गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि बारपेटा अदालत ने गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवानी को एक महिला पुलिस अधिकारी के साथ कथित तौर पर मारपीट करने के मामले में जमानत देने के अपने आदेश में की गई टिप्पणियों में ‘‘हद पार कर दी'' और इसने पुलिस बल तथा असम सरकार का ‘‘मनोबल'' गिराया.
न्यायमूर्ति देवाशीष बरुआ ने बारपेटा जिला और सत्र न्यायाधीश अपरेश चक्रवर्ती द्वारा की गई टिप्पणियों को चुनौती देने वाली असम सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए हालांकि दलित नेता और कांग्रेस समर्थित निर्दलीय विधायक मेवानी को जमानत दिए जाने पर कोई राय नहीं दी.
बारपेटा अदालत ने मेवानी के खिलाफ 'झूठी प्राथमिकी' दर्ज करने को लेकर राज्य पुलिस की खिंचाई की थी और उच्च न्यायालय से अनुरोध किया था कि वह असम पुलिस को 'वर्तमान मामले की तरह झूठी प्राथमिकी दर्ज करने से रोकने एवं आरोपियों को गोली चलाकर मारने या घायल करने वाले पुलिसकर्मियों को लेकर निर्देश देने पर विचार करे जो राज्य में रोजमर्रा की चीज बन गई है.'
न्यायमूर्ति बरुआ ने कहा कि टिप्पणियां निचली अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं.
सोमवार को अवकाश के कारण अदालत बंद रहने के कारण महाधिवक्ता देवजीत सैकिया ने जिला अदालत के आदेश को चुनौती देने के लिए विशेष अनुमति ली थी. मामले में 27 मई को फिर सुनवाई होगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ट्वीट के लेकर कोकराझार में प्राथमिकी दर्ज किए जाने के बाद मेवानी को 19 अप्रैल को गुजरात के पालनपुर शहर से असम पुलिस ने गिरफ्तार किया था.
कोकराझार की एक अदालत द्वारा 25 अप्रैल को उन्हें इस मामले में जमानत दिए जाने के बाद एक महिला पुलिस अधिकारी के साथ कथित तौर पर मारपीट करने के मामले में उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया था.
बारपेटा अदालत ने बारपेटा रोड थाने में दर्ज इस मामले में मेवानी को एक हजार रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दे दी थी.
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