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बांके बिहारी मंदिर में दर्शन मामले पर सुप्रीम कोर्ट- पैसे वालों के लिए आप भगवान को आराम भी नहीं करने देते

चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "12 बजे दोपहर में दर्शन बंद करने के बाद वो भगवान को एक मिनट के लिए भी आराम नहीं करने देते."

बांके बिहारी मंदिर में दर्शन मामले पर सुप्रीम कोर्ट- पैसे वालों के लिए आप भगवान को आराम भी नहीं करने देते
  • बांके बिहारी मंदिर की सुनवाई में SC ने कहा- दर्शन बंद करने के बाद भगवान को एक मिनट भी आराम नहीं करने देते.
  • SC ने कहा, "इस समय धनी, अमीर लोगों को स्पेशल पूजा की अनुमति दी जाती है."
  • अब इस मामले की सुनवाई जनवरी के पहले हफ्ते में होगी.
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वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में भगवान को पैसे के लिए आराम भी नहीं करते दिया जाता है. सोमवार को बांके बिहारी मंदिर से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा. कोर्ट से गठित समिति के तय किए दर्शन के समय को लेकर दायर याचिका की सुनवाई में कोर्ट ने मंदिर प्रशासन समिति और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस (CJI) सूर्यकांत, जस्टिस जॉयमाला बागची और जस्टिस विपुल पंचोली की पीठ ने कहा कि दर्शन करने का वर्तमान समय भगवान का शोषण करने जैसा है.

चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "12 बजे दोपहर में दर्शन बंद करने के बाद वो भगवान को एक मिनट के लिए भी आराम नहीं करने देते. ये वो समय है जब भगवान का सबसे अधिक शोषण किया जाता है. इस समय अधिक पैसे देने वाले धनी, अमीर लोगों को स्पेशल पूजा की अनुमति दी जाती है."
उच्चतम न्यायालय ने (याचिकाकर्ता) ठाकुर श्री बांके बिहारी जी महाराज मंदिर की प्रशासनिक समित की ओर से दायर की गई याचिका की सुनवाई के दौरान ये कहा.

याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने दर्शन के समय और मंदिर की प्रथाओं में बदलाव को लेकर चिंता जताई और इस पर जोर दिया गया कि ऐसे मामलों को सावधानी से संभालने की जरूरत है. 

हाई पावर्ड कमिटी और यूपी सरकार से जवाब तलब

अधिवक्ता श्याम दीवान ने कोर्ट से आमजनों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए दर्शन के लिए पारंपरिक समय के पालन किए जाने के आदेश देने का आग्रह किया. उन्होंने बताया कि भगदड़ और भीड़ को रोकने के लिए कुछ इंतजाम किए गए हैं. इसी के तहत गुरु और शिष्य के बीच धैर्य पूजा बंद करने और दर्शन के लिए ट्रैफिक मैनेजमेंट जैसे बदलाव किए गए थे.

उन्होंने कहा, "हम ऐसी स्थिति नहीं चाहते जहां भगदड़ हो. लिहाजा ट्रैफिक कंट्रोल की जरूरत है. यह केवल टाइमिंग का मसला नहीं है बल्कि परंपराओं से जुड़ा हुआ है. अब CJI के यह कहने के बाद खास दर्शन की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए. वो ऐसे लोगों को बुलाते हैं जो मोटी रकम दे सकते हैं और खास पूजा पर्दा लगाकर किया जाता है."

सर्वोच्च न्यायालय ने हाई पावर्ड कमिटी और उत्तर प्रदेश सरकार से इस बारे में जवाब मांगा है.

क्या है हाई पावर्ड कमिटी और इसे क्या जिम्मेदारी दी गई?

बांके बिहारी मंदिर की मैनेजमेंट कमेटी की याचिका में  उत्तर प्रदेश के श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश 2025 को चुनौती दी गई है. यह अध्यादेश 1939 की मैनेजमेंट स्कीम को एक राज्य के नियंत्रण वाले ट्रस्ट से बदलना चाहता है. वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर प्रशासन और रीति-रिवाजों को गाइड करने वाले 1939 के मैनेजमेंट स्कीम में मंदिर के अधिकारियों के लिए दर्शन के समय, पूजा-पाठ और मंदिर के फाइनेंस की देखरेख के लिए खास भूमिकाओं का जिक्र है.

इस याचिका के साथ ही यह बहस छिड़ गई है कि सरकार को धार्मिक संस्थानों में कितना दखल देना चाहिए और परंपरागत मंदिरों पर इसका क्या असर पड़ सकता है.

इसी साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने बांके बिहारी मंदिर में रोज के कामकाज की देखरेख के लिए एक हाई पावर्ड कमिटी बनाई थी. इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस अशोक कुमार की अध्यक्षता वाली इस हाई पावर्ड कमिटी को साफ पीने के पानी, वॉशरूम, शेल्टर, भक्तों की भीड़ के लिए अलग रास्ते और कमजोर भक्तों के लिए विशेष सुविधाएं मुहैया करवाने का जिम्मा सौंपा गया था. 

साथ ही इसे मंदिर और इसके आसपास के इलाके की विकास योजना बनाने का अधिकार भी दिया गया था, जिसमें जरूरत पड़ने पर जमीन अधिग्रहण भी शामिल था. अब इस मामले की सुनवाई जनवरी के पहले हफ्ते में होगी.

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