कनाडा (Canada) और भारत के संबंध लगातार खराब होते जा रहे हैं. खालिस्तानी आतंकी निज्जर की मौत के बाद से दोनों देशों के बीच विवाद बहुत बढ़ गया है. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत पर मनगढ़ंत आरोप लगाए हैं. हालांकि इसकी मुख्य वजह कनाडा की आंतरिक राजनीति है, जिसे साधने के खेल में जस्टिन ट्रूडो भारत से संबंध खराब कर बैठे हैं. भारत का विरोध और खालिस्तानियों का समर्थन करके वे खुद को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि उनके कोई भी पैंतरे काम नहीं कर रहे हैं. ट्रूडो ने भारत से पंगा लेकर जो भी कदम अपने सियासी फायदे के लिए उठाए, वह हर एक कदम उल्टा ही पड़ा है. कनाडा में उनकी लोकप्रियता भी सबसे निचले स्तर तक गिर चुकी है. और तो और अपने मनमाने कदमों के कारण अपनी पार्टी में भी वे घिरने लगे हैं.
कनाडा में भारतीय छात्र (Indian students ) परेशान हैं. लाखों रुपये खर्च कर अपने उज्जवल भविष्य का सपना लेकर कनाडा पहुंचे भारतीय छात्र ट्रूडो सरकार की अचानक बदली अप्रवासन नीति से खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.
नक्शे पर देखें तो भारत और कनाडा के बीच की दूरी 11,462 किलोमीटर है. जस्टिन ट्रूडो की हरकतों से भारत और कनाडा की यह दूरी और बढ़ती ही जा रही है. कनाडा की ट्रूडो सरकार ने इमिग्रेशन में 20 फीसदी की कटौती करने का फैसला किया है. ट्रूडो सरकार के इस फैसले से अगले तीन सालों में स्थायी और अस्थायी निवासियों की संख्या कम की जाएगी. इसका सबसे ज्यादा असर भारतीयों पर पड़ने जा रहा है.
कनाडा अप्रवासन में 20 प्रतिशत की कटौती करेगा
कनाडा इमिग्रेशन में 20% की कटौती करेगा. तय किया गया है कि कनाडा 2025 में 3 लाख 95,000 परमानेंट रेजिडेंसी, 2026 में 3 लाख 80,000 परमानेंट रेजिडेंसी और 2027 में 3 लाख 65,000 परमानेंट रेजिडेंसी देगा. जबकि 2024 में 4 लाख 85,000 लोगों को परमानेंट रेजिडेंसी दी गई. अस्थायी तौर पर रहने वालों की संख्या में भी कटौती की जाएगी. साल 2025 में 3.30 लाख लोगों को अस्थायी तौर पर रहने की इजाजत मिलनी थी, अब यह संख्या घटकर 3 लाख रह जाएगी.
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कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर कहा- ''कनाडा की कहानी के केंद्र में इमिग्रेशन है. इमिग्रेशन की संख्या में अस्थायी तौर पर कटौती का फैसला हमारी अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करता है. कनाडा में अब हम कम अस्थायी विदेशी कर्मचारियों को आने देंगे. हम कंपनियों के लिए कड़े नियम लेकर आ रहे हैं, ताकि उन्हें ये साबित करना पड़े कि वे पहले कनाडाई कर्मचारियों को काम पर क्यों नहीं कर रख सकते हैं.''
कनाडा में कितने भारतीय छात्र?
भारत के 13 लाख से ज्यादा छात्र विदेश में पढ़ाई कर रहे हैं. सबसे ज्यादा भारतीय छात्र कनाडा में हैं. कनाडा में फिलहाल 4 लाख 27,000 भारतीय छात्र हैं. पिछले साल यह संख्या 3.5 लाख के करीब थी. कनाडा में पढ़ने वाले करीब 40% विदेशी छात्र भारतीय हैं.
कनाडा के मौजूदा हालात और नए नियमों से मुश्किलें झेल रहे भारतीय छात्रों से एनडीटीवी ने खास बातचीत की. इन्हीं में से एक छात्र हैं लखविंदर सिंह. दिल्ली के रहने वाले लखविंदर सिंह ने उज्जवल भविष्य की खातिर कनाडा आने का जोखिम उठाया. इसके लिए उन्होंने पूरी बचत, परिजनों, दोस्तों से रकम उधार ली, साथ ही बैंक से भी लोन लिया, लेकिन कनाडा में बदले हालात के चलते वे दिन-रात यही सोचने में लगे हैं कि कनाडा में उनका भविष्य क्या होगा?
''कम से कम इनवेस्टमेंट की रिकवरी तो कर सकें''
कनाडा की SAIT यूनिवर्सिटी के छात्र लखविंदर सिंह ने कहा, ''इंडिया वापस तो हर कोई जाना चाहता है. पर कहा जाता है कि घर वालों ने हाथ भरकर भेजा था, तो हर कोई चाहता है कि हाथ भरकर वापस जाए. हमारी भी कोशिश है. यदि नहीं रखते हमें, तो कम से हमें इतना टाइम तो दिया जाए कि हम अपने कर्जे खत्म कर सकें. हमें सिटीजनशिप नहीं देनी, कोई बात नहीं. जैसे यूके या अन्य देश हैं, वे आपको रोकते नहीं हैं. मतलब कम से कम परमिट एक्सटेंशन तो मिलता ही है. तो हमें सिटीजनशिप नहीं मिलती, कम से कम कुछ समय तो मिले ताकि हम उन पैसों की रिकवरी कर सकें, जो इनवेस्ट किए हैं.''
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लखविंदर सिंह ने एनडीटीवी को यह भी बताया कि भारत-कनाडा के बीच विवाद से ज्यादातर भारतीय छात्र असमंजस की स्थिति में हैं. लखविंदर सिंह ने कहा कि, ''बहुत सारे बच्चे इस चीज को लेकर कन्फ्यूज हैं, मैं भी हूं. सेकेंड ईयर का कोर्स मुझे लेना चाहिए या नहीं लेना चाहिए? सवाल है कि यदि मैं सेकेंड ईयर के कोर्स के लिए एप्लाई कर देता हूं, तो मुझे जो अभी हाल ही में जो सुनने को मिला था कि अगर आप एक नवंबर के बाद एप्लाई करते हो सकता है आपको एक ही साल का वर्क परमिट मिले. जबकि नियम यह हैं कि यदि आप टू ईयर कोर्स करते हैं तो थ्री ईयर पीजीडब्लूपी मिलता है.''
''महीने का 12-13 हजार तो सिर्फ इंटरेस्ट''
उन्होंने कहा कि, ''अगर मैं बात करूं लोन की तो सच्चाई यह है कि मेरे घर में किसी की ऐसी मजबूत फाइनेंशियल स्थिति नहीं थी कि किसी को लोन मिल जाए. हमारा घर रेंटेड था. सिर्फ एक ब्रदर का जॉब सही चल रहा था. मैं सिंगल पेरेंट चाइल्ड हूं. मेरा दूसरा बड़ा भाई किसी अच्छी कंपनी में काम नहीं करता. वह आर्थिक रूप से मजबूत नहीं है. मेरे दूसरे भाई के बेस पर 12 लाख रुपये का लोन मिला. लोन में से महीने की शुरुआत में इंटरेस्ट का आधा एमाउंट लिया जाता है. महीने का 12-13 हजार तो मेरा इंटरेस्ट ही है, जबकि सामान्य इंटरेस्ट 5000 ही होता है. मैं हर महीने इतना पे कर रहा हूं. मुझे 12 लाख भी वापस करने हैं. मुझे वर्क परमिट एप्लाई करना था तो मुझे लोन मिला, जितने इंटरेस्ट पर मिला, मैंने ले लिया.''
हैदराबाद के रहने वाले इंजीनियर संजीव और उनकी बहन कनाडा का पीआर हासिल करने की कोशिश में हैं. लेकिन किस्मत उनका साथ नहीं दे रही. एनडीटीवी से उन्होंने कहा कि कनाडा सरकार के नए नियमों ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं.
लिविंग कास्ट बहुत अधिक
SAIT यूनिवर्सिटी के छात्र संजीव ने कहा कि, ''मैं कहना चाहता हूं कि यदि कोई कनाडा आने का प्लान कर रहा है तो यह न करे. जैसा आप सोचते हैं वैसा नहीं है. यहां पर लिविंग कास्ट बहुत अधिक है. यहां पर आने के बाद करीब एक हजार डॉलर हर माह रहन सहन पर खर्च होते हैं. यहां एक साल से हूं. मेरे दोस्त खर्चा चलाने के लिए पार्ट टाइम जॉब करते हैं. स्टूडेंट पार्ट टाइम जॉब हर सप्ताह 20 घंटे का कर सकते हैं. और सिर्फ 20 घंटे में मिलने वाले पैसे से आप अपना खर्चा नहीं चला सकते.''
संजीव समेत बहुत सारे भारतीय छात्रों को कनाडा से वापस भेजे जाने का डर है. एनडीटीवी के जरिए उन्होंने कनाडा सरकार से अपील भी की कि नए नियमों का असर भारतीय छात्रों पर न पड़े, जिससे वे अपने सपने पूरे कर सकें.
कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलगरी से मैनेजमेंट कोर्स करने वाले वृज देसाई भी कनाडा के नए वीजा नियमों से चिंतित हैं. नए नियमों से पीआर हासिल करना और मुश्किल हो गया है क्योंकि उन्हें नौकरी नहीं मिल पाएगी.
पार्ट टाइम जॉब के नियमों से पैसा कमाना बहुत मुश्किल
व्रज देसाई ने कहा, ''मुझे कैलगरी में आठ महीने हो गए हैं. मैं स्टडी करने के लिए आया हूं, ताकि एक्सपोजर मिले और करियर में आगे बढ़ सकूं. सिविल इंजीनियरिंग में बैचलर किया है, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कर रहा हूं. वीजा में कुछ बदलाव हुए हैं अभी, ये बहुत बदलाव कर दिए गए हैं. वर्क परमिट में इशू आ सकते हैं, अभी जो चेंज मेरे लिए फायदेमंद है, क्या पता आगे जाकर न हो. आगे जाकर वर्क परमिट मिलने में दिक्कत हो सकती है. अभी कंस्ट्रक्शन हो रहे हैं तो उनको जरूरत है, आगे हो सकता जरूरत न हो. जैसे बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन या बिजनेस से रिलेटेड कोर्स वालों के लिए वर्क परमिट में प्राब्लम आ सकता है. बाहर से जो लोग आ रहे हैं, उन लोगों को रोकने के लिए क्योंकि उनको मैनेज नहीं कर पा रहे हैं. तीसरा पॉलिटिकल हो सकता है. मुझे यहां 4 महीने हो गए हैं पार्ट टाइम जॉब करते हुए.''
वृज देसाई ने अपनी चिंताओं को एनडीटीवी से साझा करते हुए कहा कि, कनाडा में पार्ट टाइम जॉब के नियमों से पैसा कमाना बहुत मुश्किल हो रहा है...साथ ही उन्होंने कनाडा सरकार के मैनेजमेंट पर भी गंभीर सवाल उठाए.
उन्होंने कहा कि, ''बदलाव से दिक्कतें आ रही हैं. लोगों को तीन साल की जगह दो साल का वर्क परमिट मिला है. गवर्नमेंट के मैनेजमेंट में भी थोड़ा प्राब्लम है. बहुत सारे स्टूडेंट को तीन की जगह दो साल का वर्क परमिट दिया है. हो सकता है बच्चों ने भी फाइल करने में गलती की हो. यहां पर एम्पलायर ढंढना बहुत मुश्किल है. यदि आपको कोई अच्छा एम्पलायर नहीं मिलता तो आपको पीआर करने के चांसेस थोड़ा कम हो जाते हैं और आपको एक्सप्रेस एंट्री में जाना पड़ेगा. एक्सप्रेस एंट्री में पॉइंट सिस्टम है. वह भी बहुत डिफिकल्ट है.''
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वीजा फीस बढ़ने के सवाल पर व्रज देसाई ने कहा कि, ''घर वालों को चिंता रहती है कि बच्चा बाहर है, घर का खर्चा भी बढ़ गया है, फीस भी बढ़ गई है. पार्ट टाइम नौकरी में भी सिर्फ 20 घंटे ही कर सकते हैं एक हफ्ते में, जिससे पैसा जुटाना मुश्किल हो जाता है.''
हालांकि कनाडा में भारतीय छात्रों के सामने सिर्फ इमिग्रेशन में कटौती का ही खतरा नहीं है. NDTV के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में कनाडा में भारत के उच्चायुक्त रहे संजय कुमार वर्मा ने कहा था कि खालिस्तानी आतंकी भी कनाडा में भारतीय छात्रों को टारगेट करते हैं. उन्हें डरा-धमकाकर खालिस्तानी प्रदर्शनों में ले जाया जाता है. साथ ही उन्होंने कहा कि कनाडा की सोसायटी बिल्कुल भारत की सोसायटी जैसी ही है. वे अपने मेहमानों का स्वागत करते हैं, लेकिन अभी की सरकार में हमें ऐसा महसूस हुआ कि भारत का वहां स्वागत करना नहीं चाहते.
जस्टिन ट्रूडो भ्रमित हैं और घबराए हुए
पूर्व राजदूत मंजू सेठ ने जस्टिन ट्रूडो की नीतियों को लेकर कहा कि, ''ट्रूडो भ्रमित हैं और घबराए हुए भी हैं. उनकि स्थिति कमजोर होती जा रही है. वहां की इकानॉमी पर असर पड़ा है. वहां ट्रूडो के लिए अच्छी सिचुएशन नहीं है. खालिस्तानी समर्थक पार्टी ने उनको बाहर से सपोर्ट देने की बात कही है. जो लोग उनके देश में गए उनके लिए पॉलिसी में निरंतरता रखनी चाहिए.''
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