भारत देश के सबसे बड़े मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दिल्ली में शनिवार को सद्भावना संसद का आयोजन किया. जिसमें देश के तमाम मौलाना और साधू संत शामिल हुए, जमीयत देश भर में इस साल लगभग 1000 से ज़्यादा शहरों में ऐसी सद्भावना संसद का आयोजन करेगा. जमीयत ने ये फैसला संघ प्रमुख मोहन भागवत के मस्जिद और मदरसे के दौरे के बाद लिया है.
आरएसएस के ‘सर संघचालक' मोहन भागवत कुछ दिन पहले ही मध्य दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित एक मस्जिद में गए थे और उसके बाद उन्होंने उत्तरी दिल्ली के आजादपुर में मदरसा तजावीदुल कुरान का दौरा भी किया था.
इस दौरान, ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइजेशन के प्रमुख उमर अहमद इलियासी ने कहा था, ‘‘भागवत के इस दौरे से संदेश जाना चाहिए कि भारत को मजबूत बनाने के लक्ष्य को लेकर हम सभी मिलकर काम करना चाहते हैं. हम सभी के लिए राष्ट्र सर्वोपरि है. हमारा डीएनए समान है, सिर्फ हमारा धर्म और इबादत के तौर-तरीके अलग-अलग हैं.''
भागवत के दौरे के बाद एक बयान में आरएसएस के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा था कि सरसंघचालक समाज के सभी वर्गों/हिस्सों के लोगों से मिलते हैं. यह सामान्य संवाद प्रक्रिया का हिस्सा है. संघ प्रमुख ने हाल में दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल जमीरउद्दीन शाह, पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी और कारोबारी सईद शेरवानी से मुलाकात की थी.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा था कि भारत की राष्ट्रवाद की संकल्पना ‘वसुधैव कुटुम्बकम' पर आधारित है और यह किसी दूसरे देश के लिये खतरा पैदा नहीं करता और इसीलिए यहां कोई हिटलर नहीं हो सकता है.
उन्होंने कहा, ‘‘हमारा राष्ट्रवाद दूसरों के लिए कोई खतरा पैदा नहीं करता, यह हमारा स्वभाव नहीं है. हमारा राष्ट्रवाद कहता है कि दुनिया एक परिवार है (वसुधैव कुटुम्बकम) और दुनिया भर के लोगों के बीच इस भावना को आगे बढ़ाता है… इसलिए, भारत में हिटलर नहीं हो सकता है और अगर कोई होगा तो देश के लोग उसे उखाड़ फेंकेंगे.'' उन्होंने कहा, ‘‘ विश्व बाजार की बात तो सब लोग करते हैं, केवल भारत ही है जो वसुधैव कुटुम्बकम की बात करता है. केवल इतना ही नहीं, विश्व को कुटुंब बनाने के लिए हम कार्य भी करते हैं. ''
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत की राष्ट्रवाद की अवधारणा, राष्ट्रवाद की अन्य अवधारणाओं से अलग है, जो या तो धर्म पर आधारित हैं या एक भाषा या लोगों के सामान्य स्वार्थ पर आधारित हैं. सरसंघचालक ने कहा कि विविधता प्राचीन काल से ही भारत की राष्ट्रवाद की अवधारणा का हिस्सा रही है और ‘हमारे लिए अलग-अलग भाषाएं और भगवान की पूजा करने के विभिन्न तरीके स्वाभाविक हैं. यह भूमि न केवल भोजन और पानी देती है बल्कि मूल्य भी देती है. इसलिए हम इसे भारत माता कहते हैं. हम इस भूमि के मालिक नहीं हैं, हम इसके पुत्र हैं. ये हमारी पुण्यभूमि है, कर्मभूमि है, ऐसे में हम सभी एक हैं.
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