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लव मैरिज करने पर ससुर ने दामाद के खिलाफ FIR दर्ज कराई, हाईकोर्ट ने केस रद्द करने का आदेश दिया

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- ऐसे मामले "समाज का काला चेहरा" दर्शाते हैं, आजादी के 75 साल बाद भी भारत में इस तरह का सामाजिक खतरा गहरी जड़ें जमाए है, यह बड़े अफसोस की बात भी है.

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लव मैरिज करने पर ससुर ने दामाद के खिलाफ FIR दर्ज कराई, हाईकोर्ट ने केस रद्द करने का आदेश दिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट.
नई दिल्ली:

लव मैरिज को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में सुनवाई के दौरान चिंता व्यक्त की है. लव मैरिज के एक मामले में सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लड़की के प्रेम विवाह को स्वीकार नहीं करने पर अपने दामाद के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने पर लड़की के माता-पिता की आलोचना की. हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले "समाज का काला चेहरा" दर्शाते हैं. आजादी के 75 साल बाद भी भारत में इस तरह का "सामाजिक खतरा गहरी जड़ें जमा चुका है." यह बड़े अफसोस की बात भी है.

जालौन जिले के नदीगांव थाने में दर्ज मामले में याचिकाकर्ता ने अपने खिलाफ IPC की धारा 363, यानी अपहरण, 366 यानी किसी स्त्री को विवाह के लिए विवश करने और 7/8 POCSO Act में दर्ज आपराधिक मुकदमे को खारिज करने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की अर्जी मंजूर करते हुए सुनवाई करने के दौरान इस बात पर नाराजगी व्यक्त की कि भारत में ऐसे माता-पिता हैं जो अभी भी अपने बच्चे द्वारा उनकी मंजूरी के बिना किए गए प्रेम विवाह का विरोध करने के लिए आपराधिक मामले दर्ज करवाने की हद तक जा सकते हैं.

इस याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार की सिंगल बेंच ने सुनवाई में कहा कि यह "समाज का काला चेहरा" ही है, जहां एक महिला के माता-पिता ने उसके पति पर उसके अपहरण का आरोप लगाते हुए FIR दर्ज करवा दी. यह हमारे समाज के काले चेहरे का एक स्पष्ट मामला है. 

सुनवाई में पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में सामाजिक खतरा बहुत गहरा हो जाता है कि आजादी के 75 साल बाद भी हम केवल इसी मुद्दे पर उनके विरोधियों के साथ मामले लड़ रहे हैं.

कोर्ट सागर सविता नाम के एक ऐसे व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिस पर अपनी पत्नी का अपहरण करने का आरोप लगाया गया था. पत्नी के पिता द्वारा दायर आपराधिक शिकायत में उस व्यक्ति पर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम) के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध करने का भी आरोप लगाया गया था. लड़की के पिता ने 2022 में केस दर्ज कराया था. 

आरोपी याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में कहा कि शादी के बाद, वह और उसकी पत्नी एक विवाहित जोड़े के रूप में एक साथ रह रहे थे. वकील ने कहा कि पत्नी के पिता ने आपराधिक शिकायत सिर्फ इसलिए दर्ज कराई क्योंकि उन्हें यह शादी मंजूर नहीं थी. कोर्ट में इन दलीलों का समर्थन पत्नी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने भी किया, जिन्होंने कोर्ट में कहा कि उसने आरोपी से शादी कर ली है और वे एक साथ संतुष्ट जीवन जी रहे हैं. मामला इसलिए दर्ज कराया गया क्योंकि उसके पिता को उसकी शादी मंजूर नहीं थी. हालांकि सरकारी वकील द्वारा भी इन दलीलों का विरोध नहीं किया गया.

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए आरोपी व्यक्ति व याचिकाकर्ता सागर सविता की याचिका पर सुनवाई करते हुए उसके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने का आदेश दिया है. 

जस्टिस प्रशांत कुमार की सिंगल बेंच ने आदेश देते हुए कहा कि "ऐसे मामले हमारे समाज में सबसे बड़ी बाधा है लेकिन कानून की आवश्यकता यह है कि जब दोनों पक्ष सहमत हो गए हैं और अब वे अपने छोटे बच्चे के साथ खुशी से पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं, तो इस शादी को स्वीकार करने में कोई बाधा नहीं हो सकती है." 

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