मुंबई:
जापान में विनाशकारी भूकंप आने के बाद दुनियाभर में मौजूद परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा को लेकर जहां चिंता जताई जाने लगी है, वहीं राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा निगम :एनपीसीआईएल: ने सोमवार को कहा कि भारत के परमाणु संयंत्र पिछले दशक में आयी दो प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भी सुरक्षित रहे लेकिन आत्मसंतुष्ट होने की कोई गुंजाइश नहीं है। एनपीसीआईएल ने कहा, बहरहाल, हम आत्मसंतुष्ट नहीं हो सकते। लिहाजा, हम जापान में होने वाले दुर्लभ घटनाक्रमों पर करीबी नजर रख रहे हैं जहां पूर्वोत्तरी हिस्से में स्थित परमाणु संयंत्र विनाशकारी भूकंप और सुनामी के बाद गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। छब्बीस जनवरी 2001 को भुज में आए एक बड़े भूकंप के बाद गुजरात के सूरत के निकट स्थित काकरापार परमाणु ऊर्जा केंद्र सुरक्षित रूप से चलता रहा। एनपीसीएल ने कहा, इसी तरह दिसम्बर 2004 में तमिलनाड़ु में सुनामी के दौरान भी मद्रास परमाणु ऊर्जा केंद्र को बिना किसी रेडियाधर्मी दुष्प्रभावों के सुरक्षित तरीके से बंद कर दिया गया। नियमन संबंधी समीक्षा के बाद संयंत्र को कुछ ही दिन के भीतर दोबारा शुरू कर दिया गया। तमिलनाड़ु स्थित कूडांकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र में एक-एक हजार मेगावाट क्षमता वाले दो नये संयंत्र निर्माणाधीन थे लेकिन सुनामी के कारण ये भी अप्रभावित रहे क्योंकि संयंत्र समुद्री स्तर से काफी ऊंचाई पर बनाए जा रहे थे। एनपीसीआईएल ने कहा कि उसके सभी 20 संयंत्रों की नियमित तौर पर सुरक्षा समीक्षा की जाती है और परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड से मंजूरी मिलने के बाद सुरक्षा प्रक्रियाओं को उन्नत किया जाता है। वर्तमान में एनपीसीआईएल 20 संयंत्र चलाता है जिनकी क्षमता 4780 मेगावाट से अधिक की होती है। इनमें से दो 160-160 मेगावाट क्षमता वाले बॉयलिंग वॉटर रिएक्टर हैं, जबकि अन्य भारी जल दाब संयंत्र हैं। बॉयलिंग वॉटर रिएक्टरों की सुरक्षा का कुछ वर्ष पूर्व पुनर्विश्लेषण किया गया था। इसकी परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड भी समीक्षा कर रहा है। एनपीसीआईएल ने कहा कि इसके बाद दो बॉयलिंग वॉटर रिएक्टरों का नवीनीकरण कर उन्हें आधुनिक सुरक्षा मानकों की पूर्ति के मकसद से अतिरिक्त रूप से सुरक्षित बनाया गया है। वक्तव्य के अनुसार, भूकंप और सुनामी जैसी आपदाओं की स्थिति में सभी संयंत्रों की विस्तृत समीक्षा की जाती है और समीक्षा के नतीजों के आधार पर जरूरी बदलाव किये जाते हैं। वक्तव्य के मुताबिक, जापान में हुए घटनाक्रमों की विस्तृत जानकारी उपलब्ध होने के बाद समीक्षा की जायेगी। एनपीसीआईएल विश्व परमाणु परिचालनकर्ता संगठन, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी और तोक्यो इलेक्ट्रिक पॉवर कंपनी से भी इस संबंध में जानकारी जुटा रहा है। इस बीच, भूगर्भ विशेषज्ञों ने यहां कहा कि भारत के सभी परमाणु संयंत्र तटीय क्षेत्रों में नहीं हैं। देश की तटीय रेखा सुंडा क्षेत्र से दो हजार किलोमीटर से अधिक की दूरी पर स्थित है जहां बड़े भूकंप आने की आशंका रहती है। विशेषज्ञों के अनुसार, इसके विपरीत सुनामी से प्रभावित जापान के संयंत्र उन क्षेत्रों से कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर थे जो भूकंप के मामले में अत्यधिक संवेदनशील हैं।