एक बार नागरिक घोषित हो जाने के बाद दूसरी बार मामले की सुनवाई नहीं : गौहाटी हाई कोर्ट

राष्ट्रीयता से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति की नागरिकता के संबंध में ट्रिब्यूनल की राय "रेस ज्यूडिकाटा" (पूर्व निर्णीत मामला) के रूप में काम करेगी - जिसका अर्थ है कि मामला पहले ही तय हो चुका है और उसे फिर से अदालत में नहीं लाया जा सकता है

एक बार नागरिक घोषित हो जाने के बाद दूसरी बार मामले की सुनवाई नहीं : गौहाटी हाई कोर्ट

इस सप्ताह की शुरुआत में नागरिकता पर कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने ये टिप्पणी की.

गुवाहाटी:

गौहाटी हाई कोर्ट (Gauhati High Court ) की फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल बेंच ने संकेत दिए हैं कि जब एक बार ट्रिब्यूनल ने किसी को भारतीय घोषित कर दिया है, तो उसी व्यक्ति को दूसरी बार उसके सामने लाने पर गैर-भारतीय घोषित नहीं किया जा सकता है. कोर्ट की यह टिप्पणी असम में इस कारण महत्वपूर्ण है, क्योंकि वहां ऐसे कई मामले देखे गए हैं, जहां भारतीय घोषित किए गए व्यक्ति को दो या उससे अधिक बार राष्ट्रीयता साबित करने के लिए नोटिस भेजे गए हैं.

राष्ट्रीयता से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति की नागरिकता के संबंध में ट्रिब्यूनल की राय "रेस ज्यूडिकाटा" (पूर्व निर्णीत मामला) के रूप में काम करेगी - जिसका अर्थ है कि मामला पहले ही तय हो चुका है और उसे फिर से अदालत में नहीं लाया जा सकता है.

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इस सप्ताह की शुरुआत में नागरिकता पर कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह और जस्टिस नानी तागिया की बेंच ने कहा कि हालांकि "रेस ज्यूडिकाटा" का सिद्धांत "सार्वजनिक नीति पर आधारित है" लेकिन एक संप्रभु राष्ट्र को नियंत्रित करने वाली नीति और प्रासंगिक कानूनों के तहत अवैध विदेशियों से निपटने के दौरान  यह व्यापक जनता के तहत "शामिल हो जाएगा." 

उन्होंने कहा कि 2018 में अमीना खातून मामले में उच्च न्यायालय द्वारा एक फैसला लिया गया था, लेकिन पीठ ने कहा कि यह अब्दुल कुड्डुस के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर 'अच्छा कानून नहीं' है.

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उस मामले पर बहस करते हुए राज्य ने जोर देकर कहा कि विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 3 के तहत, केंद्र सरकार को विदेशियों का पता लगाने और उन्हें निर्वासित करने की शक्ति निहित है. केंद्र सरकार ने यह शक्ति पुलिस अधीक्षकों को सौंप दी, जबकि निर्वासन का अधिकार खुद रखा है.

फॉरेनर्स (ट्रिब्यूनल) ऑर्डर, 1964 के तहत, पुलिस अधीक्षक केवल फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल से राय लेते हैं और खुद अंतिम निर्णय लेते हैं.

कोर्ट ने कहा, "फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल केवल एक राय देता है. इसलिए, यह कहना गलत होगा कि केंद्र सरकार या उस मामले के लिए, पुलिस अधीक्षक फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल की राय से बाध्य होंगे. परिणामस्वरूप, फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल द्वारा दी गई राय को निर्णय के रूप में नहीं माना जा सकता है (अमीना खातून मामला).

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अब, याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए तर्क दिया है कि अमीना खातून के मामले में दिया गया फैसला पालन करने के लिए एक अच्छा कानून नहीं है. तब अदालत ने कहा कि ट्रिब्यूनल की राय "रेस ज्यूडिकाटा"  के रूप में काम करेगी. इसका मतलब यह होगा कि एक बार ट्रिब्यूनल ने किसी को भारतीय घोषित कर दिया है, तो उसे दूसरी सुनवाई में विदेशी घोषित नहीं किया जा सकता है.

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