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This Article is From Jan 09, 2016

राष्ट्रपति से भी ज्‍यादा सैलरी पाते हैं खाद्य निगम के पल्‍लेदार, तनख्‍वाह जानकर रह जाएंगे हैरान

राष्ट्रपति से भी ज्‍यादा सैलरी पाते हैं खाद्य निगम के पल्‍लेदार, तनख्‍वाह जानकर रह जाएंगे हैरान
प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर...
नई दिल्‍ली: भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) में कुछ पल्लेदारों को महीने में राष्ट्रपति से भी अधिक 4.5-4.5 लाख रुपये मजदूरी मिलने की अजीबो गरीब जानकारी ने उच्चतम न्यायालय का ध्यान खींचा है और उसने केन्द्र से पूछा है कि इस गड़बड़ी को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।

न्यायालय ने कहा कि एफसीआई में काफी 'गड़बड़ियां' हैं और इसकी व्यवस्था 'पूरी तरह से असंतोषजनक' है। इस बारे में वरिष्ठ भाजपा नेता शांता कुमार की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह बात कही है।

मुख्य न्यायधीश टी.एस. ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के आदेश के खिलाफ एफसीआई वर्कर्स यूनियन की अपील पर सुनवाई कर रही थी। उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट के आधार पर केन्द्र के लिए कुछ निर्देश पारित किए थे।

इस चरण पर उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए इस पीठ ने कहा, 'खाद्य निगम को सालाना 1800 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है, जबकि 'इसके विभागीय श्रमिक' अपने नाम पर दूसरों को काम पर लगाने में लगे हैं जोकि उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट से स्पष्ट है। यहां तक कि वरिष्ठ भाजपा नेता शांता कुमार की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 370 श्रमिकों को प्रति माह करीब 4.5-4.5 लाख रुपये का वेतन मिल रहा है। जितना भुगतान किए जाना चाहिए, यह उससे 1800 करोड़ रुपये अधिक है पर आपको ठेके पर श्रमिक रखने की छूट नहीं है। कैसे एक श्रमिक द्वारा प्रतिमाह 4.5 लाख रुपये की कमाई की जा सकती है।'

इस पीठ में न्यायमूर्ति ए.के. सिकरी और न्यायमूर्ति आर. भानुमति भी शामिल थे। पीठ ने कहा, 'कैसे एक श्रमिक महीने में 4.5 लाख रुपये कमा सकता है। वह श्रमिक है या ठेकेदार?। आपकी (विभागीय श्रमिकों) पगार आज भारत के राष्ट्रपति की पगार से भी अधिक है।' एफसीआई के वकील ने कहा कि विभागीय कर्मचारियों को एक महीने में करीब 1.1 लाख रुपये कमाने के लिए विभिन्न प्रोत्साहन मिलते हैं। इस पर पीठ ने कहा, 'ये प्रोत्साहन योजनाएं क्या हैं। अपने नाम पर दूसरों को काम पर रखने का आरोप है। यह एक तरह से काम को ठेके पर देना है।'

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