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This Article is From Feb 09, 2024

लोकसभा चुनाव से पहले जगन रेड्डी और चंद्रबाबू नायडू की BJP से बढ़ती नजदीकियां, क्या हैं मायने?

चंद्रबाबू नायडू ने गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी प्रमुख जेपी नड्डा से मुलाकात की, जबकि जगन मोहन रेड्डी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की

लोकसभा चुनाव से पहले जगन रेड्डी और चंद्रबाबू नायडू की BJP से बढ़ती नजदीकियां, क्या हैं मायने?
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने पीएम मोदी से मुलाकात की.
हैदराबाद:

कुछ ही हफ्तों में होने वाले लोकसभा चुनाव और इसके साथ होने वाले राज्य के चुनाव से पहले ऐसा लगता है कि सत्तारूढ़ बीजेपी दिल्ली में 'स्वयंवर' करा रही है. लगता है बीजेपी आंध्र प्रदेश में अपना 'साथी' चुनने में जुट गई है. तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू के गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के 24 घंटे से भी कम समय के बाद मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी भी दिल्ली पहुंच गए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की.

घोषित तौर पर रेड्डी उनकी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस और टीडीपी की लंबे समय से चली आ रही आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य के दर्जे की मांग, केंद्रीय निधि और अन्य मुद्दों पर चर्चा करने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी से मिले. हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि बैठक से संकेत मिलता है कि बीजेपी अपनी रिवायत के मुताबिक 'देखो और प्रतीक्षा करो' मोड में है. वह चुनाव से पहले किसी भी पार्टी के लिए प्रतिबद्ध होने (या तटस्थ रहने) से पहले अपने विकल्पों पर विचार कर रही है.

सबसे अधिक संभावना है कि बीजेपी और वाईएसआरसीपी या टीडीपी (जो राज्य में पवन कल्याण की पार्टी जन सेना के साथ है, और जो कि एनडीए गठबंधन में बीजेपी के साथ है) के बीच अनौपचारिक गठजोड़ हो. क्षेत्रीय दलों को औपचारिक गठजोड़ से अल्पसंख्यक वोट खोने का खतरा रहता है.

दिलचस्प बात यह है कि न तो जगन मोहन रेड्डी और न ही चंद्रबाबू नायडू चाहते हैं कि 'स्वयंवर' के तहत कोई 'सार्वजनिक विवाह' समारोह हो. निजी तौर पर हाथ मिलाना ही 'पसंद' का परिणाम हो सकता है.

पीएम मोदी की पार्टी की राज्य में राजनीतिक ताकत नहीं है, लेकिन इसके बावजूद होगा वही जो बीजेपी चाहती है. बीजेपी साल 2019 के विधानसभा चुनाव में सभी 173 सीटों पर लड़ने के बावजूद एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हो सकी.

किसी भी पार्टी के साथ औपचारिक गठबंधन ठीक माना जा सकता है, लेकिन इसके साथ इसमें चुनौतियों भी होती हैं. सबसे बड़ी चुनौती सीट-बंटवारे की होती है. न तो वाईएसआरसीपी और न ही टीडीपी भगवा पार्टी के लिए सीटें छोड़ने के लिए सहजता से तैयार होंगे, क्योंकि इससे उनकी संभावित जीत का अनुपात कम हो सकता है.

बीजेपी भी पांच साल पहले के अपने खराब रिकॉर्ड और पिछले साल नवंबर में पड़ोसी राज्य तेलंगाना में बड़ी हार का सामना करने के बाद शायद मजबूत सौदेबाजी की स्थिति में नहीं है.

इन हालात में पर्दे के पीछे समझौता होने की संभावना अधिक लगती है. बीजेपी का चंद्रबाबू नायडू को समर्थन मिलने की संभावना उनके राज्य में प्रतिद्वंद्वी की तुलना में कम दिखाई दे रही है. ऐसा लगता है कि जिस तरह से वे दो बार बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से बाहर गए, उसके कारण बीजेपी उन्हें नजरअंदाज कर रही है.

साल 2018 में जब विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे पर रेड्डी का दबाव था, तब बीजेपी ने कहा था कि "(आंध्र प्रदेश की पार्टी के लिए) दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए हैं."

इसके अलावा नायडू अपने खिलाफ दायर अदालती मामलों से बैकफुट पर हैं और इसलिए वे केंद्र के सत्ताधारी दल को अपने पक्ष में रखना चाहेंगे. इसलिए वे भाजपा के साथ के लिए रास्ता बना रहे हैं. इससे रेड्डी को बढ़त मिल सकती है, लेकिन संभावना यही है कि वे केवल 'सहयोगी सदस्य' का दर्जा चाहते हैं.

वास्तव में रेड्डी का नजरिया बहुत साफ है कि वे अपने राज्य के लिए केवल सर्वोत्तम संभव नतीजा चाहते हैं. जैसा कि उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी कहा था, इस बार फिर कहा है कि,  उन्हें उम्मीद है कि लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलेगा, इसलिए आंध्र प्रदेश के पास केंद्र में सरकार बनाने वाले किसी भी गठबंधन के साथ बातचीत करने की छूट है.

अंततः लगता तो ऐसा ही है कि आंध्र प्रदेश के वोटरों का झुकाव किसी भी ओर हो, जीतेगी तो बीजेपी ही. कुछ विश्लेषकों ने टिप्पणी की है कि राज्य में ताकत इस तरह आएगी- जैसे कि, 'B' चंद्रबाबू नायडू के लिए, 'J' जगन मोहन रेड्डी के लिए, और 'P' पवन कल्याण के लिए.. यह तीनों BJP का समर्थन करने के लिए तैयार हैं. 

इस बीच, बीजेपी खेमे में इस मुद्दे पर राय बंटी हुई है कि पार्टी को कैसे आगे बढ़ना चाहिए और क्या वास्तव में आंध्र प्रदेश में कोई गठबंधन होना चाहिए. एक गुट जिसमें इसकी राज्य इकाई की प्रमुख दग्गुबाती पुरंदेश्वरी भी शामिल हैं, गठबंधन चाहता है. एक अन्य गुट को लगता है कि चुनावा में अकेले जाना राज्य में खुद को स्थापित करने का एक मौका है.

कांग्रेस भी बीजेपी की तरह 2014 के बाद से राज्य में करीब अस्तित्वहीन है. वह अपना भविष्य सुधारने की कोशिश कर रही है और रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला पर भरोसा कर रही है. उनको राज्य में पार्टी का राज्य प्रमुख बनाया गया है.

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