रेप पीड़िता द्वारा 26 वें हफ्ते में गर्भपात की इजाजत के मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने 12 महत्वपूर्ण दिन खराब कर दिए तो सुप्रीम कोर्ट ने 12 घंटे के भीतर ही ना सिर्फ पीड़िता को गर्भपात कराने की इजाजत दी बल्कि अहम दिशा-निर्देश भी जारी किए. सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों के मुताबिक- हाईकोर्ट के ढीले रवैए को देखते हुए उस समय तक 26 हफ्ते पार कर चुकी पीड़िता की ओर से वकील विशाल अरुण मिश्रा ने 17-18 अगस्त को रात करीब 1 बजे ये याचिका दाखिल की थी. 18 अगस्त यानी शुक्रवार को उन्होंने रजिस्ट्रार के सामने मेंशन किया. शुक्रवार की रात करीब 9.30 बजे इस केस की सूचना CJI डी वाई चंद्रचूड़ को दी गई. सूचना मिलते ही CJI ने केस की गंभीरता को देखते हुए रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वो जस्टिस बीवी नागरत्ना से पूछें कि क्या वो शनिवार सुबह ही विशेष सुनवाई कर सकती हैं. सूत्रों के मुताबिक- जस्टिस नागरत्ना इसके लिए फौरन तैयार हो गईं और उसी समय CJI ने जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच का गठन कर दिया . शनिवार सुबह 10.30 बजे बेंच ने सुनवाई शुरू की और गुजरात हाईकोर्ट के देरी करने पर सवाल उठाते हुए नया मेडिकल बोर्ड गठित किया और 24 घंटे में यानी रविवार शाम तक रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दे दिए.
सुप्रीम कोर्ट ने गर्भवती महिला को दी गर्भपात की इजाजत
सोमवार को सबसे पहले केस की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाया और सुप्रीम कोर्ट ने गर्भवती महिला को गर्भपात की इजाजत दे दी. मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला लिया. रिपोर्ट के मुताबिक- महिला का गर्भपात किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि चिकित्सीय प्रक्रिया के बाद यदि भ्रूण जीवित पाया जाता है तो अस्पताल को भ्रूण के जीवित रहने को सुनिश्चित करने के लिए सभी सुविधाएं देनी होंगी. बच्चे को कानून के अनुसार गोद देने के लिए सरकार कानून के मुताबिक कदम उठाए.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दिए ये जरूरी दिशा-निर्देश
दरअसल, इस मामले की गंभीरता को समझते हुए गुजरात सरकार की ओर से सॉलसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी सुझाव दिया कि अगर गर्भपात प्रक्रिया के दौरान भ्रूण जिंदा होता है तो सरकार उसका ख्याल रख सकती है और फिर किसी गोद देने का कदम उठा सकती है. उन्होंने पहले कि एक घटना का जिक्र भी किया एक नाबालिग जो शुरू में अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने पर जोर दे रही थी, उसे बच्चे को जन्म देने के लिए राजी किया गया था और फिर बच्चे तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गोद दे दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट सूत्रों के मुताबिक CJI चंद्रचूड़ द्वारा जरूरी मामलों की सुनवाई के लिए जो SoP तैयार की गई हैं उनमें ऐसे मामलों के लिए ई- मेल करने की सुविधा भी दी गई है. रोजाना खुद CJI चंद्रचूड़ इस पर नजर रखते हैं. पहले तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका और फिर नूंह हिंसा के बाद दाखिल याचिका पर सुनवाई के लिए CJI ने तुरंत बेंच गठित करने के आदेश दिए थे. तोड़फोड़ आदि मामलों के लिए तुरंत सुनवाई की व्यवस्था बनाई गई है. खास तौर पर रजिस्ट्री को निर्देश दिए गए हैं कि वो जरूरी मामलों को CJI सूचित करें ताकि समय पर बेंच का गठन कर सुनवाई हो सके. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट गुजरात हाईकोर्ट के रुख को लेकर निराश दिखा, हालांकि अदालत ने SG तुषार मेहता के हाईकोर्ट पर कोई टिप्पणी ना करने के अनुरोध को मान लिया, हालांकि नागरत्ना ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि हाईकोर्ट के कारण कई महत्वपूर्ण दिन चले गए.
पीड़िता का दावा था कि 4 अगस्त को गर्भ का पता चला 7 अगस्त को हाईकोर्ट में अर्जी लगाई
दरअसल, पीड़िता का दावा था कि 4 अगस्त को गर्भ का पता चला और सात अगस्त को गुजरात हाईकोर्ट में अर्जी लगाई तो कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड बनाया. 11 अगस्त को रिपोर्ट आई. बोर्ड गर्भपात के समर्थन में था, लेकिन हाईकोर्ट ने 17 अगस्त के लिए मामले को टाल दिया और फिर आदेश भी जारी नहीं किया. इसके बाद याचिकाकर्ता को पता चला कि गर्भपात की याचिका खारिज कर दी गई तो फिर उसने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी. शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने आदेश अपलोड किया जिससे सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताई.
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