प्रशांत किशोर को नई पार्टी बनाने की जल्दबाजी क्यों नहीं है?

पीके अब मान रहे हैं कि नीतीश कुमार विकास मॉडल और सियासी मॉडल दोनों में फेल हो चुके हैं. नीति आयोग की रिपोर्ट में हरेक पैमाने पर पिछड़े बिहार को वो विशेष राज्य का दर्जा तो नहीं ही दिलवा सके, अब वो खुद अपनी ही सरकार में उपेक्षित से हैं और उनकी सहयोगी बीजेपी उन पर हावी है. कई मौकों पर तो मुख्यमंत्री की भाजपा के सामने बेबसी भी सार्वजनिक हो चुकी है.

पटना:

राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने आज एक ट्वीट कर यह स्पष्ट कर दिया है कि उनका अगला कदम उनके गृह राज्य बिहार से जुड़ा होगा. उन्होंने यह भी संकेत दिए हैं कि वो 'जन सुराज' की शुरुआत बिहार से करने जा रहे हैं लेकिन इसका मतलब यह कत्तई नहीं है कि वह अगले छह महीने के अंदर ही कोई राजनीतिक पार्टी बना लेंगे. 

इसकी वजह साफ है. कारण यह है कि अभी बिहार में कोई चुनाव होने वाला नहीं है. लोकसभा का चुनाव 2024 में और बिहार विधान सभा का चुनाव 2025 में होना है. तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि फिर पीके ने ऐसा क्यों लिखा, 'शुरुआत बिहार से'? 

दरअसल, पीके ने उसी ट्वीट में उसका जवाब भी दिया है. उन्होंने 'जन सुराज' की बात की है. वो सुराज  कार्यक्रम के जरिए पहले पूरे बिहार का दौरा करना चाहते हैं और लोगों की समस्या जानकर उसके निदान के उपायों की तलाश और सुझाव तैयार करना चाहते हैं. 2015 के चुनावों से पहले भी पीके इस तरह का दौरा कर चुके हैं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मिलकर सात निश्चय योजना, जिसमें 'हर घर नल का जल', 'हर घर बिजली', 'हर घर तक पक्की नली-गली', 'हर घर शौचालय', 'आर्थिक हल युवाओं को बल' आदि शामिल है.

"शुरुआत बिहार से" : प्रशांत किशोर ने किया नए कदम का ऐलान

पीके अब मान रहे हैं कि नीतीश कुमार विकास मॉडल और सियासी मॉडल दोनों में फेल हो चुके हैं. नीति आयोग की रिपोर्ट में हरेक पैमाने पर पिछड़े बिहार को वो विशेष राज्य का दर्जा तो नहीं ही दिलवा सके, अब वो खुद अपनी ही सरकार में उपेक्षित से हैं और उनकी सहयोगी बीजेपी उन पर हावी है. कई मौकों पर तो मुख्यमंत्री की भाजपा के सामने बेबसी भी सार्वजनिक हो चुकी है.

बिहार में जब भी राजनीति की बात होती है तो जाति और जमात की बात जरूरी है. पीके को यह भी लगता है कि उनकी जाति (ब्राह्मण) का कोई खास भविष्य राज्य में नहीं है क्योंकि उसकी आबादी उतनी नहीं है लेकिन वो बेरोजगारों को एक जाति और जमात समझकर उस पर ही फोकस करना चाहते हैं. पिछले चुनाव में तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी की चर्चा की थी लेकिन उस मोर्चे पर लड़ाई में वो भी विफल रहे हैं.

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लिहाजा, प्रशांत किशोर पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के रास्ते पर चलकर सियासी राह आसान करना चाहते हैं. बता दें कि 1987 में वीपी सिंह ने राजीव गांधी के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी और कई असंतुष्ट कांग्रेसियों के साथ मिलकर जनमोर्चा बनाया था. उन्होंने जनमोर्चा के बैनर तले देशभर का दौरा किया था और बोफोर्स सोदे में दलाली के कथित खिलाफ राजीव गांधी सरकार के खिलाफ उन्हें अपार जनसमर्थन मिला था. 1989 के चुनाव में राजीव गांधी की हार हुई थी और वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने थे.

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प्रशांत किशोर ने बिहार वापस आने के बाद नीतीश कुमार से मुलाकात नहीं करके भी एक स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की है. उन्हें भविष्य में जो भी राजनीति करनी है, उसमें नीतीश कुमार से भी दूरी बनाकर रखनी है क्योंकि नीतीश ने भी उनके बारे में मौके-बेमौके कोई अच्छी बातें नहीं कही हैं, इसलिए  पीके उनसे दूरी बनाकर नए राजनीतिक विकल्पों पर भी विचार कर रहे हैं. वैसे प्रशांत किशोर 5 मई को संवाददाता सम्मेलन कर अपनी आगे की रणनीति का खुलासा करने वाले हैं.