
- सुप्रीम कोर्ट ने ग्रेटर नोएडा CEO, जिला मजिस्ट्रेट और प्राइवेट कंपनी के MD के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की है।
- सभी को अगली सुनवाई में पेश होने के आदेश दिए. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने ये कदम उठाया है.
- याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि मानसून के बावजूद तालाब में पानी नहीं है .
ग्रेटर नोएडा के सूखे तालाब ने अफसरों की मुसीबत बढ़ा दी है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी है कि अगर अगली सुनवाई तक तालाब में पानी नहीं आया तो अफसरों को जेल भेज देंगे. ये मामला ग्रेटर नोएडा के सैनी गांव के तालाब को लेकर है, जो सैंकड़ों साल पुराना बताया गया है. इसे निजी पक्ष को ज़मीन के रूप में आवंटित करने के लिए भर दिया गया था. लेकिन अदालत के आदेश के बावजूद इसे अब तक मूल स्वरूप में नहीं लाया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि किसी का गला घोंटकर ये नहीं कह सकते कि वो सांस नहीं ले रहा. सुप्रीम कोर्ट ने ग्रेटर नोएडा CEO, जिला मजिस्ट्रेट प्राइवेट कंपनी के MD के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की. सभी को अगली सुनवाई में पेश होने के आदेश दिए. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने ये कदम उठाया है.
25 नवंबर, 2019 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सैनी गांव में निजी पक्षों को सभी जल निकायों, तालाबों और नहरों का आवंटन रद्द कर दिया था और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी को तीन महीने के भीतर गांव के तालाबों में प्राकृतिक जल जमा होने वाले जलग्रहण क्षेत्र से सभी अवरोधों को हटाने का निर्देश दिया था.
"तालाब में पानी की एक बूंद भी नहीं"
याचिकाकर्ता जितेंद्र सिंह ने आरोप लगाया कि हालांकि यह मानसून का मौसम है, फिर भी तालाब में पानी की एक बूंद भी नहीं है. जिसका उपयोग गौतमबुद्ध जिले के सैनी गांव के निवासी एक सदी से भी ज़्यादा समय से पारंपरिक रूप से करते आ रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि ऐसा इसलिए है क्योंकि जलग्रहण क्षेत्र का पूरा निर्माण हो चुका है और तालाब में बारिश का पानी नहीं आ रहा है. जबकि ग्रेटर नोएडा प्रशासन का कहना था कि वो ज़मीन का आवंटन रद्द कर चुका है. पीठ ने कहा कि अगर अगली सुनवाई के दौरान यह पाया गया कि तालाब में पानी नहीं है, तो अधिकारियों को जेल भेज दिया जाएगा.
जब प्राधिकरण ने कहा कि भूमि आवंटन रद्द कर दिया है और पूछा कि वह और क्या कर सकता है, तो पीठ ने कहा कि आप किसी व्यक्ति का गला घोंटकर यह नहीं कह सकते कि वह सांस नहीं ले रहा है. कोर्ट ने कहा प्राधिकरण से कहें कि तालाब को उसके मूल स्वरूप में बहाल करें.
अगर इसे बहाल कर दिया जाता है, तो अवमानना कार्यवाही में अधिकारियों की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट के लिए अर्जी दाखिल करें अन्यथा, उन्हें जेल भेज दिया जाएगा. वहीं याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि लगभग छह साल पहले पारित फैसले के बावजूद, राजस्व रिकॉर्ड में जल निकायों के रूप में दर्ज ये ज़मीनें निजी पक्षों के कब्ज़े में है. जब तक ऐसी ज़मीन भू-माफियाओं के चंगुल से मुक्त नहीं हो जाती, तब तक इन जल निकायों का न तो जीर्णोद्धार किया जा सकता है, न ही इनका रखरखाव और संरक्षण किया जा सकता है.
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