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This Article is From Nov 15, 2022

उद्धव ठाकरे को दिल्ली HC से झटका, चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ याचिका खारिज

महाराष्ट्र में शिवसेना के दो टुकड़ों में बंट जाने के बाद भी अभी सियासी घमासान थमा नहीं है. दो धड़ों में बंटी शिवसेना पुरानी शिवसेना के चुनाव चिन्ह तीर-कमान को लेकर आमने-सामने हैं. अब दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में फैसला सुना दिया है.

उद्धव ठाकरे को दिल्ली HC से झटका, चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ याचिका खारिज
उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे दोनों गुटों ने शिवसेना के नाम और उसके चुनाव चिह्न पर दावा किया था.
नई दिल्ली:

दिल्ली हाई कोर्ट से उद्धव ठाकरे( Uddhav Thackeray) को झटका लगा है. चुनाव आयोग (ECI) के फैसले के खिलाफ उनकी याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court)ने खारिज कर दिया है. उद्धव ठाकरे ने चुनाव आयोग के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसके तहत शिवसेना का नाम और चुनाव निशान तीर-कमान फ्रीज कर दिया गया था. हाई कोर्ट ने कहा है कि चुनाव आयोग चुनाव चिह्न और पार्टी का आवंटित करने का कार्य जल्द  पूरा करे.

चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र में उपचुनाव और निकाय चुनावों को देखते हुए पार्टी के दोनों धड़ों को अस्थायी रूप से नया नाम और चुनाव चिन्ह जारी किया था. उद्धव ठाकरे ने अपनी याचिका में कहा था कि वह 30 वर्षों से पार्टी को चला रहे हैं, लेकिन चुनाव आयोग के आदेश की वजह से वह अपने पिता के दिए हुए नाम और चुनाव निशान का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं. उन्होंने कहा था कि चुनाव आयोग के इस फैसले की वजह से पार्टी की राजनीतिक गतिविधियों पर विराम लग गया है. कोर्ट में पेश होने के बाद उद्धव के वकील ने कहा था कि मामला बनने तक चुनाव आयोग निशान फ्रीज नहीं कर सकता था.

हालांकि, हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग को चुनाव चिन्ह और पार्टी के नाम के आवंटन से संबंधित कार्यवाही पर जल्द फैसला करने को कहा. दरअसल, उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे दोनों गुटों ने शिवसेना के नाम और उसके चुनाव चिह्न पर दावा किया था. 

इससे पहले चुनाव आयोग के अंतरिम आदेश, जिसमें ये कहा गया था कि शिवसेना के नाम और चुनाव चिन्ह को फ्रीज कर दिया जाए, को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान उद्धव ठाकरे गुट से पूछा कि पोल पैनल के अंतिम फैसले का इंतजार क्यों नहीं करना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि इस फैसले को चुनाव आयोग ने उपचुनाव के उद्देश्य से दिया था वो अंतिम फैसला नहीं था ऐसे में अंतरिम आदेश का कोई मतलब नहीं रह जाता है. ऐसी स्थिति में कोर्ट को चुनाव आयोग के फैसले का इंतजार करना चाहिए.

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