
- SRM यूनिवर्सिटी के अध्ययन में 8 टियर-1 शहरों के 1628 छात्रों में मानसिक स्वास्थ्य संकट की गंभीर स्थिति उजागर
- इस सर्वे में लगभग सत्तर प्रतिशत छात्रों को एंजाइटी और साठ प्रतिशत से अधिक को डिप्रेशन की समस्या पाई गई है
- दिल्ली के कॉलेजों में प्रतिस्पर्धा, जीवनशैली, आर्थिक असमानता और सोशल मीडिया मानसिक तनाव बढ़ाने वाले कारण
भारत के कॉलेज छात्र एक खामोश मानसिक स्वास्थ्य संकट से गुजर रहे हैं. आंध्र प्रदेश की SRM यूनिवर्सिटी के किए गए एक मल्टी-सिटी अध्ययन में यह चिंताजनक तस्वीर सामने आई है. जुलाई से नवंबर 2023 के बीच किए गए इस सर्वे में देश के 8 टियर-1 शहरों दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, चेन्नई, बेंगलुरु, पुणे, अहमदाबाद और कोलकाता के 1,628 छात्रों (उम्र 18–29 वर्ष) को शामिल किया गया. सर्वे के अनुसार, करीब 70% छात्र एंज़ाइटी और 60% से ज़्यादा डिप्रेशन से जूझ रहे हैं. इनमें सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि दिल्ली के छात्रों में डिप्रेशन का स्तर सबसे ज्यादा पाया गया.
मानसिक तनाव के पीछे क्या हैं कारण?
क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. नीरजा अग्रवाल, जो यूनिसेफ़ के साथ भी काम कर चुकी हैं और इस क्षेत्र में दो दशक से अधिक का अनुभव रखती हैं, उन्होंने NDTV से बातचीत में इसके पीछे कई प्रमुख कारण बताए:
1. कट-थ्रोट अकादमिक प्रतियोगिता
दिल्ली के कॉलेजों खासकर DU, JNU और जामिया में पढ़ाई का माहौल बेहद प्रतिस्पर्धी है. यहां एडमिशन से लेकर प्लेसमेंट तक छात्रों पर रिज़ल्ट और रैंक का दबाव बना रहता है. ऊपर से फेल होने का डर' और ‘लगातार तुलना' ही छात्रों की सबसे बड़ी चिंता बन गई है.
2. शहर की रफ्तार और अकेलापन
दिल्ली का जीवन तेज़, व्यस्त और थकाऊ है. हर कोई इसके मुफीद नहीं हो पाता. ट्रैफिक, प्रदूषण और भागदौड़ भरा माहौल छात्रों में क्रॉनिक स्ट्रेस की समस्या को बढ़ा रहा है. कई छात्र परिवार से दूर रहते हैं और सामाजिक तौर पर अलग-थलग महसूस करते हैं.
3. आर्थिक असमानता और सोशल मीडिया की तुलना
एक और दिक्कत ये भी है कि कई छात्र सीमित साधनों में पढ़ाई कर रहे हैं, जबकि उनके आसपास उन्हें अमीरी की झलक दिखती है. सोशल मीडिया इस अंतर को और बढ़ा देता है, जहां परफेक्ट लाइफ़' की तुलना से आत्मविश्वास और आत्मसम्मान दोनों प्रभावित होते हैं.
4. महिला छात्रों पर दोहरा दबाव
स्टडी में पाया गया कि महिलाओं में एंज़ाइटी और डिप्रेशन के मामले ज़्यादा हैं. सुरक्षा की चिंता, पारिवारिक अपेक्षाएं और करियर बनाम निजी जीवन का तनाव उन्हें और ज़्यादा असुरक्षित महसूस कराता है.
5. मदद की कमी और मानसिक स्वास्थ्य पर स्टिग्मा
दिल्ली जैसे बड़े शहर में भी कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं सीमित हैं. कई छात्र मदद लेना नहीं चाहते या नहीं जानते कि कहां पर जाएं. इसके अलावा क्या कहेंगे लोग' वाला डर अब भी मानसिक स्वास्थ्य पर बातचीत को रोकता है. जो कि सबसे बड़ी समस्या बनता है.
6. समाधान की ज़रूरत
यह स्पष्ट है कि भारत के युवा, जो देश का भविष्य हैं, एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य संकट से जूझ रहे हैं. लेकिन समय रहते इस पर खुलकर बात करना, पेशेवर मदद लेना और कॉलेज स्तर पर सुविधाओं को बेहतर बनाना बेहद ज़रूरी है. तभी इस संकट को रोका जा सकता है.
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