चीन खुद को दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति बनाना चाहता है. इसके लिए वह 2030 तक 1000 परमाणु हथियार (Nuclear Weapons) बनाने में लगा है. इस बीच कुछ सैटेलाइट तस्वीरों ने भी हलचल बढ़ा दी है. इन तस्वीरों से साफ संकेत मिलता है कि चीन उत्तर-पश्चिम के ऑटोनॉमस इलाके झिंजियांग में जल्द ही न्यूक्लियर हथियारों की टेस्टिंग या सब-क्रिटिकल न्यूक्लियर एक्सप्लोजन (Subcritical Nuclear Explosions) करने की स्थिति में हो सकता है.
अमेरिकी अखबार 'न्यूयॉर्क टाइम्स' की एक डिटेल रिपोर्ट में चीन के इस न्यूक्लियर साइट की सैटेलाइट तस्वीरें पहली बार प्रकाशित हुई हैं. तस्वीरों में झिंजियांग में चीन की लोप नूर न्यूक्लियर टेस्ट फेसिलिटी के संभावित रिएक्टिवेशन को देखा जा सकता है. NDTV के पास इन सैटेलाइट तस्वीरों को एक्सेस है.
चीन की ये कोशिश नई पीढ़ी की बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों पर फिट किए गए उसके कुछ लेटेस्ट न्यूक्लियर हथियारों को मजबूती देने में उसकी दिलचस्पी की ओर इशारा करता है.
'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ''लोप नूर की एक्टिविटी अमेरिका-चीन के रिश्तों में सबसे संवेदनशील पलों में से एक है.'' रिपोर्ट में आगे लिखा गया, "राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि वह तेजी से बढ़ते विवादास्पद रिश्ते को 'स्थिर' करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने पिछले महीने एक समिट में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ समझौते की मांग की थी."
हालांकि, चीन ने 'न्यूयॉर्क टाइम्स' की इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है. चीन की तरफ से कहा गया कि यह रिपोर्ट चीन के न्यूक्लियर खतरे को हवा दे रहा है, जिसका कोई आधार नहीं है.
वैसे पिछले कुछ साल में लोप नूर न्यूक्लियर फेसिलिटी की तस्वीरों से पता चलता है कि यहां अपग्रेडेशन का काम हो रहा है. अपनी रिपोर्ट में 'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने कहा, "2017 तक कुछ इमारतों से घिरी पुरानी साइट धीरे-धीरे हाइटेक, अल्ट्रा मॉर्डन कॉम्प्लेक्स में बदल गई, जिसके चारों ओर सिक्योरिटी फेंसिंग है."
बता दें कि सैटेलाइट तस्वीरें इलाके में एक नए एयरबेस के कंस्ट्रक्शन, कई शाफ्टों के कंस्ट्रक्शन और शायद स्मोकिंग गन (जो लगभग 90 फीट ऊंची है) को दिखाती है.
सैटेलाइट तस्वीरों में एक मिनी-टाउनशिप भी देखा जा सकता है. शायद ये लोप नूर न्यूक्लियर साइट के लिए एक सपोर्ट फेसिलिटी के तौर पर है. टाउनशिप के अंदर वाले हिस्से को मालन के नाम से जाना जाता है. ये एक रिंग है, जो लोप नूर साइट के समान ही दिखती है. ऐसा माना जाता है कि यह शाफ्ट ड्रिलर्स के लिए एक ट्रेनिंग सेंटर है.
चीन की रॉकेट फोर्स उसके मिलिट्री आर्सेनल (शस्त्रागार) का एक खास हिस्सा ही हवा, समुद्र और जमीन से लॉन्च की गई न्यूक्लियर हथियारों को कंट्रोल करती है. यह इंटिग्रेटेड कमांड और कंट्रोल सिस्टम के तहत ऑपरेट होता है.
मॉन्टेरी में मिडिलबरी इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज की एक रिपोर्ट में कहा गया कि चीन की मिसाइल ताकतों का मौजूदा विस्तार चीन की पहले से नियंत्रित सेकेंड स्ट्राइक न्यूक्लियर पोस्चर में एक बड़े बदलाव की ओर इशारा करता है. इस पता चलता है कि चीन न्यूक्लियर वॉर की दिशा में क्या कर रहा है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एक दशक से भी ज्यादा समय पहले चीन के पास करीब 50 इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें थीं. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी रॉकेट फोर्स अब 2030 तक 1000 से ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्चर तैनात करने की राह पर है. इसमें कम से कम 507 न्यूक्लियर-कैपेबल लॉन्चर शामिल हैं.
न्यूक्लियर हथियार रखने के लिए जाने जाने वाले सभी देशों में सिर्फ पाकिस्तान ने ही कम टेस्टिंग की है. आर्मी कंट्रोल एसोसिएशन का कहना है कि अमेरिका ने 1945 और 2017 के बीच 1030 टेस्टिंग किए. USSR/रूस ने 715, फ्रांस ने 210 न्यूक्लियर टेस्टिंग की. वहीं, चीन और यूके ने 45-45 टेस्टिंग की है.
भारत के 1998 के पोखरण एक्सप्लोजन के जवाब में पाकिस्तान ने दो न्यूक्लियर डिवाइसेस की टेस्टिंग की. न्यूक्लियर हथियार क्लब में नए सदस्य उत्तर कोरिया ने 6 टेस्टिंग की है.
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