जनमत सर्वेक्षणों में बीजेपी के लिए अच्छी खबर नहीं आई है. कई ओपिनियन पोल और सर्वे में कांग्रेस के बहुमत की ओर बढ़ने के संकेत दिए गए हैं. बेशक यह जमीन पर वास्तविक स्थिति की सबसे सटीक तस्वीर नहीं हो सकती है, क्योंकि पिछले चुनावों में कई उदाहरणों से पता चला है कि अंतिम परिणाम बदल जाते हैं. वोटर्स कनेक्ट और बूथ मैनेजमेंट में बीजेपी अक्सर कांग्रेस से बेहतर साबित होती है. इसके साथ ही चुनावी मैदान में किसी तीसरी छोटी पार्टी के साथ मुकाबले में बीजेपी को अक्सर फायदा होता है.

कर्नाटक में खास तौर पर कांग्रेस को निर्वाचन क्षेत्र के स्तर पर अपने वोट शेयर को सीट शेयर में बदलने की चुनौती का सामना करना पड़ता रहा है. इसके लिए पार्टी को पिछले चुनावों में भी संघर्ष करना पड़ा था.

कर्नाटक के राजनीतिक इतिहास को देखें, तो पता चलता है कि कोई भी मुख्यमंत्री कर्नाटक में सत्ता बरकरार रखने में सक्षम नहीं रहा है. इसलिए बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती है. इसके बाद भी यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि बीजेपी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में सत्ता में वापस आ गई थी. पार्टी ने त्रिपुरा और गोवा दोनों में स्पष्ट बहुमत हासिल किया, जहां चुनावकर्ताओं ने कड़ी लड़ाई की भविष्यवाणी की थी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कर्नाटक में 'बहुमत से कम नहीं' हासिल करने के मिशन पर हैं. चुनावी अभियान के आखिरी दिनों में पीएम राज्य में ताबड़तोड़ रैलियां और रोड शो कर रहे हैं.

यहां हम आपको ऐसे 5 फैक्टर बता रहे हैं, जो कर्नाटक के चुनाव नतीजों को बदल सकते हैं:-

मोदी फैक्टर
कोई चुनाव लड़ने और जीतने के लिए बीजेपी के लिए सबसे बड़ा साथ 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी' का है. पिछले दो हफ्तों में पीएम ने राज्य में अपने चुनावी अभियान को बढ़ाया है. वह मतदाताओं से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं. उनसे "डबल-इंजन सरकार" के लिए वोट करने की अपील कर रहे हैं. पीएम मोदी ने मंगलवार को मध्य कर्नाटक में अपने रोड शो में अभिवादन करती उत्साहित भीड़ को आश्वासन दिया- "मैंने आपको देखा है. अगर आप अपने हाथ लहराना बंद नहीं करते हैं, तो आपकी बाहें दुखने लगेंगी." मंगलवार को होसपेट में जनसभा के बाद पीएम मोदी ने पार्टी कार्यकर्ता की पीठ थपथपाने का इशारा किया. ये कार्यकर्ता पीएम मोदी के भाषणों का कन्नड़ में अनुवाद कर रहा था.

पीएम मोदी के प्रचार अभियान को तेज करने के बाद टिकट न मिलने से नाराज पार्टी नेताओं की शिकायतों से भी ध्यान हटा दिया है. अब शुक्रवार से रविवार तक पीएम मोदी के राज्य में कैंपेन करने, विभिन्न स्थानों पर रैलियों को संबोधित करने और बेल्लारी, शिवमोगा, बादामी, नंजनगुड के महत्वपूर्ण जिलों को कवर करने की उम्मीद है. राजनीतिक विशेषज्ञों ने कहा कि कर्नाटक में मोदी फैक्टर मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है. इसके परिणामस्वरूप बीजेपी के लिए वोट शेयर में उछाल आता है. पीएम ने हाल ही में लगभग 53000 बूथ कार्यकर्ताओं को वर्चुअली संबोधित किया और उन्हें राज्य के लिए अपने दृष्टिकोण को पूरा करने में भागीदार बनने के लिए कहा था.

वोट शेयर vs सीटें
कर्नाटक एक ऐसा राज्य है, जहां पार्टियों का वोट शेयर हमेशा कम रहा है. जनसांख्यिकी चुनाव परिणामों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. राज्यभर में फैली कांग्रेस की तुलना में बीजेपी के पास अक्सर कम वोट शेयर होता है. हालांकि, 1989 से राज्य में बीजेपी का वोट शेयर और वोट टैली लगातार बढ़ रहा है, जिससे पता चलता है कि पार्टी कर्नाटक में अपने वोट बेस का विस्तार कर रही है. बीजेपी के पास सीट शेयर-वोट शेयर अनुपात बहुत बेहतर है. सिर्फ 2013 के आंकड़े इसमें अपवाद हैं. यहां तक ​​कि बहुत कम वोट शेयर के साथ जेडी (एस) भी आनुपातिक रूप से हाई सीट शेयर रखती है. क्योंकि जेडीएस का बेस वोट ओल्ड मैसूरु के विशिष्ट क्षेत्रों में केंद्रित है.

जाति गणना
बीजेपी ने चुनाव के लिए टिकट बंटवारे के केंद्र में जाति को रखा है. पार्टी के नेताओं ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की पहुंच और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) समुदायों के बीच कुछ असंतोष के कारण राज्य में एससी (लेफ्ट) और एससी (राइट) दोनों समूहों के बीच मतभेद की आशंका थी. हालांकि, राज्य सरकार द्वारा घोषित आंतरिक आरक्षण के साथ बीजेपी को इससे फायदा होने की संभावना है. इसके अलावा पार्टी ने लिंगायत समुदायों के वोट बेस को मजबूत करने के लिए काफी कोशिशें की हैं. इसके साथ ही केंद्रीय नेतृत्व ने बीएस येदियुरप्पा को पार्टी के संसदीय बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्त किया. वहीं, लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों के लिए नई आरक्षण नीति लेकर आई. 

येदियुरप्पा यकीनन राज्य में बीजेपी के एकमात्र बड़े नेता हैं, जो राज्य का दौरा कर रहे हैं और लोगों से पार्टी को वोट देने की अपील कर रहे हैं. उन्होंने पिछले तीन हफ्तों में 18 जिलों के 40 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया है, जबकि उनके बेटे बीएस विजयेंद्र ने चुनाव प्रचार समाप्त होने से पहले कम से कम 25 सीटों का दौरा करने का लक्ष्य रखा है. विजयेंद्र शिकारीपुरा से चुनाव लड़ रहे हैं.

बीजेपी के रणनीतिकारों को पता है कि पार्टी को राज्य विधानसभा में अपने दम पर पूर्ण बहुमत नहीं मिला है, लेकिन उनका यह भी मानना है कि 2013 में पार्टी सबसे खराब स्थिति में भी. तब येदियुरप्पा ने पार्टी छोड़ दी थी और अपनी खुद की पार्टी बनाई थी. अगर उस वक्त वे एक साथ लड़े होते, तो 92 सीटों पर जीत मिल सकती थी. अब मोदी मैजिक के अलावा अन्य फैक्टरों में ओल्ड मैसुरु क्षेत्र में बीजेपी का विस्तार और पार्टी का वोटर्स से कनेक्शन बेहतर नतीजे दे सकता है.

मतदान का प्रबंधन
चुनाव को लेकर केंद्र की राजनीति में एक्टिव बीजेपी नेताओं को कर्नाटक में खास जिम्मेदारियां दी गई हैं. इनमें कई सांसद शामिल हैं, जो बीजेपी के लिए मुश्किल मानी जाने वाली सीटों पर डेरा डाले हुए हैं. पार्टी बेंगलुरु पर बहुत अधिक फोकस कर रही है. यहां राज्य की कुल 224 सीटों में से 28 सीटें हैं. पार्टी के लिए बेलगावी भी अहम है, जिसमें 18 सीटें हैं. पीएम मोदी के अलावा, गृह मंत्री अमित शाह भी प्रचार अभियान में लगे हुए हैं. शाह ने ओल्ड मैसूरु से अपना कैंपेन शुरू किया था. पिछले 70 दिनों में वह 20 बार कर्नाटक का दौरा कर चुके हैं. अमित शाह के ज्यादातर कार्यक्रम और सभाएं उत्तर कर्नाटक और उत्तर-मध्य कर्नाटक के लिंगायत बहुल क्षेत्रों में ही रखी गई हैं, जहां पार्टी के लिए लड़ाई मुश्किल मानी जा रही है.

बीजेपी को लगता है कि बीदर, गुलबर्गा, यादगीर, रायचूर, बेल्लारी, दावणगेरे, कोप्पल, बीजापुर, बागलकोट, हावेरी, गडग और धारवाड़ के उत्तर और उत्तर-मध्य जिले के नतीजे जनादेश में निर्णायक साबित हो सकते हैं. पार्टी ने इन जिलों में कांग्रेस को लेकर एक खास काउंटर प्लान तैयार किया है. बीजेपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, "कांग्रेस ने महिलाओं द्वारा संचालित परिवारों को 2000 रुपये मासिक देने का आश्वासन दिया है, लेकिन हम उन्हें बता रहे हैं कि कांग्रेस ने अतीत में कितने वादे किए हैं, जो पूरे नहीं हुए."

बजरंग दल और हिंदुत्व का मुद्दा
कर्नाटक अक्सर हिजाब पर बैन, अज़ान पर एक राजनीतिक बहस और मुस्लिम विक्रेताओं के आर्थिक बहिष्कार जैसे मुद्दों के लिए चर्चा में रहा है. यह अच्छी तरह से जानते हुए कि राज्य में हिंदुत्व की अपनी सीमाएं हैं, बीजेपी ने रणनीतिक रूप से पार्टी की भगवा अपील पर एक स्थानीय जाति गणना को आगे बढ़ाया है. लेकिन कांग्रेस के घोषणा पत्र में बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने और इसकी तुलना अब प्रतिबंधित इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) से करने की मांग ने बीजेपी कार्यकर्ताओं और मतदाताओं में आक्रोश भर दिया है. बीजेपी के एक पदाधिकारी ने कहा, "भगवान हनुमान की जन्मस्थली माने जाने वाले होसपेट में खड़े पीएम ने इसके बारे में बातें की. यह अब यहां एक मुद्दा है."

पीएम मोदी ने बुधवार को तटीय कर्नाटक में अपनी रैली में 'बजरंगबली की जय' का नारा लगाया, जिसके बाद दर्शकों ने जोरदार तालियां बजाईं. पार्टी पदाधिकारियों ने कहा कि यह मामला बीजेपी के अभियान के अंतिम चरण का केंद्र होगा. कांग्रेस को लगता है कि यह मुद्दा मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में कर सकता है, जिसमें ओल्ड मैसूरु भी शामिल है. लेकिन यहां मुसलमानों का एक महत्वपूर्ण वर्ग जेडीएस को वोट देना पसंद करता है. बीजेपी यहां परेशान हिंदू मतदाताओं को लेकर भी चिंतित है.

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