उत्तर प्रदेश (UP) के पूर्वांचल में कोरोना (Coronavirus) का कहर किस कदर है यह गंगा नदी के किनारे-किनारे चलने पर नजर आता है. गहमर से बक्सर तक नाव से जाने पर रास्ते में इसकी भयावह स्थिति देखने को मिलती है जहां अभी भी सैकड़ों की संख्या में शव इस बीमारी की कहानी खुद बता रहे हैं. गहमर से बक्सर तक गंगा के किनारे शव बिखरे हुए हैं. बीते दिनों गाजीपुर (Ghazipur) के गहमर इलाके में गंगा की तराई में शव मिलने से हड़कंप मच गया था. आनन-फानन में प्रशासन ने उन शवों को दफना दिया. लेकिन गहमर से नाव के जरिए जैसे-जैसे आप आगे बढ़ेंगे वैसे-वैसे किनारे पर पड़े शव इस महामारी का पूरा सच बताते नज़र आ रते हैं जो कि मिट्टी के नीचे दबाने से भी दब नहीं रहे हैं.
शिवदास मांझी ने बताया कि ''हम 40 साल से नाव चला रहे हैं लेकिन इतना कभी नहीं देखा. लोग रात में आते हैं और फेंक जाते हैं.''
गंगा के तराई इलाके की भौगोलिक स्थिति देखें तो यहां पर बिहार के साथ-साथ नावली, अतरौली, रेवतीपुर करहिया सहित दर्जनों गांवों की अस्थियां गंगा में आती हैं. हमेशा की परंपरा रही है कि कोई मरता है तो उसका दाह संस्कार इन्हीं घाटों पर किया जाता है. लेकिन पिछले दिनों कोरोना बीमारी की वजह से मरने वालों की तादाद इतनी बढ़ गई कि लोग उन्हें जलाने के बजाए गंगा में सीधे तौर पर फेंककर चले गए .
शव पहले कुछ दिन तो गंगा की गोद में रहते हैं लेकिन कुछ दिनों बाद फूलकर ये शव गंगा की सतह पर आकर किनारों से लग जाते हैं. हालत यह है कि गंगा में स्नान करने वाले लोग भी गंगा के पानी को छूते हुए कतराने लगे हैं. एक स्थानीय नागरिक ने कहा कि अब कोई भी गंगा में नहाना तो दूर, आचमन तक नहीं कर रहा है.
सरकारें और प्रशासन कोविड को लेकर चाहे जितने दावे करें कि सब कुछ उनके नियंत्रण में है, लेकिन गंगा के किनारे मिल रहे शव उनके इस दावे की पोल खोल रहे हैं.
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इतने शव गंगा में दिखना कोई आम घटना नहीं है, लिहाजा सरकार को इसे बालू में दफनाकर लीपापोती करने के बजाय गांव-गांव में इस बीमारी से लड़ने की मुकम्मल व्यवस्था करनी चाहिए जिससे न सिर्फ लोगों को इस बीमारी से लड़ने की ताकत मिलेगी बल्कि लोगों की जान भी बचेगी और तब गंगा में इतने शव भी नहीं दिखेंगे.
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