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This Article is From Nov 07, 2022

गरीब सवर्णों (EWS) को 10% आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर, केंद्र सरकार की बड़ी जीत

जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने EWS आरक्षण को संवैधानिक करार दिया और कहा कि ये संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता. ये आरक्षण संविधान को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता. ये समानता संहिता का उल्लंघन नहीं है.

आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को दस फीसदी आरक्षण बना रहेगा, SC कै फैसला

दस फीसदी EWS आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग गई है  संविधान पीठ ने 3: 2 के बहुमत से संवैधानिक और वैध करार दिया है. जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने बहुमत का फैसला दिया और 2019 का संविधान में 103 वां संशोधन संवैधानिक और वैध करार दिया गया है. अदालत ने कहा - EWS कोटे से संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं हुआ.इसी के साथआरक्षण के खिलाफ याचिकाएं खारिज की गई हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 50% कोटा को बाधित नहीं करता है.  ईडब्ल्यूएस कोटे से सामान्य वर्ग के गरीबों को फायदा होगा.  ईडब्ल्यूएस कोटा कानून के समक्ष समानता और धर्म, जाति, वर्ग, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर और सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है. वहीं जस्टिस रविंन्द्र भट्ट ने कहा कि इस 10% रिजर्वेशन में से एससी/एसटी/ ओबीसी को अलग करना भेदभावपूर्ण है.

सीजेआई ललित ने इसे असंवैधानिक करार दिया और वहीं जस्टिस एस रवींद्र भट्ट ने भी असहमति जताते हुए इसे अंसवैधानिक करार दिया. जस्टिस रविंन्द्र भट्ट ने कहा कि 103 वां संशोधन भेदभाव पूर्ण है. दोनों ने बहुमत के फैसले पर असहमति जताई है.

जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि बहुमत के विचारों से सहमत होकर और संशोधन की वैधता को बरकरार रखते हुए, मैं कहता हूं  कि आरक्षण आर्थिक न्याय को सुरक्षित करने का एक साधन है और इसमें निहित स्वार्थ की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. इस कारण को मिटाने की यह कवायद आजादी के बाद शुरू हुई और अब भी जारी है

जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने EWS आरक्षण को संवैधानिक करार दिया और कहा कि ये संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता. ये आरक्षण संविधान को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता. ये समानता संहिता का उल्लंघन नहीं है.

जस्टिस बेला त्रिवेदी ने भी आरक्षण को सही करार दिया.  इस पर जस्टिस माहेश्वरी से सहमति जताई है. जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि अगर राज्य इसे सही ठहरा सकता है तो उसे भेदभावपूर्ण नहीं माना जा सकता. EWS नागरिकों की उन्नति के लिए सकारात्मक कार्रवाई के रूप में संशोधन की आवश्यकता है. असमानों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जा सकता. SEBC अलग श्रेणियां बनाता है. अनारक्षित श्रेणी के बराबर नहीं माना जा सकता.  ईडब्ल्यूएस के तहत लाभ को भेदभावपूर्ण नहीं कहा जा सकता. 

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