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This Article is From Mar 20, 2024

"आरोपी को जेल में रखने के लिए बार-बार चार्जशीट नहीं फाइल कर सकते" : ED से बोली सुप्रीम कोर्ट

अदालत ने कहा,"इस मामले में शख्स पिछले 18 महीनों से जेल में बंद है. यह अब हमें परेशान कर रहा है. कुछ मामलों में हम इसे उठाएंगे और आपको इससे अवगत कराएंगे. जब आप किसी आरोपी को गिरफ्तार करते हैं तो मुकदमा शुरू किया जाना चाहिए."

"आरोपी को जेल में रखने के लिए बार-बार चार्जशीट नहीं फाइल कर सकते" : ED से बोली सुप्रीम कोर्ट
फाइल फोटो
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने किसी आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत देने से इनकार करने और ऐसे व्यक्तियों को अनिश्चित काल तक जेल में रखने के लिए चार्जशीट दाखिल करने पर प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) से सवाल किया है. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने केंद्रीय एजेंसी से कहा कि आरोपियों को बिना मुकदमे के प्रभावी ढंग से जेल में रखने का यह तरीका उच्चतम न्यायालय को परेशान करता है.

"डिफॉल्ट जमानत का मतलब ही यही है कि आप जांच पूरी होने तक उस शख्स को गिरफ्तार न करें. आप (किसी आरोपी को गिरफ्तार करें) यह नहीं कह सकते हैं कि जब तक जांच पूरी नहीं होती है, मुकदमा शुरू नहीं होगा. आप बार बार चार्जशीट फाइल नहीं कर सकते हैं और फिर शख्स को बिना ट्रायल के जेल में रहने पर मजबूर होना पड़े". न्यायमूर्ति खन्ना ने यह बात अतिरिक्त सॉलिसिटर-जनरल एसवी राजू से कही, जो ईडी की ओर से पेश हुए थे.

बुधवार को अदालत ने कहा,"इस मामले में शख्स पिछले 18 महीनों से जेल में बंद है. यह अब हमें परेशान कर रहा है. कुछ मामलों में हम इसे उठाएंगे और आपको इससे अवगत कराएंगे. जब आप किसी आरोपी को गिरफ्तार करते हैं तो मुकदमा शुरू किया जाना चाहिए. वर्तमान कानून के मुताबिक अगर जांच पूरी नहीं हुई है तो जेल में बंद आरोपी डिफॉल्ट जमानत पाने का हकदार है, नहीं तो आपको फाइनल चार्ज शीट सीआरपीसी, या आपराधिक प्रक्रिया संहिता द्वारा निर्धारित समयसीमा के अंदर दायर करनी चाहिए. मामले की परिस्थितियों के आधार पर यह समयासीमा या तो 60 या 90 दिन है". 

पिछले साल अप्रैल में भी कोर्ट ने इसी तरह की एक टिप्पणी की थी. न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार ने कहा था, "बिना जांच पूरी हुए आप सिर्फ इस वजह से चार्जशीट दाखिल नहीं कर सकते हैं क्योंकि आप गिरफ्तार आरोपी को डिफॉल्ट जमानत के अधिकार से वंचित रखना चाहते हैं."

सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई यह टिप्पणी कई हाई-प्रोफाइल हस्तियों को प्रभावित कर सकती हैं, जिनमें विपक्षा राजनीतिक नेता भी शामिल हैं. इन्हें जांच एजेंसी ने गिरफ्तार किया है और ये जेल में बंद भी है लेकिन बिना किसी मुकदमे के ये कई चार्जशीटों का सामना कर रहे हैं. 

अदालत ने यह टिप्पणी झारखंड के अवैध खनन मामले से जुड़े एक आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की है. आरोपी - प्रेम प्रकाश - पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कथित सहयोगी है, जिसे पिछले महीने मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में ईडी (ED) ने गिरफ्तार किया था. प्रकाश को पिछले साल जनवरी में झारखंड उच्च न्यायालय ने जमानत देने से इनकार कर दिया था. इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसमें कहा गया है कि उन्होंने 18 महीने जेल में बिताए हैं और इस वजह से यह "जमानत का स्पष्ट मामला है."

इस पर राजू ने आरोपियों को रिहा किए जाने पर सबूतों या गवाहों से छेड़छाड़ की चिंता जताई, लेकिन अदालत इससे सहमत नहीं हुई. न्यायमूर्ति खन्ना ने जांच एजेंसी के वकील से कहा, "अगर वह (प्रकाश) ऐसा कुछ भी करते हैं तो आप हमारे पास आएं..." उन्होंने आगे कहा, "...लेकिन इस वजह से 18 महीने सलाखों के पीछे रखना?"

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम या पीएमएलए की धारा 45 के तहत लंबे समय तक जेल में रहने के कारण जमानत का अधिकार तब दिया जा सकता है, जब विश्वास हो कि आरोपी ने अपराध नहीं किया है और उसके अपराध करने की संभावना नहीं है और जमानत पर बाहर रहते हुए वह किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं करेगा. अदालत ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 से प्रेरित है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के बारे में बात करता है.

अदालत ने वरिष्ठ आप नेता और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की कैद का जिक्र किया, जिन्हें फरवरी 2023 में शराब नीति मामले में ईडी ने गिरफ्तार किया था. पिछले हफ्ते मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति खन्ना की एक पीठ ने अक्टूबर में जमानत याचिका खारिज होने के बाद मनीष सिसौदिया द्वारा दायर एक सुधारात्मक याचिका को भी खारिज कर दिया था. 

यह देखते हुए कि इस मामले में आरोपी ने 18 महीने जेल में बिताए थे, अदालत ने कहा, "संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 21 के तहत) धारा 45 (पीएमएलए की) द्वारा नहीं छीना गया है और यह बहुत स्पष्ट है". न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, "मनीष सिसौदिया के मामले में भी, मैंने कहा कि डिफ़ॉल्ट जमानत कुछ अलग है. यदि मुकदमे में देरी होती है, तो जमानत देने की अदालत की शक्ति को नहीं छीना जा सकता है".

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