चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) दो दिनों से पटना में हैं लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो एक समय उनके राजनीतिक बॉस रह चुके हैं, से उनकी संभावित मुलाकात अब तक नहीं हो पाई है. प्रशांत किशोर की नीतीश कुमार (जिन्होंने उन्हें जनता दल यूनाइटेड में अपने नंबर दो के रूप में राजनीति में लाया था), से मिलने की अनिच्छा ने कई सवाल उठाए हैं. खासकर जब पीके अपने स्वयं के किसी भी राजनीतिक संगठन की घोषणा करने से फिलहाल मीलों दूर दिख रहे हैं.
कल एक ट्वीट में, जिसने कई अटकलों को हवा दी है, प्रशांत किशोर ने घोषणा की कि वह सुशासन के मार्ग को समझने के लिए आमजन यानी "रियल मास्टर्स" के पास जाएंगे, और वह इसकी शुरुआत बिहार से करेंगे.
My quest to be a meaningful participant in democracy & help shape pro-people policy led to a 10yr rollercoaster ride!
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) May 2, 2022
As I turn the page, time to go to the Real Masters, THE PEOPLE,to better understand the issues & the path to “जन सुराज”-Peoples Good Governance
शुरुआत #बिहार से
कांग्रेस के साथ पीके की दूसरी बार वार्ता विफल होने के कुछ दिनों बाद, उनके पोस्ट से अब उनकी योजनाओं पर अनुमान लगाने का दौर शुरू हो चुका है. मीडिया के एक वर्ग ने बताया था कि पीके और नीतीश कुमार के रविवार को मिलने की संभावना है, लेकिन मीडिया की एक बड़ी टुकड़ी इस बैठक का इंतजार करती रह गई.
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कथित तौर पर मुख्यमंत्री ने भी इसके लिए इंतजार किया, लेकिन यह जानकर कि पीके के आने की संभावना नहीं है, उन्होंने पटना में सड़कों का औचक निरीक्षण शुरू कर दिया. इसके लिए राज्य के पथ निर्माण मंत्री नितिन नवीन और अन्य अधिकारियों को अल्प सूचना पर बुलाया गया. इसके बाद मुख्यमंत्री ने पटना और उसके आसपास की सड़कों और पुलों का निरीक्षण करीब तीन घंटे तक किया.
दोनों को जानने वाले सूत्रों का कहना है कि पीके ने नीतीश कुमार संग बैठक से इसलिए परहेज किया क्योंकि नीतीश कुमार पहले ही उनका विश्वास तोड़ चुके हैं, तब नीतीश ने एक निजी मुलाकात को आधिकारिक बना दिया था और उसका इस्तेमाल भाजपा के साथ सौदेबाजी करने के लिए किया था.
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सूत्रों का कहना है कि 2018 में, नीतीश कुमार और भाजपा के बीच एक कठिन समय के दौरान, जब प्रशांत किशोर राजद नेता लालू यादव के पास नीतीश कुमार के दूत के रूप में गए, तब भाजपा नेतृत्व के इस आश्वासन के बाद कि वही प्रभारी बने रहेंगे, मुख्यमंत्री अपनी बात से पीछे हट गए थे.
पीके विशेष रूप से तब भी उदास थे, जब पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में अध्यक्ष पद पर जनता दल यूनाइटेड के छात्र की जीत हुई थी (भाजपा को हराकर), बावजूद उन्हें हाशिए पर धकेल दिया गया था. स्पष्ट रूप से ऐसा भाजपा के दबाव में आकर नीतीश कुमार ने किया था और पीके से उनकी जिम्मेदारियां भी छीन लीं थी. इसके बाद 2019 के चुनाव में भी उन्हें दरकिनार करने की योजना बना दी गई थी.
नीतीश कुमार द्वारा केंद्र के नागरिकता संशोधन अधिनियम का समर्थन करने पर प्रशांत ने अपनी असहमति जताई फिर उसके बाद दोनों की राहें जुदा हो गईं.
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उनके करीबी सूत्रों का कहना है कि प्रशांत किशोर ने तब भी विश्वासघात महसूस किया, जब 2020 में पटना पुलिस, जो नीतीश कुमार सरकार को रिपोर्ट करती है, ने उनके खिलाफ साहित्यिक चोरी के आरोप की जांच की थी.
कोविड महामारी फैलने के बाद उन्होंने संपर्क फिर से शुरू किया लेकिन नीतीश कुमार के साथ किसी भी मुलाकात को लेकर अब पीके सतर्क रहते हैं, खासकर ऐसे समय में जब मुख्यमंत्री के भाजपा के साथ संबंध फिर से तनावपूर्ण हो गए हैं और उनकी कुर्सी पर सवाल उठाए जा रहे हैं.
नीतीश कुमार एक बार फिर भाजपा से एक स्पष्ट और सार्वजनिक आश्वासन चाहते हैं, ऐसे में प्रशांत किशोर के साथ उनकी एक बैठक - 2024 के राष्ट्रीय चुनाव में भाजपा को चुनौती देने के लिए विपक्ष की तैयारी की दिशा में एक बड़ा संदेश पहुंचा सकता है.
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