अदाणी ग्रुप के चिंतन रिसर्च फाउंडेशन (CRF) द्वारा आयोजित Railway Conclave 2.0 में गुरुवार को भारतीय रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ-साथ नीति आयोग, वर्ल्ड बैंक और दूसरे स्टेकहोल्डर संस्थानों से जुड़े विशेषज्ञों ने “Govt has no business to be in business — Possibilities and Quagmire of Privatisation in Railways” विषय पर करीब चार घंटे मंथन किया. आपको बता दें कि प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 फरवरी, 2021 को विनिवेश और संपत्ति मुद्रीकरण से जुड़े बजट प्रावधानों के कार्यान्वयन पर आयोजित एक वेबिनार को सम्बोधित करते हुए पहली बार कहा था कि "सरकार को व्यवसाय में रहने से कोई मतलब नहीं है".
Railway Conclave 2.0 को सम्बोधित करते हुए पूर्व रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा कि भारतीय रेलवे के प्राइवेटाइजेशन पर चिंतन करना जरूरी है और चिंतन रिसर्च फाउंडेशन को इसपर विस्तार से चिंतन करना चाहिए.NDTV से बातचीत में अडानी ग्रुप के चिंतन रिसर्च फाउंडेशन के प्रेजिडेंट शिशिर प्रियदर्शी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने चार साल पहले यह बयान दिया था की Government has no business to be in business (सरकार को व्यवसाय में रहने से कोई मतलब नहीं है). यह भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. भारत के आर्थिक विकास की जो यात्रा है उसमें प्रधानमंत्री के इस सोच को अब इम्प्लीमेंट किया जा रहा है.
अभी तक निजीकरण और विनिवेश को एक साथ जोड़कर देखा गया है. लेकिन यह बहुत जरूरी है कि हम दोनों को अलग-अलग कंपार्टमेंट में रखें. विनिवेश एक अलग चीज है. निजीकरण को सही तरीके से आगे बढ़ाना जरूरी है.निजीकरण की सफलता बहुत जरूरी अगर भारत को 2047 तक विकसित देश बनाना है. सरकार के कंधों पर गाड़ी जरूर चलेगी, लेकिन जो ईंधन उसमें डाला जाएगा वह प्राइवेट सेक्टर से आएगा. चिंतन रिसर्च फाउंडेशन में हम यह मानते हैं कोई भी पब्लिक पॉलिसी इशू है उसपर खुलकर सबकी राय सुनी जानी चाहिए, ली जानी चाहिए.
हम निजीकरण पर एक श्वेत पत्र तैयार कर रहे हैं. उसमें निजीकरण के दोनों पक्षों को सही तरीके से रखा जायेगा.एक सुझाव यह दिया जा रहा है कि रेलवे अच्छा काम कर रहा है तो ऐसे में प्राइवेटाइजेशन की क्या अभी जरूरत है? लेकिन मेरा प्रश्न है - जब चीजें सही नहीं चल रही हैं तो हमें निजीकरण के बारे में क्यों सोचना चाहिए?
जब सब कुछ ठीक चल रहा हो उस समय निजीकरण की भूमिका पर सोच-विचार जरूरी है. पिछले साल के मुकाबले इस साल अगर रेलवे को और ज्यादा अच्छा करना है तो प्राइवेटाइजेशन को रणनीति में शामिल करना जरूरी होगा.
जिस निजीकरण की बात हम कर रहे हैं इस कॉन्क्लेव में, उसमें तीन शब्दों पर उचित रूप से विचार नहीं हो रहा है. पहला, क्रमिक निजीकरण - जिस भी सेक्टर में अभी प्राइवेटाइजेशन की जरूरत है उसपर पहल होना चाहिए.दूसरा, कैलिब्रेटेड प्राइवेटाइजेशन. हम यह नहीं कह रहे हैं कि 700 बिलियन डॉलर प्राइवेट सेक्टर अभी लेकर आए. निजीकरण क्रमबद्ध तरीके से हो सकता है. हम 5 बिलियन डॉलर या 7 बिलीयन डॉलर के निवेश के ज़रिये निजी सेक्टर की भूमिका भारतीय रेल में बढ़ा सकते हैं.
शुरुआत में हमें सिर्फ पांच ही बिलियन डॉलर देने की जरूरत हो सकती है.इसके लिए निजीकरण के लिए स्पेस क्रिएट किया जाना चाहिए.सुरेश प्रभु ने आगे कहा कि रेलवे में प्राइवेटाइजेशन पर चिंतन करना जरूरी है. उन्होंने यह भी कहा है कि यह चिंतन रिसर्च फाउंडेशन को इसपर चिंतन करना चाहिए. हम उनका आभार व्यक्त करते हैं.
उन्होंने रेगुलेटर कि बात कही. मेरा इस संबंध में विचार है कि हमें टू-फेज अप्रोच अपनाना चाहिए. निजीकरण के शुरुआती फेज में रेगुलेटरी मेकैनिज्म बनाने की जरूरत नहीं है. लेकिन जब निजीकरण एक स्तर से आगे पहुंच जाएगा, तब आपको जरूर प्राइवेट सेक्टर को रेगुलेट करने के लिए रेगुलेटर की आवश्यकता होगी.
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