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बिहार में कमजोर हुई जाति की राजनीति, 2020 में 90% सीटों पर था दबदबा, देखिए इस बार कितना घटा

Bihar Caste Politics: साल 2025 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद यह साफ हो गया कि सामाजिक आधार राजनीति की दिशा तय करता है. वोटर्स सिर्फ जाति देखकर मतदान नहीं करता है. इस बार कई जातियों की सीटों में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं.

बिहार में कमजोर हुई जाति की राजनीति, 2020 में 90% सीटों पर था दबदबा, देखिए इस बार कितना घटा
यादवों की सीटें आधी से भी कम, RJD हैरान
  • बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मतदाताओं ने जाति के बजाय काम और मुद्दों को प्राथमिकता दी है
  • 2020 के मुकाबले जाति आधारित राजनीति का प्रभाव 90 प्रतिशत से घटकर 60 प्रतिशत रह गया है
  • यादवों की संख्या विधानसभा में घटकर 45 से 20 हो गई, जो आरजेडी के लिए चिंता का विषय है
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नई दिल्‍ली:

बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों पर टिकी रही है, लेकिन इस बार जाति की दीवार टूट गई है. यादव, कुर्मी, कुशवाहा, भूमिहार, पिछड़ा, दलित और मुस्लिम लगभग सबकी सीटें तय मानी जाती थीं. इसका असर ये देखने को मिलता था कि किसी भी पार्टी या गठबंधन को इतनी सीटें नहीं मिल पाती थीं कि वे अपने दम पर सरकार बना सके. लेकिन इस बाद बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में दिखा कि ये जाति की दीवार मतदाताओं ने तोड़ दी है. वोटर्स ने जाति नहीं, काम और मुद्दों को ध्‍यान में रखकर ईवीएम का बटन दबाया है. नतीजे बताते हैं कि 2020 के चुनाव में जाति की राजनीति 90% सीटों पर हावी नजर आई थी, लेकिन 2025 के चुनाव में ये सिर्फ 60 प्रतिशत रह गई है.

साल 2025 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद यह साफ हो गया कि सामाजिक आधार राजनीति की दिशा तय करता है. वोटर्स सिर्फ जाति देखकर मतदान नहीं करता है. इस बार कई जातियों की सीटों में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं. 2020 और 2015 के मुकाबले जातीय प्रतिनिधित्व का यह बदलाव आने वाले राजनीतिक संकेतों को भी दर्शाता है. ये दर्शाता है कि बिहार में 'जाति की दीवार' टूट रही है.

जाति2020 में विधायक2025 में विधायक
यादव4520
राजपूत2820
मुस्लिम188
कुर्मी/कुशवाह1613
भूमिहार2116
अन्‍य अपर कास्‍ट129
अनुसूचित जाति3124
नॉन यादव ओबीसी2418
अनुसूचित जनजाति22
ईबीसी2114
कुल218144


यादवों की सीटें आधी से भी कम, RJD हैरान

243 सीटों वाले बिहार विधानसभा के नतीजों ने इस बार कई मायनों में चौंकाया. चुनावों के नतीजे दर्शाते हैं कि इस बार यादवों की सीटें आधी से भी कम रह गई हैं. 2020 में जहां यादवों के 45 विधायक विधानसभा पहुंचे थे, वहीं 2025 में उनकी संख्या घटकर सिर्फ 20 रह गई. 2015 में यादव 61 सीटों पर जीतकर आए थे. लगातार तीन चुनावों की तुलना करें, तो यादवों का राजनीतिक ग्राफ बेहद नीचे आ गया है. यादवों को RJD का मजबूत वोट बैंक माना जाता रहा है, लेकिन इस बार तस्‍वीर बदली हुई नजर आई. लालू यादव और तेजस्‍वी यादव भी इस बदलाव पर हैरान हैं.     

कुर्मी, राजपूत MLA भी घटे 

ऐसा नहीं है कि सिर्फ यादव वोटर्स में ही बिखराब देखने को मिला है, साल 2025 के चुनाव में राजपूत, भूमिहार, कुर्मी, कुशवाहा, मुस्लिम, अनुसूचित जाति और वैश्य समाज के वोटर्स ने भी सिर्फ जाति देखकर वोट नहीं दिया है. 2025 में  कुर्मी/कुशवाहा विधायकों की संख्‍या 16 से घटकर 13 रह गई हैं. 2020 में राजपूत विधायकों की संख्‍या 28 थी, जो 2025 में घटकर 20 रह गई हैं.

मुस्लिम MLA 18 से घटकर रह गए सिर्फ 8

मुस्लिम विधायकों की संख्‍या 2020 के मुकाबले 18 से घटकर 2025 में सिर्फ 8 रह गई है. 2020 में 21 भूमिहार विधायक जीत कर आए थे, लेकिन 2025 विधानसभा चुनाव में इनकी संख्‍या 16 रह गई है. उच्‍च जाति के विधायकों की संख्‍या में भी कमी आई है. 2020 के मुकाबले 2025 में संख्‍या 12 से घटकर 9 रह गई है. 

यह चुनाव जातीय राजनीति की दिशा में एक नया बदलाव रेखांकित करता है. पारंपरिक MY (मुस्लिम–यादव) समीकरण भी इस बार फेल होता नजर आया है.

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