
- रावण के दस सिरों की तरह ही, भारत में दशानन के भी दसियों रूप मौजूद हैं, जहां उसे पूजा जाता है
- राजस्थान के हाड़ौती में जेठी समाज के लोग मिट्टी से रावण की प्रतिमा बनाते हैं, फिर उसे पैरों से रौंदते हैं
- मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले के भाटखेड़ी गांव के लोग रावण को राक्षस नहीं अपना इष्टदेव और रक्षक मानते हैं
भारत विविधताओं से भरा देश है. यही वह देश है, जहां रावण को एक तरफ दानव मानकर जलाया जाता है, तो दूसरी तरफ देवता समझकर पूजा जाता है. कहीं उसके दस सिरों को अहंकार और अधर्म का प्रतीक मानकर पैरों तले कुचला जाता है, तो कहीं उन्हें ज्ञान और शक्ति का प्रतीक मानकर फूल चढ़ाए जाते हैं. रावण के दस सिरों की तरह ही, देश में दशानन के भी दसियों रूप मौजूद हैं. आइए जानते हैं इनके बारे में-
कानपुरः विद्या-भक्ति रूप में होती है पूजा
यूपी के कानपुर में एक मंदिर है, जहां रावण को विद्या, बुद्धि और भक्ति के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है. कानपुर के शिवाला एरिया में दशानन मंदिर है. यह मंदिर सिर्फ दशहरे के दिन ही खुलता है. विजयादशमी के दिन यहां काफी भीड़ होती है. बताया जाता है कि इसका निर्माण करीब 150 साल पहले महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था. रावण प्रकांड पंडित और विद्वान था. शिव का परम भक्त था. दशानन मंदिर में रावण की विद्वता, ज्ञान और पराक्रम की पूजा की जाती है.

विदिशाः लेटे हुए रावण की पूजा
मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में रावण बाबा का प्रसिद्ध मंदिर है. राजधानी भोपाल से करीब 90 किलोमीटर दूर नटेरन तहसील में रावन नाम का गांव है. गांव के मंदिर में रावण की लेटी हुई विशालकाय प्राचीन प्रतिमा है. बताया जाता है कि ये परमार कालीन मंदिर है. मंदिर में रावण की आरती भी लिखी हुई है. गांव के लोग दशहरे को उत्सव के रूप में मनाते हुए रावण को पूजते हैं. कहा जाता है कि इस गांव में किसी के घर में शादी हो या कोई नए काम की शुरुआत, यहां सबसे पहले रावण बाबा की पूजा होती है.

राजस्थान में पैरों से रौंदा जाता है रावण
राजस्थान के हाड़ौती में रावण को लेकर अनूठी परम्परा है. यहां रावण को पैरों से रौंदा जाता है. जेठी समाज के लोग ये परंपरा निभाते हैं. जेठी समाज की हाड़ौती में संख्या कम है, लेकिन विजयदशमी पर वह रावण का वध अलग तरीके से करके अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं. विजयदशमी पर जहां जगह-जगह रावण के पुतले का दहन किया जाता है, वहीं राजस्थान में कोटा के नांता इलाके में जेठी समाज के लोग मिट्टी से रावण बनाते हैं, उस पर जौ उगाते हैं और बुराई के अंत के रूप में पैरों से रौंदते हैं. उसके बाद उस मिट्टी पर कुश्ती होती है.

मंदसौरः जहां रावण हैं जमाई राजा
मध्य प्रदेश के मंदसौर में रावण को दामाद मानकर पूजा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी नामदेव समाज की बेटी थीं और वो मंदसौर की ही रहने वाली थीं. इस वजह से रावण को मंदसौर का दामाद का दर्जा दिया गया है. यहां समाज के लोग रावण के दाहिने पैर में लच्छा बांधकर रावण की पूजा करते हैं. विजयादशमी के दिन शहर के खानपुरा में सीमेंट से बनी रावण की 42 फुट ऊंची प्रतिमा की पूजा की जाती है. एमपी के मालवा में भी रावण को दामाद माना जाता है और यहां महिलाएं रावण के सामने घूंघट करके निकलती हैं.

बिसरखः रावण के जन्मस्थान में हवन-पूजा
दशहरे पर जगह-जगह रावण का बुराई के प्रतीक के तौर पर दहन किया जाता है, वहीं उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में बिसरख ऐसी जगह है, जहां इस दिन शोक मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताएं हैं कि इसी जगह पर रावण का जन्म हुआ था. बिसरख गांव का नाम रावण के पिता ऋषि विश्रवा के नाम पर पड़ा था. इसका प्राचीन नाम विश्वेशरा था, जो वक्त के साथ बदलते हुए बिसरख हो गया. मुख्य पुजारी रामदास बताते हैं कि यह रावण की जन्मभूमि है. यहां स्थापित शिवलिंग स्वयं प्रकट है. यहीं पर ऋषि विश्रवा के पुत्र रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और पुत्री सूपर्णखा का जन्म हुआ था. वह बताते हैं कि हमारे यहां दशहरा तो मनाया जाता है, लेकिन रावण का दहन नहीं होता. यज्ञशाला के सामने रावण की मूर्ति रखकर हवन-पूजा होती है. गांव के निवासी रावण को अपना पूर्वज मानते हैं.

गढ़चिरौलीः रावण को राजा मानते हैं गोंड
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में गोंड आदिवासी रावण को अपने राजा के रूप में सम्मान देते हैं. वह रावण को राक्षस नहीं बल्कि परम शिवभक्त और विद्वान मानते हैं. इसीलिए रावण की पूजा करते हैं. इस क्षेत्र में दशहरा के दिन रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है. उनकी भक्ति के यज्ञ किए जाते हैं. गोंड आदिवासी रावण के लिए प्रार्थनाएं करते हैं. वह रावण दहन पर प्रतिबंध लगाने की भी मांग कर चुके हैं.
भाटखेड़ीः रावण को मानते हैं इष्ट और रक्षक
मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले के भाटखेड़ी गांव के लोग रावण को राक्षस नहीं अपना इष्टदेव और रक्षक मानते हैं. आगरा-मुंबई हाईवे पर स्थित इस गांव में रावण और कुंभकर्ण की प्रतिमाएं सड़क किनारे स्थापित हैं. ये प्रतिमाएं दशकों पुरानी बताई जाती हैं. भाटखेड़ी के लोग रावण दहन नहीं करते. इनका मानना है कि रावण दहन से गांव पर विपत्ति आ सकती है, इसलिए वो पीढ़ियों से दशहरे के दिन रावण की पूजा-अर्चना करते हैं. गांव इसे रावण वाली भाटखेड़ी भी कहा जाता है.

उज्जैनः शिवभक्त रावण के रखते हैं व्रत
मध्य प्रदेश में महाकाल की नगरी उज्जैन में भी कई लोग रावण को शिवभक्त मानकर विशेष पूजा अर्चना करते हैं. दशहरे के दिन यहां पर रावण के लिए हवन किए जाते हैं. कई लोग तो व्रत भी रखते हैं. ये लोग मानते हैं कि रावण भगवान शिव का परम भक्त था. वेदों और शास्त्रों का महाज्ञाता था. ये लोग उन्हें महापंडित मानकर पूजा-पाठ करते हैं. उज्जैन जिले की बड़नगर तहसील के चिखली गांव में रावण की एक प्राचीन और विशाल मूर्ति भी स्थापित है.
कुल्लूः अनोखा दशहरा उत्सव
हिमाचल के कुल्लू का दशहरा बहुत प्रसिद्ध है. लेकिन यहां पर न रामलीला होता है और न ही रावण दहन. पूरे देश में दशहरा उत्सव जब खत्म हो जाता है, तब कुल्लू में भगवान रघुनाथ के आगमन के साथ दशहरा उत्सव शुरू होता है. मान्यता है कि कुल्लू अंतरराष्ट्रीय दशहरा में 300 देवी-देवता शामिल होते हैं. 17वीं सदी में कुल्लू के राजा जगत सिंह ने शाप के बाद असाध्य रोग से छुटकारा पाने के लिए अयोध्या के भगवान रघुनाथ की प्रतिमा लाकर मणिकरण के मंदिर में स्थापित किया था. कहा जाता है कि चरणामृत पीने से उनकी बीमारी दूर हो गई. मान्यता है कि तब से हर साल दशहरे पर कुल्लू के सभी देवी-देवताओं को भगवान रघुनाथ के प्रति आदर दिखाने के लिए आमंत्रित किया जाता है.

कोलारः पूजनीय है रामप्पा रावण
कर्नाटक के कोलार जिले में भी रावण को पूजा जाता है. यहां के रामलिंगेश्वर मंदिर में रावण को पूजनीय माना जाता है. इस प्राचीन मंदिर में चार शिवलिंग स्थापित हैं. स्थानीय मान्यता है ये शिवलिंग लंकापति रावण खुद कैलाश पर्वत से लाए थे और यहां इन्हें स्थापित किया था. यहां के लोग रावण को रामप्पा या रामलिंग जैसे नामों से भी पुकारते हैं. दशहरे पर रावण दहन के बजाय इन शिवलिंगों की पूजा करके सुख-शांति और समृद्धि की कामना की जाती है.
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