महाराष्ट्र के शिवसेना बनाम शिवसेना विवाद में सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविंधान पीठ में सुनवाई जारी है. सुनवाई के दौरान उद्धव ठाकरे गुट की ओर से कपिल सिब्बल ने भी राज्यपाल पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश किया और इस प्रकार लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को गिराने में मदद की. सुनवाई के दौरान जस्टिस पी एस नरसिम्हा ने कहा कि यह तर्क कभी-कभी खतरनाक भी हो सकता है, क्योंकि पार्टी में एक नेता के अलावा बिल्कुल भी आजादी नहीं है. कई बार इसे एक ही परिवार चलाता है.
कपिल सिब्बल ने कहा, "राज्यपाल ने अपना फैसला शिवसेना के बहुमत के दावे के आधार पर दिया. बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल किस संवैधानिक आधार पर किसी गुट को, चाहे वह अल्पमत हो या बहुमत, मान्यता दे सकते है? राज्यपाल केवल गठबंधनों और पार्टियों से निपट सकते हैं. वह व्यक्तियों के साथ व्यवहार नहीं कर सकते, नहीं तो तबाही मच जाएगी. ऐसा नहीं है कि राज्यपाल विश्वास मत नहीं मांग सकते. लेकिन उन्होंने जिस वजह से विश्वास मत का आह्वान किया, वह बाहरी कारणों पर नहीं हो सकता. संवैधानिक उत्तरदायित्वों से परे जाकर राज्यपाल राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकते. गठबंधन के आधार पर ही विश्वास मत मांगा जा सकता है. राज्यपाल ने एक पार्टी के गुट, कुछ असंतुष्ट विधायकों के असंवैधानिक कृत्यों को वैध ठहराया है."
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इस पर सिब्बल ने कहा, "इस तरह से विश्वास मत नहीं मांगा जा सकता. कोई पर्याप्त कारण नहीं है. यह एक ऐसे गुट को मान्यता देने के बराबर है, जिसकी कोई संवैधानिक पहचान नहीं है. राज्यपाल केवल गठजोड़ से जा सकते हैं न कि व्यक्तियों के आंदोलन से जिसे स्पीकर देख सकते हैं. जब हम इस अदालत कक्ष में प्रवेश करते हैं, यह अलग आभा है. हम एक उम्मीद के साथ आते हैं कि आप ही एकमात्र उम्मीद हैं. आप अरबों लोगों की उम्मीद हैं और लोकतंत्र को नष्ट नहीं होने दिया जा सकता."
सिब्बल ने कहा, "राज्यपाल ने राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश किया और इस प्रकार लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को गिराने में मदद की. संवैधानिक ढांचे के भीतर सदन के अंदर और बाहर पार्टी के कामकाज के अधीन विधायिका की इच्छा है. विधायिका और राजनीतिक दल के बीच संबंधों में राजनीतिक दल की प्रधानता होती है. इसमें गुटबाजी के लिए कोई जगह नहीं है. अगर सारी शिवसेना बीजेपी के पास गई होती, तो फ्लोर टेस्ट के लिए राज्यपाल बुलाते, लेकिन अगर बीजेपी के 50 सदस्य केंद्र शासित प्रदेश का समर्थन करते हैं, तो क्या फ्लोर टेस्ट होगा? यही 'आया राम गया राम' का सिद्धांत हमने छोड़ दिया! यह लोकतंत्र के लिए घातक है. उनके द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव संवैधानिक कानून के बुनियादी सिद्धांतों के विपरीत हैं. विधायक की राजनीतिक दल के प्रतिनिधि होने के अलावा कोई पहचान नहीं होती है. गवर्नर के कृत्यों ने गुट के असंवैधानिक कृत्यों पर एक प्रीमियम रखा जिससे उन्हें सरकार को गिराने की अनुमति मिली. आप लोकतंत्र को "अशिष्ट और कठोर फैशन में अस्थिर" नहीं होने दे सकते. वह किसी गुट के आधार पर विश्वास मत नहीं मांग सकते. विश्वास मत के लिए आह्वान गठबंधन पर आधारित है."
जस्टिस पी एस नरसिम्हा ने कहा, "यह तर्क कभी-कभी खतरनाक भी हो सकता है, क्योंकि पार्टी में एक नेता के अलावा बिल्कुल भी आजादी नहीं है. कई बार इसे एक ही परिवार चलाता है. फ्रेम में किसी और के आने की कोई गुंजाइश नहीं है. आप यह कहने के लिए संविधान की व्याख्या कर रहे हैं कि यह किसी विधायक के लिए संभव नहीं है...?
जवाब में सिब्बल ने कहा, "राज्यपाल अब पार्टी के अंदर के विवाद को देख रहे हैं. वह पार्टी के भीतर के विवादों को नहीं देख सकते. न तो राज्यपाल और न ही यह न्यायालय स्पीकर के कार्यों पर अतिक्रमण कर सकते हैं. स्पीकर का काम जारी रहना चाहिए. राज्यपाल केवल विधायक दल से ही निपट सकते हैं. वह एकनाथ शिंदे को उठाकर यह नहीं कह सकते कि अब आप मुख्यमंत्री बन जाइए."
शिवसेना बनाम शिवसेना मामले में उद्धव ठाकरे गुट की ओर से सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दखल दे. अगर ऐसा नहीं होता है, तो हमारा लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा, क्योंकि कोई भी सरकार जीवित नहीं रह पाएगी. इस अदालत का इतिहास संविधान के मूल्यों के उत्सव का रहा है. एडीएम जबलपुर जैसे कई मौके आए हैं, जो इस अदालत के वर्षों से किए गए कार्यों से मेल नहीं खाते हैं. यह उतना ही महत्वपूर्ण मामला है. इस अदालत के इतिहास में यह एक क्षण है, जहां लोकतंत्र का भविष्य निर्धारित होगा. मुझे पूरा यकीन है कि इस अदालत के दखल के बिना हमारा लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा, क्योंकि किसी भी सरकार को जीवित नहीं रहने दिया जाएगा.
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