सुकमा नक्सली हमले के बाद घायल जवान से मिलते गृह मंत्री राजनाथ सिंह (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
छत्तीसगढ़ सुकमा में सीआरपीएफ़ के 100 जवानों की मौजूदगी के बावजूद माओवादी इतने बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाने में क्यों कामयाब रहे, ये एक बड़ा सवाल है. गृह मंत्रालय को मिली सीआरपीएफ की रिपोर्ट में ये बात मानी गई है कि ये जवान वहां तय समय से लगभग दोगुने समय तक थे. बात ये भी चल रही है कि जंगलों में छुपे नक्सलियों का पता लगाने की तकनीक सीआरपीएफ को मुहैया कराई जाए. सुकमा में सीआरपीएफ़ की टीम को बहुत बड़ी तादाद में माओवादियों ने घेर लिया. उनके इकट्ठा होने की भनक तक नहीं लग सकी. आख़िर ऐसा क्यों हुआ? गृह मंत्रालय के सामने बड़ा सवाल ये है कि क्या ये हमला इसलिए मुमकिन हुआ कि सीआरपीएफ के भीतर तय क़ायदों पर अमल नहीं हो रहा.
एनडीटीवी इंडिया को मिली जानकारी के मुताबिक सीआरपीएफ ने गृह मंत्रालयय को दी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सीआरपीएफ की ये टुकड़ी पांच साल से सुकमा में ही तैनात है. कायदे से तीन साल में उनका तबादला हो जाना चाहिए था. शायद टीम में इस वजह से कुछ थकान और लापरवाही चली आई हो. हालत ये है कि लोग कश्मीर में तैनाती को तैयार हैं, सुकमा में नहीं.
सीआरपीएफ ने रिपोर्ट में ये भी माना है कि हमला उस पार्टी पर हुआ जिसके जवान खाना खा रहे थे और अलर्ट नहीं थे. फिलहाल बस्तर में सीआरपीएफ के 45,000 जवान हैं, लेकिन जिन हालात में वो काम कर रहे हैं, वो काफी चुनौती भरे हैं. वैसे ये बात बार-बार आती है कि एक अनजान इलाक़े में काम कर रहे जवानों को अगर थकान से और ऐसे हमलों से बचाना है तो उनकी ज़रूरतों का खयाल रखना ज़रूरी है. सीआरपीएफ की रिपोर्ट में भी यही इशारा है कि सीआरपीएफ पर बोझ ज़्यादा है.
एनडीटीवी इंडिया को मिली जानकारी के मुताबिक सीआरपीएफ ने गृह मंत्रालयय को दी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सीआरपीएफ की ये टुकड़ी पांच साल से सुकमा में ही तैनात है. कायदे से तीन साल में उनका तबादला हो जाना चाहिए था. शायद टीम में इस वजह से कुछ थकान और लापरवाही चली आई हो. हालत ये है कि लोग कश्मीर में तैनाती को तैयार हैं, सुकमा में नहीं.
सीआरपीएफ ने रिपोर्ट में ये भी माना है कि हमला उस पार्टी पर हुआ जिसके जवान खाना खा रहे थे और अलर्ट नहीं थे. फिलहाल बस्तर में सीआरपीएफ के 45,000 जवान हैं, लेकिन जिन हालात में वो काम कर रहे हैं, वो काफी चुनौती भरे हैं. वैसे ये बात बार-बार आती है कि एक अनजान इलाक़े में काम कर रहे जवानों को अगर थकान से और ऐसे हमलों से बचाना है तो उनकी ज़रूरतों का खयाल रखना ज़रूरी है. सीआरपीएफ की रिपोर्ट में भी यही इशारा है कि सीआरपीएफ पर बोझ ज़्यादा है.
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