न्यूक्लियर हथियारों (Nuclear Weapons) का जखीरा जुटाने की होड़ में चीन ने अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया है. स्वीडन के थिंक टैंक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की एक रिपोर्ट में ये बात सामने आई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने अपने न्यूक्लियर आर्सेनल यानी परमाणु शस्त्रागार में जनवरी 2023 से जनवरी 2024 के बीच जबरदस्त इजाफा किया है. चीन (China Nuclear Arsenal) के पास 2023 में 410 न्यूक्लियर हथियार थे. उसने हथियारों की संख्या बढ़ाकर जनवरी 2024 तक 500 कर लिया. अपने एनालिसिस में SIPRI ने कहा कि चीन का न्यूक्लियर आर्सेनल आने वाले सालों में 500 से और बढ़ने की उम्मीद है.
SIPRI की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत भी न्यूक्लियर हथियारों के मामले में पाकिस्तान से आगे निकल गया है. भारत के न्यूक्लियर वॉरहेड की संख्या 172 हो गई है. जबकि पाकिस्तान के पास 170 वॉरहेड हैं. भारत के नए हथियार लंबी दूरी के हैं और ये चीन पर निशाना साध सकते हैं.
आइए जानते हैं चीन कैसे निकल गया न्यूक्लियर हथियारों में आगे:-
चीन किसी भी देश की तुलना में सबसे तेज़ी से अपने न्यूक्लियर हथियारों का ज़ख़ीरा बढ़ा रहा है. चीन के पास फिलहाल 500 न्यूक्लियर हथियार हैं. एक साल में चीन ने भारत के मुकाबले 11 गुना तेजी से न्यूक्लियर हथियार जमा किए हैं. चीन ने अपने न्यूक्लियर हथियार बैलिस्टिक मिसाइल पर फिट कर रखा है. साथ ही उसे हाई ऑपरेशनल अलर्ट यानी हमले के लिए तैयार मोड पर कर रखा है.
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क्या चाहता है चीन?
दरअसल, चीन की प्रतियोगिता अमेरिका से है. उसने अपने हथियार हमले के लिए नहीं, बल्कि अमेरिका और रूस पर दबदबे के लिए बढ़ाए हैं. हथियारों का ज़खीरा बढ़ाने का दूसरा कारण सीमा विवाद भी है. चीन का ज्यादातर पड़ोसी देशों से सीमा विवाद चल रहा है. ताइवान को लेकर चीन का अमेरिका के साथ विवाद है. चीन साउथ चाइना सी पर भी अपना अधिकार बताता है. भारत के पूर्वी लद्दाख, सिक्किम और अरुणाचल को लेकर चीन का विवाद है.
चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना
दुनिया की सबसे बड़ी सेना तैयार करने के बाद चीन ने पूरी दुनिया में आर्मी बेस बनाने के अभियान को तेज कर दिया है. अमेरिका के चर्चित थिंक टैंक रैंड की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने दुनियाभर के देशों के साथ आर्मी बेस का समझौता कर रहा है, ताकि अपनी सेना को ग्लोबल लेवल पर पहुंचा सके. इससे जहां ताइवान को लेकर अमेरिका को चुनौती देने की तैयारी है, वहीं भारत की चौतरफा घेरेबंदी का खतरा पैदा हो गया है.
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चीन क्यूबा, पाकिस्तान, तन्ज़ानिया में आर्मी बेस बनाने की कोशिश कर रहा है. उसकी मंशा श्रीलंका और म्यांमार में भी आर्मी बेस तैयार करने की है. समंदर के जरिए जाने वाली कम्युनिकेशन लाइन को सुरक्षित करना भी उसका लक्ष्य है. जानकार बताते हैं कि अगर ग्वादर, हंबनटोटा में चीन का बेस बना, तो इससे भारत के लिए मुश्किलें खड़ी होंगी. अगर ऐसा हुआ तो भारत को भी साउथ चाइना सी में अपनी मौजूदगी मजबूत करनी होगी और पलटवार के लिए तैयार रहना होगा. इसके लिए अमेरिका भी भारत की मदद के लिए आगे आ सकता है.
किन देशों के पास कितने हैं एटमी हथियार?
रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इजरायल समेत 9 न्यूक्लियर पावर वाले देशों ने अपने आर्सेनल का मॉर्डनाइजेशन जारी रखा. उनमें से कई ने 2023 में नई न्यूक्लियर कैपेवल वॉरहेड सिस्टम तैनात की हैं.
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संयुक्त राज्य अमेरिका
संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) ग्लोबल न्यूक्लियर एरिना (क्षेत्र) में एक प्रमुख खिलाड़ी बना हुआ है. जनवरी 2024 तक अमेरिका के आर्सेनल में कुल 5044 न्यूक्लियर हथियार शामिल थे. इनमें एक महत्वपूर्ण हिस्सा बैलिस्टिक मिसाइलों और एयरक्राफ्ट का था. अमेरिका ने अपने न्यूक्लियर आर्सेनल का मॉर्डनाइजेशन जारी रखा है. अमेरिका लैंड बेस्ड इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों (ICBM), सबमरीन से लॉन्च किए जाने वाले बैलिस्टिक मिसाइलों (SLBM) और स्ट्रैटजिक बॉम्बर्स की ताकत को बढ़ाने पर फोकस कर रहा है.
रूस
अमेरिका के साथ-साथ रूस भी अपनी एटमी ताकत बढ़ा रहा है. हालांकि, कुछ उतार-चढ़ावों के साथ रूस का मिलिट्री स्टॉकपाइल 5580 हथियारों के साथ स्थिर बना हुआ है. साल 2023 में रूस ने एडिशनल 36 वॉरहेड तैनात किए. यह उसके न्यूक्लियर डिटरेंस यानी परमाणु निरोध को दिखाता है.
यूनाइटेड किंगडम (UK)
यूनाइटेड किंगडम ने 2023 में अपनी न्यूक्लियर पॉलिसी में महत्वपूर्ण बदलाव का ऐलान किया था. यूके अपने न्यूक्लियर वॉरहेड की लिमिट को 225 से बढ़ाकर 260 करने की प्लानिंग में है. हालांकि, बीते साल इस देश ने अपने आर्सेनल में नए हथियार नहीं जोड़े. यूके का यह फैसला एक क्रेडिबल न्यूक्लियर डिटरेंट को लेकर उसकी प्रतिबद्धता को दिखाता है. यहां तक कि ब्रिटेन ने अपने खास न्यूक्लियर हथियारों का सार्वजनिक खुलासा भी बंद कर दिया है.
फ्रांस
फ्रांस भी इस रेस में शुमार है. उसने अपनी एटमी क्षमताओं का विकास और विस्तार करना जारी रखा है. फ्रांस थर्ड जनरेशन की न्यूक्लियर पावर्ड बैलेस्टिक मिसाइल सबमरीन (SSBN) और एक नई हवा से लॉन्च क्रूज मिसाइल को आगे बढ़ाना चाहता है.
भारत
SIPRI के मुताबिक, पिछले साल तक भारत के पास 164 न्यूक्लियर हथियार थे. भारत एक तरफ पाकिस्तान से मुकाबले के लिए न्यूक्लियर हथियारों पर फोकस कर रहा है. दूसरी तरफ, लंबी दूरी तक हमले में सक्षम हथियारों पर भी जोर दे रहा है. ये पूरे चीन को कवर कर सकते हैं. SIPRI की रिपोर्ट के मुताबिक, 2014-18 और 2019-23 के बीच भारत 4.7% की वृद्धि के साथ दुनिया का टॉप आर्म्स इंपोर्टर देश था.
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पाकिस्तान
पाकिस्तान के पास अनुमानित 170 स्टोर्ड वॉरहेड हैं. उसने अपनी न्यूक्लियर डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम को विकसित करना भी जारी रखा है. वास्तव में भारत के साथ चल रही प्रतिद्वंद्विता पाकिस्तान की न्यूक्लियर स्ट्रैटजी को ऑपरेट करती है. दोनों देश बैलिस्टिक मिसाइलों पर कई हथियार तैनात करने की क्षमता को हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं.
उत्तर कोरिया
उत्तर कोरिया की बात करें, तो जनवरी 2024 तक उसने लगभग 50 हथियार इकट्ठे कर लिए थे. उत्तर कोरिया के पास 90 हथियारों के लिए पर्याप्त फिजाइल मटेरियल था. वास्तव में उत्तर कोरिया की न्यूक्लियर महत्वाकांक्षाएं उसकी क्षेत्रीय सुरक्षा गतिशीलता को अस्थिर कर रही हैं, क्योंकि पड़ोसी देश दक्षिण कोरिया के साथ उसका तनाव बढ़ता जा रहा है.
इजरायल
वैसे तो इजरायल आधिकारिक तौर पर अपने न्यूक्लियर आर्सेनल को स्वीकार नहीं करता. लेकिन फिर भी वह अपनी क्षमताओं को लगातार बढ़ा रहा है. यरूशलम से 144 किमी दूर डिमोना में इजरायल प्लूटोनियम प्रोडक्शन रिएक्टर को अपग्रेड कर रहा है.
दुनियाभर में कितने न्यूक्लियर हथियार तैनात?
दुनियाभर में अभी 3904 न्यूक्लियर हथियार मिसाइलों या एयरक्राफ्ट में तैनात हैं. इनमें से 2100 को हाई अलर्ट पर रखा गया है. ये हथियार ज्यादातर अमेरिका और रूस के हैं. दुनिया में न्यूक्लियर हथियारों की संख्या अब 12 हजार 121 हो चुकी है.
NATO और न्यूक्लियर शेयरिंग
अमेरिका का सहयोगी संगठन North Atlantic Treaty Organization यानी NATO की न्यूक्लियर शेयरिंग में यूरोप में यूएस बी-61 न्यूक्लियर बमों की तैनाती शामिल है. ये अमेरिका के कंट्रोल और उसकी निगरानी में रहते हैं. जंग या संघर्ष की स्थिति में इन हथियारों को नाटो सदस्य देशों से दोहरे-सक्षम विमान (DCA) से डिस्ट्रिब्यूट किया जाता है. DCA न्यूक्लियर प्लानिंग ग्रुप, अमेरिकी राष्ट्रपति और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के प्राधिकरण के अधीन रहेगा.
न्यूक्लियर डेप्लोमेसी
संयुक्त राष्ट्र परमाणु निरस्त्रीकरण यानी Nuclear Disarmament को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसी को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने New START Treaty की पहल की थी. यह संधि अमेरिका और रूस के बीच परमाणु हथियारों की संख्या को सीमित करने के लिए 5 फरवरी 2011 को हुई थी. क्योंकि दुनिया में सबसे अधिक परमाणु हथियार रूस के पास हैं. हालांकि, रूस ने न्यू स्टार्ट संधि को निलंबित करने का ऐलान किया है. पुतिन ने ऐलान किया है कि रूस अपनी रक्षा के लिए हथियारों के जखीरे को बढ़ाएगा.
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