
जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई बुधवार को देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ लेंगे. जस्टिस गवई इस पद पर पहुंचने वाले पहले बौद्ध होंगे. जस्टिस गवई के पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने डॉक्टर बीआर आंबेडकर के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था. जस्टिस गवई सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद तक पहुंचने वाले अनुसूचित जाति के दूसरे व्यक्ति हैं.उनका कार्यकाल 23 नवंबर 2025 को खत्म होगा. सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनने के अगले ही दिन उन्हें वक्फ कानून में हुए संशोधनों को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करनी होगी. आइए देखते हैं कि कैसी रही है जस्टिस गवई की अब तक की यात्रा.
जस्टिस गवई को बनाने में डॉक्टर आंबेडकर की भूमिका
संविधान को सर्वोच्च बताने वाले जस्टिस गवई कई बार बता चुके हैं कि सकारात्मक पहलों ने कैसे उनकी पहचान को आकार दिया है. उन्होंने अप्रैल 2024 में दिए एक भाषण में कहा था, "यह पूरी तरह से डॉक्टर बीआर आंबेडकर के प्रयासों का परिणाम है कि मेरे जैसा कोई व्यक्ति, जो एक झुग्गी बस्ती के नगरपालिका के स्कूल पढ़कर इस पद तक पहुंच सका. जस्टिस गवई ने अपने उस भाषण को 'जय भीम' के नारे के साथ खत्म किया था. इस पर वहां मौजूद लोगों ने खड़े होकर तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनका स्वागत किया था.

जस्टिस बीआर गवई अपने विकास डॉक्टर बीआर आंबेडकर की ओर से किए गए सुधारों का योगदान मानते हैं.
जस्टिस गवई अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाले देश के दूसरे सीजेआई होंगे. उनसे पहले जस्टिस केजी बालाकृष्णन 2007 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने थे. वो तीन साल तक इस पद पर रहे. सुप्रीम कोर्ट की स्थापना 1950 में हुई थी. उसके बाद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग से केवल सात जज ही हुए हैं.
राजनीतिक मामलों में सुनाए फैसले
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस गवई ने राजनीति से जुड़े कई मामलों में फैसले सुनाए, इनमें न्यूज वेबसाइट न्यूजक्लिक के संस्थापक संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से जुड़े मामले शामिल हैं. इन मामलों में जस्टिस गवई के नेतृत्व वाले पीठ ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और धन शोधन निवारण अधिनियम जैसे कानूनों में मनमानी गिरफ्तारी पर फैसले सुनाए. जस्टिस गवई उस पीठ के प्रमुख थे, जिसने नवंबर 2024 में यह माना था कि उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना लोगों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाना रूल ऑफ लॉ के खिलाफ है. जस्टिस गवई सात जजों के उस संविधान पीठ में भी शामिल थे, जिसने अनुसूचित जातियों के आरक्षण में आरक्षण देने की वकालत की थी. कांग्रेस नेता राहुल गांधी को आपराधिक मानहानी के एक मामले में सजा को स्थगित करने वाले बेंच में भी जस्टिस गवई शामिल थे. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता बहाल हुई थी.
जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था. वह अपने तीन भाइयों में सबसे बड़े हैं. जस्टिस गवई के पिता रामाकृष्ण सूर्यभान गवई महाराष्ट्र के दिग्गज नेता थे. वो 1964 से 1994 महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य रहे. इस दौरान वो विधान परिषद के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और विपक्ष के नेता के पद पर रहे. वो 1998 में अमरावती से 12वीं लोकसभा के लिए चुने गए थे. इसके बाद वो अप्रैल 2000 से अप्रैल 2006 तक महाराष्ट्र राज्य से राज्यसभा के लिए चुने गए थे. मनमोहन सिंह की सरकार ने जून 2006 में उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया था. बिहार के अलावा वो सिक्किम और केरल के राज्यपाल रहे. आंबेडकरवादी राजनीति करने वाले रामाकृष्ण सूर्यभान गवई ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) की स्थापना की थी.

जस्टिस बीआर गवई ने अपने वकालत के करियर की शुरुआत स्थानीय अदालतों से शुरू की थी.
घर के कामकाज में मां का हाथ भी बंटाया
भूषण रामकृष्ण गवई को लोग बचपन में भूषण कहकर पुकारते थे. उनके पिता को राजनीतिक गतिविधियों की वजह से अक्सर घर से बाहर रहना पड़ता था. ऐसे में उनका पालन-पोषण मां कमलताई की देखरेख में ही हुआ. अपने भाइयों में सबसे बड़ा होने की वजह से उन्हें जिम्मेदारी भी अधिक उठानी पड़ी. वो घर के कामकाज में अपनी मां की मदद भी किया करते थे. राजनेता का बेटा होने की वजह से भूषण को समाज सेवा का हुनर विरासत में मिला है. भूषण का बचपन अमरावती की एक झुग्गी बस्ती फ्रेजरपुरा में ही बीता. उन्होंने वहीं नगर पालिका के एक स्कूल में शिक्षा पाई. मराठी माध्यम के इस स्कूल की जमीन पर बैठकर उन्होंने कक्षा सात तक की पढ़ाई की. इसके आगे की पढ़ाई उन्होंने मुंबई, नागपुर और अमरावती में पूरी की.
जस्टिस गवई ने बीकॉम के बाद कानून की पढ़ाई अमरावती विश्वविद्यालय से की. लॉ की डिग्री लेने के बाद 25 साल की उम्र में उन्होंने वकालत शुरू की.इस दौरान वो मुंबई और अमरावती की अदालतों में पेश होते रहे. इसके बाद उन्होंने बांबे हाई कोर्ट के नागपुर बेंच का रुख किया. वहां वो सरकारी वकली भी रहे. उन्होंने अपनी टीम खुद चुनी थी. उनकी टीम के सदस्य रहे जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस अनिल एस किलोर बांबे हाई कोर्ट में जज रहे.
भूषण रामकृष्ण गवई कब बने जस्टिस
भूषण रामकृष्ण गवई को 2001 में जज बनाने का प्रस्ताव दिया गया था. लेकिन इस प्रक्रिया में दो साल से अधिक का समय लगा. इस देरी की वजह से उन्होंने जज बनने के लिए दी गई अपनी सहमति वापस लेने के बारे में सोची थी. लेकिन उनके पिता ने उन्हें ऐसा न करने के लिए समझाया. उन्हें 2003 में बांबे हाई कोर्ट का एडिशनल जज और 2005 में स्थायी जज बनाया गया. पिता की देखभाल के लिए उन्होंने 2015 में अपना तबादला बांबे हाई कोर्ट के मुंबई बेंच से नागपुर करवा लिया. उनके पिता का जुलाई 2015 में निधन हो गया था.

जस्टिस बीआर गवई अपने परिवार के राजनीतिक रूझानों को कभी छिपाया नहीं है. उनके पिता महाराष्ट्र के बड़े नेता थे.
जस्टिस गवई का नाम सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप करते हुए सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने कहा था,''उनकी सिफारिश का यह मतलब बिल्कुल भी नहीं निकाला जाना चाहिए कि बांबे हाई कोर्ट के तीन वरिष्ठतम जज (जिनमें से दो मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यरत हैं) जस्टिस गवई से कम उपयुक्त हैं. उनकी नियुक्ति के बाद होगा यह कि सुप्रीम कोर्ट बेंच में करीब एक दशक बाद अनुसूचित जाति वर्ग से संबंधित कोई न्यायाधीश होगा.''
परिवार और राजनीति
इतने लंब करियर में जस्टिस गवई ने अपने परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि का कभी छिपाया नहीं. ताजा मामला राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता खत्म करने वाले आपराधिक मानहानि मामले में सुनाई गई सजा से जुड़ा था. जुलाई 2023 में इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस गवई ने अपने परिवार का कांग्रेस से लगाव होने की वजह से मामले की सुनवाई से हटने का प्रस्ताव दिया था. उन्होंने कहा था,''मेरे पिता कांग्रेस से जुड़े रहे हैं, हालांकि, वह पार्टी के सदस्य नहीं थे लेकिन उसके साथ जुड़े थे. मिस्टर सिंघवी (अभिषेक मनु सिंघवी) आप भी कांग्रेस के साथ 40 साल से जुड़े हैं. मेरा भाई अभी भी राजनीति में है और वो कांग्रेस से जुड़ा है. कृपया आपलोग बताएं कि क्या मुझे इस केस की सुनवाई करनी चाहिए.'' उनके यह कहने पर दोनों पक्षों ने उनके सुनवाई करने को लेकर कोई आपत्ति नहीं जताई थी. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राहुल को सुनाई गई सजा पर रोक लगाई थी. इससे राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता बहाल हो गई थी.
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