प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों को एक साल के भीतर निपटाने का आदेश जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की स्कीम को हरी झंडी दी कोर्ट ने केंद्र को इसके लिए 7.80 करोड के फंड को तुरंत राज्य सरकारों को रिलीज करने को भी कहा है. खास बात यह है कि राज्य सरकारों को इस मामले में हाईकोर्ट सलाह के बाद फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन करना होगा. वहीं हाईकोर्ट को लंबित मामलों के दी गई समय सीमा के अंदर निपटाने के लिए विशेष अदालतों के लिए जजों की नियुक्ति करनी होगी. अदालत के गठन के बाद सांसदों व विधायकों से जुडे मामले इनमें ट्रांसफर होंगे. ध्यान हो कि इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि 1 मार्च 2018 से सात राज्यों में 12 विशेष अदालतें शुरु हों. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से सभी दागी सांसद और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों का ब्यौरा इकट्ठा करने के लिए कहा है. इसके लिए कोर्ट ने केंद्र को दो महीने का समय दिया है.
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दागी सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों को जल्द निपटाने के लिए विशेष अदालतों के गठन की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि ये अंत नहीं शुरुआत है. जब कोर्ट शुरु होंगी और ऐसे मामलों के आंकडे आएंगे तब कोर्ट जरूरत के हिसाब से आदेश जारी करेगी. इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि दागी सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों को जल्द निपटने के लिए विशेष अदालतों का गठन किया जाएगा. केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया था कि फिलहाल एक साल के लिए 12 विशेष अदालतों का गठन किया जाएगा. इसके लिए 7.80 करोड रुपये का खर्च आएगा, जिसके लिए वित्त मंत्रालय ने 8 दिसंबर को मंजूरी दे दी है. मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि दागी सांसद और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों के जल्द निपटारे को लेकर स्कीम बना ली गई है.
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हालांकि केंद्र ने दागी सांसदों व विधायकों की जानकारी व आंकडों के लिए सुप्रीम कोर्ट से और वक्त मांगा है. दरअसल पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने दागी सांसद और विधायकों के खिलाफ लंबित मुकदमों को एक वर्ष के भीतर निपटाने को देश हित में बताते हुए केंद्र सरकार को विशेष अदालतों का गठन करने के लिए कहा था.वहीं केंद्र सरकार ने कहा था कि वह आपराधिक मामलों को दोषी ठहराए जाने वाले सांसद व विधायकों पर आजीवन चुनाव लड़ने के प्रतिबंध के खिलाफ है. हालांकि सरकार के रुख से ठीक उलट चुनाव आयोग ऐसे लोगों पर आजीवन चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने केपक्ष में है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह केंद्रीय योजना के तहत दागी सांसद और विधायकों के खिलाफ लंबित मुकदमों को निपटाने केलिए विशेष अदालतों का गठन करें.
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पीठ ने फास्ट ट्रैक कोर्ट की तर्ज पर इन विशेष अदालतों का गठन करने के लिए कहा है. केंद्र सरकार को छह हफ्ते के भीतर स्कीम तैयार कर यह बताने के लिए कहा गया कि इसके लिए गठन को कितने फंड की दरकार है. बाद में न्यायिक अधिकारी समेत अन्य स्टाफ की नियुक्तियों पर बाद में विचार किया जाएगा। उस वक्त राज्यों को भी इसमें शामिल किया जाएगा. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि ऐसे मामलों के ट्रायल के लिए अभी तक कितनी स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई गई है. साथ ही इनमें कितनी सेशन कोर्ट और कितने मजिस्ट्रेट कोर्ट हैं और इनका क्षेत्राधिकार क्या है? खास बात यह है कि 2014 के आंकडों के मुताबिक 1581 सांसद व विधायकों पर करीब 13500आपराधिक मामले लंबित हैं. इसके लिए देशभर में करीब एक हजार विशेष अदालतों के गठन की दरकार होगी. इस मामले में अगली सुनवाई 28 अगस्त को होगी.
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दागी सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों को जल्द निपटाने के लिए विशेष अदालतों के गठन की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि ये अंत नहीं शुरुआत है. जब कोर्ट शुरु होंगी और ऐसे मामलों के आंकडे आएंगे तब कोर्ट जरूरत के हिसाब से आदेश जारी करेगी. इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि दागी सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों को जल्द निपटने के लिए विशेष अदालतों का गठन किया जाएगा. केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया था कि फिलहाल एक साल के लिए 12 विशेष अदालतों का गठन किया जाएगा. इसके लिए 7.80 करोड रुपये का खर्च आएगा, जिसके लिए वित्त मंत्रालय ने 8 दिसंबर को मंजूरी दे दी है. मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि दागी सांसद और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों के जल्द निपटारे को लेकर स्कीम बना ली गई है.
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हालांकि केंद्र ने दागी सांसदों व विधायकों की जानकारी व आंकडों के लिए सुप्रीम कोर्ट से और वक्त मांगा है. दरअसल पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने दागी सांसद और विधायकों के खिलाफ लंबित मुकदमों को एक वर्ष के भीतर निपटाने को देश हित में बताते हुए केंद्र सरकार को विशेष अदालतों का गठन करने के लिए कहा था.वहीं केंद्र सरकार ने कहा था कि वह आपराधिक मामलों को दोषी ठहराए जाने वाले सांसद व विधायकों पर आजीवन चुनाव लड़ने के प्रतिबंध के खिलाफ है. हालांकि सरकार के रुख से ठीक उलट चुनाव आयोग ऐसे लोगों पर आजीवन चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने केपक्ष में है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह केंद्रीय योजना के तहत दागी सांसद और विधायकों के खिलाफ लंबित मुकदमों को निपटाने केलिए विशेष अदालतों का गठन करें.
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पीठ ने फास्ट ट्रैक कोर्ट की तर्ज पर इन विशेष अदालतों का गठन करने के लिए कहा है. केंद्र सरकार को छह हफ्ते के भीतर स्कीम तैयार कर यह बताने के लिए कहा गया कि इसके लिए गठन को कितने फंड की दरकार है. बाद में न्यायिक अधिकारी समेत अन्य स्टाफ की नियुक्तियों पर बाद में विचार किया जाएगा। उस वक्त राज्यों को भी इसमें शामिल किया जाएगा. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि ऐसे मामलों के ट्रायल के लिए अभी तक कितनी स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई गई है. साथ ही इनमें कितनी सेशन कोर्ट और कितने मजिस्ट्रेट कोर्ट हैं और इनका क्षेत्राधिकार क्या है? खास बात यह है कि 2014 के आंकडों के मुताबिक 1581 सांसद व विधायकों पर करीब 13500आपराधिक मामले लंबित हैं. इसके लिए देशभर में करीब एक हजार विशेष अदालतों के गठन की दरकार होगी. इस मामले में अगली सुनवाई 28 अगस्त को होगी.
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