
- बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण मामले पर सुनवाई के दौरान SC ने आयोग से पूछा कि कितनी पार्टियों ने आपत्ति दी.
- चुनाव आयोग ने बताया कि किसी राजनीतिक पार्टी ने आपत्ति दर्ज नहीं कराई है, जबकि इनके 1.6 लाख बूथ लेवल एजेंट हैं.
- चुनाव आयोग ने कहा कि जिनके नाम छूटे हैं और जो बाहर हैं, वे ऑनलाइन आपत्ति दर्ज करा सकते हैं.
बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) मामले में सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस बात के लिए नाराजगी जताई कि चुनाव आयोग के कहने के बावजूद राजनीतिक पार्टियां आपत्ति दर्ज कराने नहीं पहुंची. आयोग ने कोर्ट को बताया कि किसी पार्टी ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई, जबकि 2.63 लाख नए वोटर्स ने अर्जी दी है. चुनाव आयोग की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'ऐसा लगता है कि राजनीतिक पार्टियों से ज्यादा वोटर्स ही जागरूक हैं.'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मतदाता सूची में सुधार के लिए राजनीतिक दल भी आगे आएं और लोगों की मदद करें. साथ ही ये भी कहा कि आयोग को प्रमाण के रूप में बाकी वैध दस्तावेजों के साथ 'आधार' को भी मानना होगा. कोई वयक्ति 11 वैध दस्तावेजों में से कोई एक डॉक्युमेंट या आधार के जरिये अपना नाम जुड़वा सकेंगे.
मदद को आगे आएं राजनीतिक दल
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भले ही हर व्यक्ति को नाम जुड़वाने या हटाने का अधिकार है, लेकिन यह भी जरूरी है कि बिहार की 12 मान्यता प्राप्त पार्टियां अपने बूथ लेवल एजेंट (BLA) के जरिए इस काम में मदद करें.
कोर्ट ने 14 अगस्त को सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग को हलफनामा दायर करने को कहा था और ड्राफ्ट सूची से हटाए गए 65 लाख नामों की लिस्ट प्रकाशित करने को कहा था. आयोग ने लिस्ट पब्लिश की है और कारण भी बताए हैं.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की बड़ी बातें
- सुप्रीम कोर्ट ने सभी 12 राजनीतिक दलों को निर्देश दिया कि वे उन 65 लाख लोगों की सूची ERO (निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी) को दें, जिनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए हैं.
- कोर्ट इस बात से हैरान थी कि चुनाव आयोग के अनुसार, 1.60 लाख BLA होने के बावजूद काफी कम आपत्तियां दर्ज की गई हैं.
- कोर्ट ने कहा कि अगर राजनीतिक दल दावा करते हैं कि चुनाव आयोग उन्हें आपत्ति दाखिल करने की अनुमति नहीं दे रहा, तो अब वे खुद आगे आकर मतदाताओं की मदद करें.
- कोर्ट ने यह भी साफ किया कि चुनाव आयोग को आधार कार्ड को जरूर स्वीकार करना होगा, और किसी भी प्रकार के अतिरिक्त दस्तावेज की जरूरत नहीं है.
- सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सभी 12 राजनीतिक दलों को शामिल किया और कहा कि वे सभी अपनी स्थिति के बारे में कोर्ट को एक स्टेटस रिपोर्ट दें. कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर उन्हें बड़ी संख्या में लोगों की प्रतिक्रिया मिलती है, तो वे इस पर और विचार करेंगे.
- सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को आदेश दिया कि वे सभी राजनीतिक दलों को इस फ़ैसले की जानकारी दें और उन्हें कोर्ट में पेश होने के लिए कहें.
- कोर्ट ने अपने 14 अगस्त के आदेश को दोहराते हुए यह भी कहा कि लोग ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं और उन्हें व्यक्तिगत रूप से कहीं जाने की जरूरत नहीं है.
आइए जानते हैं, इससे पहले कोर्ट में क्या-क्या हुआ.
कोर्ट ने पूछा- कोई आया, आयोग बोला- नहीं
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने चुनाव आयोग से पूछा, '12 पंजीकृत राजनीतिक पार्टियों में से कितनी पार्टियां इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट आई हैं?' चुनाव आयोग ने जवाब दिया, 'कोई नहीं.'
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में आरजेडी की ओर से कपिल सिब्बल पेश हुए. उन्होंने कहा कि आरजेडी के मनोज झा की ओर से वो पक्ष रख रहे हैं. सात अन्य राजनीतिक पार्टियों की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी पेश हुए.
इस पर आरजेडी की ओर से पेश हुए वकील सिब्बल ने कहा कि वो आरजेडी के लिए ही हैं, जबकि सिंघवी ने बताया कि कई और पार्टियां भी इस मुद्दे से जुड़ी हुई हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने फिर पूछा, 'कितने बूथ लेवल एजेंट (BLA) नियुक्त किए गए हैं और क्या आपको और एजेंटों की जरूरत है?'
चुनाव आयोग ने बताया कि किसी भी पार्टी ने इस संबंध में कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई है. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान बीजेपी का भी नाम लिया. इस पर सिब्बल ने कहा कि बीजेपी क्यों आएगी?
आयोग के वकील ने बताया- क्या करना होगा?
चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कोर्ट को बताया कि ड्राफ्ट लिस्ट में नाम शामिल न होने के कारणों को वेबसाइट पर ज़िला स्तर पर सार्वजनिक किया गया है. उन्होंने कहा कि यह जानकारी पहले बीएलए को भी दी गई थी. पंचायत और बीडीओ कार्यालयों में भी लिस्ट लगाई गई थी और सोशल मीडिया पर भी इसकी जानकारी दी गई थी.
द्विवेदी ने बताया कि इन 65 लाख लोगों को डिजिटल तरीके से भी अपना आधार कार्ड जमा कर जानकारी हासिल करने का विकल्प दिया गया था. अब अगर किसी को सुधार कराना है तो उसे आवेदन के साथ फॉर्म 6 भरकर दावा करना होगा.
इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा, 'तो क्या इन लोगों को आपत्ति दर्ज करानी होगी?' चुनाव आयोग ने जवाब दिया कि सुधार के लिए आवेदन या फॉर्म 6 के साथ घोषणा पत्र देना होगा. कोई भी व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से आवेदन कर सकता है.
'1.61 लाख BLA, लेकिन किसी ने...'
चुनाव आयोग (EC) ने राजनीतिक पार्टियों के रवैये पर सवाल खड़े किए कि कोई पार्टी आपत्ति लेकर नहीं आई. आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच को बताया कि जो पार्टियां मतदाता सूची की प्रक्रिया पर सवाल उठा रही हैं, उन्होंने अब तक एक भी लिखित आपत्ति दर्ज नहीं कराई है. उन्होंने बताया कि इन पार्टियों के पास 1 लाख 61 हजार बूथ लेवल एजेंट (BLA) हैं. एक BLA एक दिन में 10 आपत्तियों का सत्यापन कर सकता है, लेकिन किसी ने भी इसका फायदा नहीं उठाया.
जिन्हें आपत्ति, उन्हें बिहार आने की जरूरत नहीं
चुनाव आयोग की ओर से ये भी बताया गया कि 2 लाख 63 हजार नए वोटरों ने 1 अगस्त के बाद मतदाता सूची में रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन किया है. कोई भी व्यक्ति कहीं से भी ऑनलाइन या ऑफलाइन दावा दाखिल कर सकता है. इसके लिए उसे बिहार आने की जरूरत नहीं है.
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने चुनाव आयोग को उन 65 लाख लोगों की बूथ-वार सूची जारी करने का निर्देश दिया था, जिनके नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में शामिल नहीं थे. कोर्ट ने यह भी कहा था कि लिस्ट में नाम न होने की वजह भी बताई जाए.
चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया कि निर्देशों का पालन किया गया है और 65 लाख लोगों की बूथ-वार लिस्ट वेबसाइट पर डाल दी गई है. इसमें नाम न होने के कारण भी बताए गए हैं और ये जानकारी ज़िला स्तर पर उपलब्ध है.
इसके अलावा, बीएलए और सोशल मीडिया के जरिए भी यह जानकारी साझा की गई है कि लोग डिजिटल माध्यम से आधार कार्ड जमा कर दावा या आपत्ति दर्ज करा सकते हैं. अब अगर किसी को सुधार कराना है, तो उसे आवेदन के साथ फॉर्म 6 के ज़रिए दावा करना होगा.
राजनीतिक दलों से ज्यादा जागरूक हैं वोटर्स: SC
चुनाव आयोग की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'ऐसा लगता है कि मतदाता राजनीतिक दलों से ज्यादा जागरूक हैं.' दरअसल, चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया कि मतदाता सूची से नाम हटाने के खिलाफ आपत्ति दर्ज कराने में आम लोग राजनीतिक पार्टियों से ज्यादा सक्रिय हैं. आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि राजनीतिक दल सिर्फ 'हल्ला मचा रहे हैं' और वे चुनाव आयोग की मदद नहीं कर रहे. उन्होंने बताया कि अब तक पार्टियों ने एक भी लिखित आपत्ति नहीं दी है, जबकि 2.63 लाख नए वोटरों ने खुद ही आवेदन किया है. जस्टिस बागची ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, 'मतदाता राजनीतिक दलों से ज्यादा जागरूक हैं.'
22 लाख लोग मृत पाए गए, 8 लाख डुप्लिकेट
राकेश द्विवेदी ने कहा कि 65 लाख में से 22 लाख लोगों को मृत पाया गया है और 8 लाख डुप्लिकेट हैं. जो बाकी 35 लाख लोग हैं, अगर वे आगे आते हैं तो उनके दावों की जांच की जाएगी. उन्होंने बताया कि जब कोई व्यक्ति एक जगह से दूसरी जगह जाता है, तो उसे ख़ुद चुनाव आयोग को सूचित करना होता है. लेकिन, राजनीतिक दल सहयोग नहीं कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि बिहार के लोग इस मामले में ज्यादा सतर्क हैं और मुख्य चुनाव आयुक्त ने भी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सभी पार्टियों और संगठनों से मदद मांगी है ताकि पता लगाया जा सके कि गलती कहां हुई है.
'BLA चाहें तो... समय की कोई कमी नहीं'
चुनाव आयोग ने कहा कि अगर हर बूथ लेवल एजेंट (BLA) एक दिन में 10 लोगों की जांच करे, तो 16 लाख नामों को कवर किया जा सकता है. समय की कोई कमी नहीं है. एक BLA को एक दिन में 10 फॉर्म दाखिल करने का अधिकार है, जिसे डिजिटल या व्यक्तिगत रूप से जमा किया जा सकता है. चुनाव आयोग ने आगे कहा, 'राजनीतिक दलों को आगे आकर हमारी मदद करनी चाहिए.'
जस्टिस सूर्यकांत ने सवाल किया, 'क्या आपत्ति दर्ज कराने का अधिकार सिर्फ व्यक्ति को है?' इस पर द्विवेदी ने जवाब दिया, 'हां, लेकिन हम इस पर सख़्ती से विचार नहीं कर रहे हैं. हम अभी भी जांच कर रहे हैं.'
याचिकाकर्ताओं ने क्या दलीलें दीं
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर ने आरोप लगाया कि मतदाता तो पहल कर रहे हैं, लेकिन चुनाव आयोग (EC) ही समस्याएं पैदा कर रहा है. उन्होंने कहा कि आयोग को जमीनी हकीकत को समझने की जरूरत है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि चुनाव आयोग के अधिकारी जमीनी स्तर पर काम नहीं कर रहे हैं और मीडिया रिपोर्ट्स में भी इसका जिक्र है.
एक अन्य वकील प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि 85,000 लोग सामने आए हैं, जिनके नाम वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं. उन्होंने कहा कि कई लोग, जैसे कि प्रवासी मजदूर, राज्य से बाहर हैं और बाढ़ के हालात के कारण भी कई लोग आवेदन नहीं कर पाए होंगे. उन्होंने आरोप लगाया कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी आरजेडी ने सिर्फ़ आधे निर्वाचन क्षेत्रों में ही BLA तैनात किए हैं.
भूषण ने बताया कि चुनाव आयोग कह रहा है कि जिन लोगों के नाम ड्राफ्ट लिस्ट में नहीं हैं, उन्हें फॉर्म 6 के जरिए दावा करना होगा. जबकि यह फॉर्म नए मतदाताओं के लिए होता है, न कि नाम में सुधार के लिए. उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग आधार कार्ड के अलावा दूसरे दस्तावेजों की मांग कर रहा है, जिससे लोग परेशान हैं. उन्होंने कोर्ट को एक ऐसे व्यक्ति का उदाहरण भी दिया, जिसे मृत घोषित कर दिया गया था. जब वह ERO (इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर) के पास गया, तो उन्होंने कहा कि सिर्फ़ आधार पर्याप्त नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्प्णी
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने राजनीतिक दलों को सख़्त लहजे में फटकार लगाई. उन्होंने पूछा, '1 अगस्त से अब तक राजनीतिक दलों ने SIR (Special Integrity Review) ड्राफ्ट लिस्ट में सुधार के लिए क्या किया है?' उन्होंने कहा, 'अगर राजनीतिक दल ज्यादा जिम्मेदार होते और अपनी जिम्मेदारियों का सही ढंग से पालन करते, तो आज हालात बहुत बेहतर होते.'
कोर्ट ने कहा कि वह सभी 12 राजनीतिक पार्टियों से जवाब मांग रहे हैं और इस मामले पर नजर बनाए रखेंगे. वृंदा ग्रोवर ने कोर्ट से अपील की कि बाहर किए गए लोगों को निष्पक्ष सुनवाई का मौका देने के लिए SIR के लिए और ज्यादा समय दिया जाना चाहिए.
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