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पहले ब्राह्मण विधायकों का जुटान, फिर चौधरी की चिट्ठी, क्या यूपी बीजेपी में सब कुछ ठीक है?

यूपी बीजेपी में हाल ही में नेतृत्व परिवर्तन के बाद सियासी हलचल तेज हो गई है. नए प्रदेश अध्यक्ष पंकज चौधरी के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के भीतर जातीय गोलबंदी को रोकने की है. ब्राह्मण विधायकों की हालिया बैठक ने यह संकेत दिया है कि संगठन में सब कुछ सामान्य नहीं है.

पहले ब्राह्मण विधायकों का जुटान, फिर चौधरी की चिट्ठी, क्या यूपी बीजेपी में सब कुछ ठीक है?
  • यूपी बीजेपी अध्यक्ष पंकज चौधरी के कार्यकाल में जाति आधारित विधायकों की बैठक राजनीतिक संदेश देती है
  • ब्राह्मण विधायकों की हालिया बैठक को एसआईआर मामले से जोड़ा गया है लेकिन इसका राजनीतिक महत्व भी काफी है
  • प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने जाति आधारित बैठकों को पार्टी हित में नकारात्मक बताया और चेतावनी दी
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उत्तर प्रदेश बीजेपी में नए प्रदेश अध्यक्ष पंकज चौधरी को कुर्सी संभालते ही एक विचित्र परिस्थिति का सामना करना पड़ा. प्रदेश बीजेपी के 50 से भी ज्यादा ब्राह्मण विधायकों का भोज पर मिलना, यह संदेश दे गया कि राज्य बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा. हालांकि इसके बाद चौधरी ने सार्वजनिक रूप से नकारात्मक राजनीति से बचने की नसीहत दी. लेकिन उनके इस बयान के बाद प्रदेश बीजेपी में नए प्रश्न खड़े हो गए हैं.

यह पहली बार नहीं है, जब राज्य बीजेपी के विधायक जाति के आधार पर गोलबंदी करते दिखे हों. सबसे पहले राजपूत समाज के पार्टी विधायकों की बैठक हुई थी. इसके बाद कुर्मी समाज के विधायक मिले और अब ब्राह्मण विधायकों की बैठक हुई जो भोज पर इकट्ठा हुए. हालांकि यह कहा गया कि यह बैठक एसआईआर को लेकर बुलाई गई थी लेकिन इसके राजनीतिक यथार्थ किसी से छिपे नहीं हैं.

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यूपी बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार जातियों के आधार पर इस तरह की बैठकें पार्टी के हित में नहीं हैं. यह एक तरह से जाति की राजनीति करने वाले समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे दलों की बिछाई पिच पर खेलने जैसा है. इससे सपा जैसी पार्टियां फायदा उठाने का प्रयास कर सकती हैं.

लेकिन यह भी पूछा जा रहा है कि आखिर क्या वजह है कि पार्टी ने इससे पहले जातियों के आधार पर विधायकों की गोलबंदी का संज्ञान नहीं लिया. क्या ब्राह्मण विधायकों की बैठक इससे पहले जातियों के आधार पर हुई विधायकों की बैठकों के जवाब में हुई थी. यह भी पूछा गया है कि जब चुनाव से पहले पार्टी जातियों के सम्मेलन करती है तो जाति के आधार पर विधायक क्यों नहीं मिल सकते.

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प्रदेश बीजेपी के एक नेता के अनुसार उत्तर प्रदेश-बिहार जैसे राज्यों में जाति एक वास्तविकता है जिससे इनकार नहीं किया जा सकता. चुनावी समीकरणों में भी जातियों का अपना महत्व है. लेकिन प्रदेश अध्यक्ष पंकज चौधरी ने अपने बयान में स्पष्ट किया कि बीजेपी ने पीएम मोदी के नेतृत्व में राज्य में सामाजिक न्याय, सर्वस्पर्शी और सर्वसमावेशी राजनीति को स्थापित किया है. पीएम मोदी की विकासवादी और राष्ट्रवादी राजनीति के सामने प्रदेश में विपक्ष की जाति आधारित राजनीति का अंत हो रहा है.

हालांकि कुछ प्रदेश बीजेपी नेताओं के अनुसार 2027 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती है. 2024 लोक सभा चुनाव में मिले झटके के बाद पार्टी के लिए यूपी में हैट्रिक लगाना एक बड़ी चुनौती होगी. इसके लिए कुशल राजनीतिक प्रबंधन और जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों को साधना अनिवार्य है. बीजेपी के किसी भी समर्थक वर्ग को यह नहीं लगना चाहिए कि उसकी उपेक्षा हो रही है. इसीलिए जातियों के आधार पर विधायकों की इस गोलबंदी में छिपे राजनीतिक संदेशों को पहचानना बहुत जरूरी है.

प्रेरणा स्थल से संदेश देने की कोशिश

यूपी बीजेपी के नेता लखनऊ में नवनिर्मित प्रेरणा स्थल का उदाहरण दे रहे हैं। उनका कहना है कि बीजेपी ने अपने तीन प्रेरणास्रोतों – डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी की विशाल प्रतिमाएं स्थापित कर एक बड़ा संदेश दिया है. वे प्रेरणा स्थल के विरोध में आए एआईएमआईएम के नेता के बयान का हवाला देते हैं जिसमें इन तीनों नेताओं के ब्राह्मण होने के कारण इसे पंडा पार्क कहा गया. इनके मुताबिक, विपक्ष की इस तरह की टिप्पणी ब्राह्मण वोटों को बीजेपी के पक्ष में मजबूत करेगी. वे कहते हैं कि अन्य राज्यों की तुलना में यूपी में ब्राह्मण महत्वपूर्ण संख्या में हैं और पूरे राज्य में वे चुनाव परिणामों पर असर डालते हैं.

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राज्य में 8-10 प्रतिशत संख्या मानी जाती है और आकलन है कि 100-125 विधानसभा सीटों पर वे प्रभावी हैं. 2014 के बाद से ही ब्राह्मण यूपी में बीजेपी का वोट बैंक माने जाने लगे हैं, ठीक वैसे ही जैसे यादव सपा के और जाटव बसपा के माने जाते हैं. इसीलिए ब्राह्मणों में असंतोष और उपेक्षा का भाव बीजेपी नजरअंदाज नहीं कर सकती. अब नजरें इस बात पर भी लगी हैं कि योगी कैबिनेट में फेरबदल कब होता है और 2027 चुनाव के लिए किस तरह के समीकरण साधे जाते हैं.

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