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Explainer : EVM कितने सुरक्षित; किन लोगों का है इसके पीछे दिमाग और कितनी होती है इसकी कीमत?

EVM को लेकर भारत में भी राजनीतिक दल रह-रहकर शोर मचाते हैं और सरकार को घेरने का प्रयास करते हैं, लेकिन इसकी विश्वसनीयता के कारण ही इसके जरिए लगातार चुनाव हो रहे हैं. यहां पढ़िए, EVM से जुड़ी सारी जानकारी...

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Explainer : EVM कितने सुरक्षित; किन लोगों का है इसके पीछे दिमाग और कितनी होती है इसकी कीमत?
EVM M1 और M2 को हमेशा के लिए हटा दिया गया है.
नई दिल्ली:

दुनिया भर में चुनाव के बाद हारा हुआ राजनीतिक दल धांधली की बात करता रहता है. भारत में भी विपक्षी दल हारने के बाद चुनाव की प्रक्रिया पर सवाल उठाते रहते हैं, लेकिन आम जनता में इसे लेकर विश्वास है. मगर, यह विश्वास ऐसे ही नहीं आया, इसे लेकर चुनाव आयोग की तरफ से सतर्कता भी बहुत बरती गई है. आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया की सबसे बड़ी चुनावी प्रक्रिया आयोजित करने के लिए भारत 21वीं सदी के तकनीक का उपयोग करता है. भारत तीसरी पीढ़ी की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) या M3 ईवीएम मशीनों का उपयोग करता है. यह छेड़छाड़-रोधी होते हैं और यदि उन्हें खोलने की कोशिश की जाती है, तो वे 'सेफ्टी मोड' में चले जाते हैं और निष्क्रिय हो जाते हैं. इस नवीनतम अपग्रेड में तीन अलग-अलग भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) के अनुभवी प्रोफेसरों की एक टीम शामिल है.

क्यों हैं सुरक्षित?
2019 के बाद, भारतीय चुनाव आयोग (ECI) ने चुनावों में केवल M3 ईवीएम मशीनें तैनात कीं. यह अब तक की सबसे एडवांस EVM हैं. पहले के सभी EVM M1 और M2 को हमेशा के लिए हटा दिया गया है. 2024 के लोकसभा चुनाव में करीब 5.5 मिलियन ईवीएम का इस्तेमाल किया जा रहा है. प्रत्येक EVM एक स्टैंडअलोन डिवाइस है, जो लगभग एक बुनियादी कैलकुलेटर के समान है. यहां तक ​​कि नवीनतम तीसरी पीढ़ी के EVM M3 भी इंटरनेट से कनेक्ट नहीं होते और ब्लूटूथ से भी कनेक्ट नहीं हो सकते हैं. इसके चलते वे रिमोट डिवाइस के माध्यम से अभेद्य हो जाते हैं. यह हैकर्स के लिए बड़ी परेशानी की बात है, क्योंकि आज ज्यादातर हैकिंग कनेक्टेड डिवाइसों में इंटरनेट के माध्यम से की जाती है.

EVM M3 किसने बनाई?
ECI को EVM पर एक प्रतिष्ठित टेक्निकल एक्सपर्ट कमिटी (TEC) का समर्थन प्राप्त है. आईआईटी के शीर्ष विशेषज्ञों की एक टीम ने भारत की सबसे छेड़छाड़-रोधी ईवीएम को डिजाइन करने में मदद की है. इसके सदस्य प्रोफेसर डीटी शाहनी और प्रोफेसर एके अग्रवाल हैं. दोनों आईआईटी दिल्ली से हैं. प्रोफेसर रजत मूना आईआईटी गांधीनगर के निदेशक हैं और प्रोफेसर दिनेश के शर्मा आईआईटी बॉम्बे से हैं. सेंसर और इंस्ट्रूमेंटेशन के विशेषज्ञ प्रोफेसर डी टी शाहनी के पास 40 वर्षों से अधिक का अनुभव है और उन्हें 2022 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था. 2016 से प्रोफेसर शाहनी भारत के चुनाव आयोग के लिए नवीनतम ईवीएम डिजाइन का मार्गदर्शन करने में शामिल रहे हैं. इसी आईआईटी के उनके सहयोगी प्रोफेसर एके अग्रवाल ने भी M3 EVM मशीन बनाने में योगदान दिया है. आईआईटी दिल्ली पर प्रोफेसर शाहनी की प्रोफाइल कहती है कि उन्हें 2017 में सर्वश्रेष्ठ चुनावी प्रथाओं के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

'यह एक डेडिकेटेड सिस्टम'
माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स और सॉलिड-स्टेट इलेक्ट्रॉनिक्स के विशेषज्ञ प्रोफेसर दिनेश के शर्मा का कहना है, "भारतीय ईवीएम दुनिया के अन्य ईवीएम से अलग हैं. M3 ईवीएम का किसी अन्य डिवाइस से कोई संबंध नहीं है. यहां तक ​​कि मुख्य बिजली आपूर्ति से भी नहीं." प्रोफेसर शर्मा आईआईटी बॉम्बे में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में काम करते हैं और उनके पास लगभग 34 वर्षों का अनुभव है. प्रोफेसर शर्मा ने मुंबई के टाटा फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) में आए ऑडिएंस को बताया, "इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में मजबूत तकनीकी सुरक्षा उपाय और ईसीआई द्वारा लगाए गए विस्तृत प्रशासनिक सुरक्षा उपाय, प्रक्रियाएं और सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं कि चुनाव पारदर्शी, स्वतंत्र और निष्पक्ष हों."प्रोफेसर शर्मा ने कहा, "ईवीएम मतदान के लिए डिजाइन की गई एक डेडिकेटेड सिस्टम है, न कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के लिए लोड किए गए प्रोग्राम के साथ एक जनरल पर्पस कंप्यूटिंग डिवाइस." उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि टेक्निकल एक्सपर्ट कमिटी ECI से स्वतंत्र रूप से काम करती है और बहुत जिम्मेदारी से काम करती है.

'कभी छेड़छाड़ दर्ज नहीं'
प्रोफेसर रजत मूना कंप्यूटर विज्ञान और स्मार्टकार्ड्स साइबर सुरक्षा के विशेषज्ञ हैं. वर्तमान में आईआईटी-गांधीनगर के निदेशक हैं और साइबर-भौतिक सुरक्षा से संबंधित सभी मुद्दों के लिए जाने-माने व्यक्ति हैं. उन्होंने पहले एनडीटीवी से कहा था कि "भारतीय ईवीएम में कभी कोई छेड़छाड़ दर्ज नहीं की गई है. ये भारतीय लोकतंत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप भारतीयों द्वारा भारतीय लोगों के लिए बनाई गई एक असाधारण और उपयोगकर्ता-अनुकूल तकनीक है." प्रोफेसर मूना सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (सी-डैक) के महानिदेशक भी रह चुके हैं. कंप्यूटर इंजीनियर के रूप में उनके पास कई राष्ट्रीय परियोजनाओं में मदद करने का तीन दशकों से अधिक का अनुभव है. उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर से बी.टेक (इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग) और पीएच.डी. (कंप्यूटर विज्ञान) भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु से पूरी की है.

कितनी है कीमत?
दिलचस्प बात यह है कि भारत चुनावों में ईवीएम तैनात करने वाला दुनिया का पहला देश है. इन सरल मशीनों का पहली बार इस्तेमाल 1982 में केरल के एक चुनाव में किया गया था. ECI के मुताबिक, एक ईवीएम की लाइफ 15 साल होती है. कंट्रोल यूनिट की कीमत ₹ 9,812 है. बैलेटिंग यूनिट की कीमत 7,991 और वोटर वेरिफ़िएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) की कीमत 16,132 है. पूरी ईवीएम यूनिट की कीमत लगभग ₹33,935 है. ECI ने नवीनतम M3 ईवीएम की खरीद के लिए 2021-2023 के बीच ₹ 3960.10 करोड़ रुपये खर्च किए.

पैसे के लिए नहीं करते काम
समिति का कोई भी विशेषज्ञ भारत के चुनाव आयोग से कोई पैसा नहीं लेता. वे यह सुनिश्चित करने के लिए काम करते हैं कि भारत का लोकतंत्र अच्छी तरह से सुरक्षित रहे. इनमें से, नवीनतम ईवीएम बनाने में मदद करने वाले विशेषज्ञों के पास इलेक्ट्रॉनिक्स के विभिन्न पहलुओं पर शोध करने का सामूहिक और संचयी पेशेवर अनुभव है. प्रोफेसर शर्मा का दावा है, "प्रत्येक ईवीएम अपने आप में एक अद्वितीय [इलेक्ट्रॉनिक] आईलैंड है, और यह उन्हें सुपर सुरक्षित बनाता है."

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