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बेटा हुआ तो नाम 'देशप्रेम' रखूंगी... बांग्लादेश से वापस लौटी सोनाली खातून ऐसा क्यो बोलीं!

सुनाली खातून और उनके बेटे साबिर को कथित ‘घुसपैठियों’ के रूप में बांग्लादेश की जेल में 103 दिन बिताने के बाद शुक्रवार शाम को उत्तर बंगाल में मालदा सीमा के रास्ते भारत लाया गया था. सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र को निर्देश दिये जाने के बाद सुनाली और उनके बेटे की घर वापसी हुई.

बेटा हुआ तो नाम 'देशप्रेम' रखूंगी... बांग्लादेश से वापस लौटी सोनाली खातून ऐसा क्यो बोलीं!
  • सुनाली खातून और उनके बेटे साबिर को बांग्लादेश की जेल में 103 दिन बिताने के बाद भारत वापस लाया गया
  • सुनाली को रामपुरहाट अस्पताल में भर्ती कराया गया है जहां वह गर्भवती हैं और डॉक्‍टरों की निगरानी में रहेंगी
  • सुनाली ने बांग्लादेश की जेल की एकांत कोठरी में बिताए समय को यातनापूर्ण बताया और परिवार की चिंता जताई
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रामपुरहाट:

बांग्लादेश की जेल में 103 दिन बिताने के बाद सुनाली खातून घर की घर वापसी हो गई है. सुनाली खातून के परिवार के सदस्‍य बेहद खुश हैं. पश्चिम बंगाल के रामपुरहाट में छह वर्षीय आफरीन की हंसी बंद नहीं हो रही थी, जब उसकी मां सुनाली खातून को शनिवार दोपहर सरकारी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के भीतर ले जाया जा रहा था, इस दौरान मीडियाकर्मियों का फोटो खींचने का सिलसिला लगातार जारी था. इस वर्ष जून में दिल्ली पुलिस द्वारा बांग्लादेशी नागरिक होने के संदेह में गिरफ्तार की गई और बाद में पड़ोसी देश भेज दी गई, बीरभूम के मुरारई की प्रवासी निवासी सुनाली गर्भवती हैं. सुनाली ने कहा कि अगर उन्‍हें बेटा होता है, तो उसका नाम 'देशप्रेम' रखेंगी.

बांग्लादेश की जेल में 103 दिन

सुनाली खातून और उनके बेटे साबिर को कथित ‘घुसपैठियों' के रूप में बांग्लादेश की जेल में 103 दिन बिताने के बाद शुक्रवार शाम को उत्तर बंगाल में मालदा सीमा के रास्ते भारत लाया गया था. सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र को निर्देश दिये जाने के बाद सुनाली और उनके बेटे की घर वापसी हुई थी. उन्हें शनिवार को बीरभूम के रामपुरहाट अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां वह इस महीने के अंत में या अगले महीने की शुरुआत में प्रसव होने तक डॉक्‍टरों की निगरानी में रहेंगी.

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बांग्लादेशी जेल की एकांत कोठरी की यादें 

सुनाली ने अस्पताल में मीडिया से बात करते हुए कहा, 'बांग्लादेशी जेल की एकांत कोठरी में रहना यातनापूर्ण था.' उन्होंने चपई नवाबगंज सुधार गृह में ‘घुसपैठिया' के आरोप में सौ से अधिक दिन बिताने के अनुभव को याद किया. उन्होंने बताया, 'उन्होंने साबिर को मेरे साथ रहने की अनुमति दे दी. लेकिन मेरे पति दानिश को कहीं और ले जाया गया. मुझे उनकी चिंता है, क्योंकि उन्हें अभी तक वापस नहीं लाया गया है. मुझे स्वीटी बीबी और उनके बच्चों की भी चिंता है, क्योंकि उनके साथ क्‍या होगा कुछ पता नहीं है.'

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...तो बेटे का नाम देशप्रेम रखूंगी 

आफरीन अस्पताल के स्त्री रोग विभाग में अपने दो साल बड़े भाई साबिर को कसकर पकड़े हुए थी, जिससे उसकी मुलाकात पांच महीने बाद हुई थी. उसे ठीक से पता नहीं था कि उसे अपने भाई और माता-पिता से अलग क्यों रखा गया था. आफरीन निर्वासित होने से बच गई थी, क्योंकि वह मुरारई में अपने दादा-दादी के साथ रह रही थी, जब उसके माता-पिता को दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया था. अस्पताल के कर्मचारी इमारत की दूसरी मंजिल पर प्रसव वार्ड में जब महिला को ले जा रहे थे, तो आफरीन ने सुनाली की ओर इशारा करते हुए कहा, 'यह मेरी मां हैं. मैं अपनी बेटी और माता-पिता से मिलकर बहुत खुश हूं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सहयोग के बिना यह संभव नहीं होता.'

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उन्होंने कहा कि उन्हें अपने अजन्मे बच्चे को लेकर थोड़ी चिंता के अलावा कोई बड़ी शारीरिक परेशानी महसूस नहीं हुई. साथ ही वह मुस्‍कुराते हुए कहती हैं कि अगर उन्‍हें बेटा हुआ, तो वह उसका नाम 'देशप्रेम' रखेंगी. 

अस्पताल के अधिकारियों ने कहा कि वे सुनाली के दोनों बच्चों और उसकी मां ज्योत्सना बीबी को प्रसव के बाद छुट्टी मिलने तक अस्पताल में रहने की अनुमति देंगे. इससे पहले सुनाली को राज्य स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा मालदा से रामपुरहाट अस्पताल ले जाया गया, जहां वह रात भर रुकी थी. रास्ते में वह अपने पैतृक गांव पैकर में कुछ देर के लिए रुकी, जहां उसके माता-पिता और बेटी भी उसके साथ थे.

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अब भी फंसे कई लोग

तृणमूल कांग्रेस के सांसद समीरुल इस्लाम ने सुनाली और पांच अन्य निर्वासितों के लिए कानूनी लड़ाई का नेतृत्व किया. इस्लाम ने उनकी वापसी को ‘केन्द्र सरकार की ताकत के खिलाफ उत्पीड़ितों की जीत' बताया. सुनाली को अस्पताल अधिकारियों को सौंपने के बाद उन्होंने कहा, 'उन्होंने न केवल सांप्रदायिक एजेंडे को पूरा करने के लिए एक भारतीय नागरिक को अवैध रूप से बांग्लादेश में धकेल दिया, बल्कि केंद्र ने उसकी वापसी को रोकने के लिए हर संभव प्रयास किया. लेकिन, यह तो आधी लड़ाई ही जीती गई है. अगली चुनौती उन चार अन्य लोगों को वापस लाना है, जो अभी भी सीमा के दूसरी ओर फंसे हुए हैं.'

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