बिहार विधान सभा (Bihar Assembly) में मंगलवार (23 मार्च) को विपक्ष के सदस्यों के हंगामे और विधान सभा अध्यक्ष के चैम्बर के बाहर धरना देने के कारण पहली बार राज्य के संसदीय इतिहास में विधानसभा के अंदर पुलिस बुलानी पड़ी. इसके बाद पुलिस ने सदन के अंदर प्रवेश कर विपक्ष के विधायकों की जमकर पिटाई की. यहाँ तक कि विधान सभा से बाहर घसीटकर ले जा रहे एक विधायक को एक पुलिस अधिकारी ने पीछे से आकर लात भी मारी. लोकतंत्र के मंदिर में अराजकताभरे दृश्य के वीडियोज अब वायरल हो रहे हैं.
ये दृश्य आपको विचलित कर देगा । लेकिन नीतीश बाबू के राज में एक सिपाही विपक्ष के विधायक को कैसे घसीट रहा हैं और दूसरा लात मार रहा हैं आज के बिहार की विधायिका का सच बयँI कर रहे हैं ।@ndtvindia @Suparna_Singh @Anurag_Dwary pic.twitter.com/eLtHhBAFe2
— manish (@manishndtv) March 23, 2021
निश्चित रूप से मंगलवार को जो हुआ वह ना सिर्फ दुःखद था बल्कि राज्य के संसदीय इतिहास के ऊपर एक काला धब्बा भी है. जहाँ तक पुलिस या RAF के जवानों को बुलाने का फ़ैसला है वो निश्चित रूप से विधान सभा अध्यक्ष विजय सिन्हा का था लेकिन उन्होंने अपने हर फ़ैसले और ख़ासकर इस फ़ैसले को मुख्य मंत्री नीतीश कुमार से पूछकर लिया था. हालाँकि विपक्ष की भूमिका को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं कि आख़िरकार विधान सभा अध्यक्ष को बंधक बनाने की क्या ज़रूरत थी?
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सदन के अंदर उप मुख्य मंत्री तारकिशोर प्रसाद हों या अध्यक्ष की कुर्सी पर पर बैठ कर सदन चला रहे प्रेम कुमार हों, के हाथ से काग़ज़ात छीनकर जिस तरीके से राष्ट्रीय जनता दल और अन्य विपक्षी दल के लोग फाड़ रहे थे उससे किसी अनहोनी की आशंका बनी हुई थी. तेजस्वी यादव के नेतृत्व में जैसे पूरा विपक्ष आक्रामक रवैया बिहार सशस्त्र बल विधेयक पर अख़्तियार किए हुए था, वो कहीं से सही नहीं माना जा सकता है.
कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक विजय शंकर दूबे का कहना है कि सदन में गतिरोध ख़त्म करने का ज़िम्मा सरकार और मुख्य मंत्री के ऊपर होता है. उनका कहना है कि विपक्ष के सदस्य तो अध्यक्ष की कुर्सी तक पर बैठ चुके हैं. ख़ुद नीतीश कुमार के आदर्श कर्पूरी ठाकुर ने दो दिन, दो रात तक धरना दिया था लेकिन उस समय के अध्यक्ष ने पुलिस बुलाकर उन्हें हटाने की गलती नहीं की थी.
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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिन्होंने पूरी शर्मनाक घटना के बाद इस विधेयक को पारित कराने के समय अपने भाषण में माना कि इस विधेयक के बारे में जो भ्रम फैला वो शायद उनके अधिकारियों ने ब्रीफ़िंग किया होता तो ये नौबत नहीं आती. इधर, नीतीश कुमार के अधिकारियों का रोना है कि उनके ऊपर ठीकरा तो फोड़ा जा रहा है लेकिन ऐसा कोई निर्देश उन्हें नहीं दिया गया था. अधिकारी तो अधिकारी नीतीश कुमार के कैबिनेट के कोई मंत्री भी तीन दिन से अधिक समय तक इस बिल पर बोलने से बचते रहे क्योंकि अधिकांश का कहना था कि कैबिनेट में भी इस पर कोई चर्चा विस्तार से नहीं हुई. इसलिए वो आख़िर बोलते तो क्या जवाब देते क्योंकि उन्हें भी इस विधेयक के बारे में विस्तार से नहीं मालूम था.
अब सुनिए @NitishKumar बचाव अपने विधेयक का कर रहे हैं । विधेयक तो अपने पुलिस के बल पर करवा लिया लेकिन एक निरंकुश मुख्य मंत्री के रूप में अपना नाम दर्ज ज़रूर कराया । @ndtvindia @Anurag_Dwary pic.twitter.com/U26A24pydj
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नीतीश कुमार की अपनी पार्टी के विधायक भी मानते हैं कि पुलिस को बुलाकर उन्होंने एक ऐसी ग़लत परंपरा की शुरुआत कर दी है जिसका ख़ामियाज़ा आज नहीं तो कल सता में आज बैठे लोगों को भी भविष्य में विपक्ष में जाने पर उठाना पड़ सकता है. उनका कहना है कि नीतीश ख़ुद गृह मंत्री हैं और बिल की बारीकियों के बारे में उन्हें पता था, तो वो मीडिया को ब्रीफ़ कर सकते थे लेकिन सचाई है कि मीडिया से अब वो भाग रहे हैं और सही सवाल करने से चिढ़ जाते हैं.
वहीं विपक्षी नेताओं में शिवानंद तिवारी का कहना है कि नीतीश कुमार अब निरंकुश होते जा रहे हैं जिसका यह जीता जागता उदाहरण है कि पुलिस की मदद से उन्होंने सदन में विधेयक पारित कराया है. तिवारी के अनुसार नीतीश जनता से रिजेक्टेड एक ऐसे मुख्य मंत्री हैं जो इस बात को पचा नहीं पा रहे कि तेजस्वी अपने बूते उससे कहीं अधिक सीट ले आए हैं और वो ख़ुद नरेंद्र मोदी का साथ होने के बावजूद नम्बर तीन की पार्टी पर सिमट गए. हालाँकि, जनता दल के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह का कहना है कि जो भी हुआ उसके लिए तेजस्वी यादव का लंपट व्यवहार असल कारण है और जो लोग नीतीश कुमार की आलोचना कर रहे हैं, वो दरअसल लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास नहीं रखते.
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