बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और उनका परिवार कथित 'जमीन के बदले नौकरी' घोटाले की जांच के घेरे में है. सीबीआई की टीम ने लालू और राबड़ी देवी से इस केस के सिलसिले में हाल ही में पूछताछ की है. बता दें कि जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ़ ललन सिंह की शिकायत पर ही ये केस शुरू हुआ था. अब वहीं, लालू परिवार से सीबीआई की पूछताछ पर सवाल उठा रहे हैं.
ललन सिंह ने एनडीटीवी को एक खास बातचीत में बताया, "जमीन के बदले नौकरी मामले की दो बार सीबीआई ने प्रारंभिक जांच की और दोनों ही बार साक्ष्य के अभाव में केस को बंद कर दिया था. महागठबंधन बनने के बाद फिर से इसे खोला जा रहा है. लालू यादव, बिहार में महागठबंधन का ख़ामियाज़ा उठा रहे हैं. मेरा मानना है कि इस मामले में कोई साक्ष्य नहीं हैं.
ललन सिंह ने कहा, "आरजेडी जो बात कह रही है, उसमें पूरी तरह से सच्चाई है. 2008 में जब ये मामला उठा था, तब सीबीआई जांच के लिए गया था. सीबीआई ने इसकी प्रारंभिक जांच में कोई साक्ष्य नहीं पाया था. इसके बाद सीबीआई ने इस फाइल को बंद कर दिया था. दूसरी बार जब ममता बनर्जी रेल मंत्री थी, तब उन्होंने भी ये मामला सीबीआई को भेजा था. इसके बाद भी सीबीआई का कहना था कि कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है. अब अचानक जब नीतीश कुमार जब महागठबंधन में शामिल हो गए हैं और आरजेडी ने इसका तहेदिल से स्वागत किया, तो उसके बाद इस मामले में कहां से साक्ष्य मिल गया?"
सीबीआई पर सवाल उठाते हुए ललन सिंह ने कहा, "ये वही सीबीआई है, जो दो बार इस मामले में साक्ष्य न होने की बात कह चुकी है. अब सीबीआई को बताया चाहिए कि इस मामले में प्रारंभिक जांच हुई थी या नहीं? साक्ष्य मिला था या नहीं? जब आपको पहले साक्ष्य मिला ही नहीं, फिर अब जांच क्यों फिर शुरू हो गई है? ये सिर्फ केंद्र सरकार की फितरत का ही परिणाम है. ये जो केंद्र सरकार के 'तीन तोते' हैं, उनका इस्तेमाल किया जा रहा है. ये सब केंद्र सरकार अपने विरोधियों के मनोबल को तोड़ने के लिए कर रही है. यही सब केंद्र सरकार हर जगह कर रही है, ये सिर्फ बिहार में ही नहीं हो रहा है."
ललन सिंह ने कहा, "पुराने जमाने में राजा-महाराजा जब शासन करते थे और अपने उत्तरदायित्व में असफल होता था, तब जनका के आक्रोश को दबाने के लिए क्या करता था? अपने विरोधियों के आक्रोश को दबाने के लिए क्या करता था, वो अपनी शक्ति का इस्तेमाल करता था. विरोधियों को तंग करता था. लोगों को जेल में डाल देता था. पुराने राजा-महाराजाओं का जो काम करने का तरीका था, उसी को इस सरकार ने अपना लिया था. इसी के बल पर ये शासन करना चाहते हैं. सकारात्मक बात ये कभी नहीं करते हैं."
बता दें कि सीबीआई ने साल 2002 में इस मामले की जांच की थी, लेकिन कुछ समय बाद फाइल बंद कर दी गई. उस समय ममता बनर्जी रेल मंत्री थीं. ममता बनर्जी ने दोबारा इस केस की फाइल खुलवाई थी.
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